-डॉ. राजेन्द्र सिंह*
‘‘देखन में छोटन लगे, घाव करे गंभीर‘‘ यह कोरोना वायरस ( (COVID-19,SARS-2- 19) पृथ्वी पर जीव बनने से पहले का, प्रारंभिक चरण का वायरस है। इसके इतिहास को समझने के लिए हमें जानना होगा कि 2002 में जब चीन में कोरोना वायरस-1 पहली बार प्रभावी हुआ था। वहां से सबसे पहले कनाडा और अमेरिका पहुंचा था। कनाडा के उस काल में स्वास्थ्य मंत्रालय के अध्यक्ष एवं मांउट सिनाई अस्पताल के संचालक डॉ. डोन लो ने निर्णय किया था कि, इसे कनाडा से बाहर नही जाने देगें। उस समय कोरोना वायरस नं-1 को SARS CRISIS-1 नाम से जाना जाता था। उन्होंने वायरस को अपने देश से बाहर नही निकलने दिया था। चीन में ही मानव जीवन के लिए खतरनाक वायरस क्यों जन्मते है?
2002 में SARS CRISIS-1 के बुरे असर ने 8422 लोगों को संक्रमित किया था। जिसमें से 802 लोगो की मृत्यू हो गई थी। इसकी मृत्यु दर 11 प्रतिषत के आसपास थी। अभी कोविड-19 कोरोना, से मृत्युदर उस काल के वायरस के मुकाबले कम है। आज दिनांक 30 मार्च 2020 तक भारत में कोरोना से संक्रमित लोगो की संख्या 1024 है, जिनमें से 27 लोगों की मृत्यू हो चुकी है और दुनिया में यह आंकडा 7,22,350 केस में से 33,9,80 लोगों की मृत्यू हो गई है। यह मृत्यु दर SARS CRISIS-1 के मुकाबले कम है। भारत का प्राकृतिक अनुकूलन जीवन पद्धति का प्रभाव है। यहां की जैव, जलवायु पारिस्थितिकी विविधता के कारण अधिक लोग नही मर सकेगें।
वायरस SARS CRISIS-1 से SARS CRISIS-2 बिल्कुल अलग है। इसका जैनेटिक मटैरियल जो प्रौटीन और लिपिड कवर के अंदर होता है। जब यह मानव शरीर से बाहर रहता है, तो वह जीव नही होता। यह जब मानवीय शरीर की कोषिकाओं पर आक्रमण करता है, तो उनके मेटावोलिज्म को हाईजेक कर लेता है और फिर अपने जैसे ही असंख्य वायरस का निर्माण करके अपनी तादात बढाता रहता है। इसलिए इसको मानव शरीर से बाहर रहने पर, जीव कहना ठीक नही है। बल्कि यह एक जैविक रसायन है। इसकी विषिष्टता है कि यह अपने जैसी करोडों वायरसों को बना लेता है।
18 वर्ष पहले चीन से आकर कनाडा में प्रभावी हुआ SARS CRISIS-1 को डोन लो ने अपने देश से बाहर नही निकलने दिया था। उनके प्रयासों से SARS CRISIS-1 कनाडा में ही सीमित हो गया था। उस समय कनाडा ने दिखा दिया कि ऐसी परिस्थिति को कैसे काबू करना है।
कोविड-19 SARS CRISIS-2 के मामले में ऐसा नही हुआ और यह दुनिया भर में फैल रहा है। इसको जहां जितनी अनुकूलता मिली, उतनी तेजी से ही यह बढता गया क्योकि यह प्राकृतिक अनुकूलन की पालना करना जानता है। इसने अपने आप को चालाकी से फैलाया। इस वायरस ने चार्ल्स डार्विन के सिद्धांत को भी सिद्ध किया है।
भारत जो की प्राकृतिक आरोग्य रक्षण की पद्धति में विश्वास रखता है, प्रकृति के साथ अधिक सम्मान से जीता है। भगवान भरोसे, यह देश इसकी मार से कम चपेट में आऐगा। यहां के लोगो की मृत्यू दर कम होगी लेकिन आर्थिक हानि और भौतिक संसाधनों की बर्बादी बहुत अधिक होगी। भारत के सामने विकट परिस्थिति बनी है किन्तु राष्ट्रहित को देखते हुए भारत में जल्द से जल्द साकारत्मक विचारों के साथ आर्थिक व मानवीय हानि को रोकने का प्रयास आरंभ करना चाहिए। इस प्रयास में लाभ से अधिक शुभ का ख्याल रखना अच्छा होगा। आयुर्वेद एवं आयुष से कोरोना का इलाज अधिक कारगर हो सकता है। दूसरी पद्धति में भी इसका इलाज नही है। हम अपनी पद्धति में ही इसके इलाज की खोज करें।
हमारे स्वास्थ्य विशेषज्ञ यदि दिसम्बर में ही इस वायरस के चरित्र के बारे में सरकारों को समझाकर, भारत में बाहर से आने वोले विदेशियों व स्वदेशियों का लॉकडॉउन कर देता, तो अच्छा होता। ऐसे में भारत में भी कोई डोन लो जैसा स्वास्थ्य विशीषज्ञ खडा होकर सरकार को समझाने में सफल होता। इसी रास्ते से हम इस संकट ये बच सकते थे। हमारे स्वास्थ्य सक्षम जीव वैज्ञानिको को भी इस वायरस की मार को स्वंय समझकर भारत को इससे बचाना चाहिऐ था। SARS CRISIS-1,SARS CRISIS-2 दोनों ही चीन की उपज है।
भारत की भौगोलिक स्थिति, खासकर हिमालय और समुद्र से यहां कि जलवायु विविधता के कारण हमारी मानवीय हानि उतनी अधिक नही हो पाऐगी। लेकिन आर्थिक और भौतिक हानि इससे बहुत होगी क्यांकि इस वायरस कर डर बहुत व्याप्त हुआ है। इसके डर ने दुनिया को आतंकित किया है। भारत उतना आतंकित नही है, फिर भी भारतीय आर्थिक मार से मरते हुए, क्या नही करते? यह एक बहुत बडा पलायन है। भारत के किसान-मजदूर अपना पेट भरने के लिए षहरों से निकलकर वापस गांव में आने लगे है। उन्हें आज भी केरोना महामारी से बचने के लिए अपने गांव की हरियाली, पानी, मिट्टी ज्यादा सुरक्षित दिख रही है। इसलिए इस लॉकडाउन से तृस्त्र होकर लोग गांवो की तरफ जैस-तैसे दौड रहे है। बहुत सारे लोग रास्ते में मर रहे है, फिर भी अपने गांव जाना उन्हें ज्यादा सुरक्षित दिख रहा है। भारतीय स्वास्थ्य रक्षण आयुष में सरकार को विष्वास रखकर, अपनी जनता को अपने घरों में पहुंचानें की जल्द से जल्द व्यवस्था करनी चाहिए। गांवो में जाने से पहले इनका स्वास्थ्य जांच व निरिक्षण अत्यंत आवष्यक है।
भारत में एक से एक बढे़ स्वास्थ्य विषेषज्ञों की भरमार है। यहां नरेन्द्रनाथ मेहरोत्रा जैसे जैव रसायन और भारत सरकार के नीरी में वायरस पर काम करने वाले डॉ. कृष्णा खैरनार जैसे समर्पित वैज्ञानिको की बहुत लम्बी सूची है। इन सबसे बात करके भारत के स्वास्थ्य रक्षण व प्रतिरक्षण षक्ति को समझकर, जल्द से जल्द भारत की मानवीय और आर्थिक हानि को रेकने का काम तेजी से होना चाहिए। इस पूरी समय दुनिया और भारत संकट में है। सभी राजनैतिक दलो को अपनी दलगत राजनीति से ऊपर उठ कर, कोरोना-2 से होने वाली मानवीय और आर्थिक हानि को रोकने के तत्काल/ संघठित होकर उपाय करना चाहिए।
हमें दुनिया हित का काम करने का यह अवसर कोविड – 19 मिला है। पूरा भारत एक होकर कोरोना से होने वाली सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक व स्वास्थ्य हानि को रोकें।
*लेखक पूर्व आयुर्वेदाचार्य हैं तथा जलपुरुष के नाम से विख्यात, मैग्सेसे और स्टॉकहोल्म वॉटर प्राइज से सम्मानित, पर्यावरणविद हैं। प्रकाशित लेख उनके निजी विचार हैं।