विश्व गौरय्या संरक्षण दिवस
– ज्ञानेन्द्र रावत*
आइये गौरय्या बचायें, पर्यावरण बचायें, संस्कृति बचायें…
आज विश्व गौरय्या दिवस है। आज हमारी यह घर के आंगन में चहकने-फुदकने वाली छोटी सी गौरय्या विलुप्ति के कगार पर है। इसकी विलुप्ति में हमारी बदलती जीवन शैली की अहम भूमिका है।आज इसे बचाने का हम संकल्प लें। ऐसा ना हो यह केवल भविष्य में किताबों में ही दिखाई दे।
गौरय्या की विलुप्ति के पीछे अहम कारण आजकल हमारे घरों की बनावट है जिसमें उसके आने के सभी रास्ते बंद कर दिये गये हैं। पहले घरों में झरोखे होते थे जिनसे होकर वह आती थी, आले होते थे जिनमें वह घोंसला बनाती थी।
सीमेंट के घर होने की वजह से उसे धूल नहीं मिलती, न खेलने के लिए और न नहाने के लिए। गौरय्या रेत में खेलती ही नहीं, उसमें स्नान भी करती है जिसे सैंड बाथ कहते हैं। आजकल के घरों में इतनी भी जगह नहीं है कि कोई चिड़िया चोंच भी मार सके।
पहले घर के आंगन में अनाज सूखा करता था, जिसे वह चुगकर-खाकर अपना पेट भर लेती थी। अब माल कल्चर से सब कुछ पैक हो गया है। ऐसी स्थिति में गौरय्या कहां से आयेगी। फिर मोबाइल टावरों के रेडिएशन से भी गौरय्या मर रही हैं।
आइये हम गौरय्या संरक्षण अभियान में अपना थोड़ा सा योगदान दें। सबसे पहले अपने घरों से बाहर बाजार से कंडील की तरह बना एक घोंसला लाकर लटकायें, मिट्टी के बर्तन में उसके पीने के लिए पानी और एक प्लेट में कुछ दाना रखें।
यदि आपके घर में जगह है तो मेंहदी के पेड़ जो गौरय्या को बेहद पसंद हैं, लगावें। इन पेड़ों पर पनपने वाले कीडो़ं को वह बडे़ चाव से खाती है। उसकी परवरिश के लिए यह कीडे़ बहुत जरूरी हैं।इससे उसे वहां खाना भी मिलेगा और वहां वह घौंसला भी बना सकती है।
आज असल में गौरय्या की विलुप्ति का संकट अकेले पर्यावरण का संकट नहीं है, यह संस्कृति का भी संकट है। क्योंकि हम पहली बार जिस पक्षी से परिचित हुए वह गौरय्या ही थी।इसलिए सरकारी स्तर पर जो भी हो, अपने स्तर पर अपने घर से यह कोशिश तो कर ही सकते हैं।
*वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद