डॉ. राजेन्द्र सिंह*
तुलसी का पौधा लाभ से ज़्यादा शुभ के लिए है
कोविड के तीसरे तूफ़ान से बचाने वाले तुलसी-पौधों का बाग़ बनाना सबसे पहला और ज़रूरी काम बनता है। मैंने यह काम प्रत्यक्ष रूप से 21 अप्रेल, 2021 से शुरू कर दिया है। सबसे पहले अपने तुलसी-बाग़ से तुलसी का बीज इकट्ठा करना शुरू किया। एक तोला (10 ग्राम) तुलसी के बीजों में लगभग 22000 (बाईस हज़ार) दाने होते हैं। हमने तुलसी की पक्की सूखी मंजरी को दोनों हाथों से सूँथ कर इकट्ठा किया। 30 मई तक बीज इकट्ठा कर के पौधशाला हेतु खेत की तैयारी भी साथ ही साथ कर ली थी। पहले दिन आधा किलोग्राम बीज 10 गज 30 मीटर ज़मीन में दोमट मिट्टी, गोबर खाद का बैड (मिट्टी शय्या) तैयार करके उस पर बीज छिड़क कर जल छिड़क दिया। पाँचवें दिन तो अंकुरित होकर तुलसी के पौधे दिखने लगे थे। पचास दिन में पौध तैयार दिखने लगी। पहली जुलाई से हमने तुलसी पौध रोपण का कार्य शुरू कर दिया।
इसी दौरान तुलसी की पौध मुफ़्त देने हेतु प्रचार-प्रसार भी आरम्भ कर दिया था। गाँवों से लोग पौध लेने हेतु आने लगे। हमने तुलसी की पौध मुफ़्त बाँटना आरम्भ कर दिया है। मेवात के मेवों को बड़ी संख्या में तुलसी पौधे दिये। बहरोड़, बानसुर, दौसा, दिल्ली, हरियाणा के बहुत-से लोग पौधे लेकर गये हैं। बहुत-सी संस्थाओं ने भी पौधे लिये हैं। राजस्थान सरकार के प्रधान मुख्य वन संरक्षक को भी पत्र लिख दिया है। उन्हें फोन पर बातें करके कहा है कि वे तुलसी वन बनाने हेतु हमसे मुफ़्त पौधे ले जायें।
तुलसी का पौधा लाभ से ज़्यादा शुभ के लिए है। शुभ सभी का साझा होता है। साझे काम साझे के लिए ही किये जाते हैं। हमने तुलसी पौधशाला निर्माण कार्य श्रमदान से किया है। मैंने स्वयं ने प्रतिदिन 10 से 14 घन्टे का समय तुलसी पौधशाला निर्माण कार्य एवं तुलसी रोपण पर लगाया है। परिणामस्वरूप अब तरुणाश्रम की ऋषि खेती तुलसी बाग़ के रूप में बदलती जा रही है। यही हमारा वनौषधि बाग़ बन रहा है। कोरोना के तीसरे तूफान से बचने की यही हमारी तैयारी है।
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इस वनौषधि बाग़ में तुलसी, अड़ूसा, गिलोय, पौदीना, अश्वगन्धा, निम्बू और सैकड़ों तरह के पेड़ पौधे लगे हुए हैं। कोविड के समाधान हेतु अब हमारा सबसे अधिक ध्यान तुलसी पर ही है। अब हम हर पाँचवें दिन दस तोला (100 ग्राम) तुलसी बीज की पौध तैयार कर रहे हैं। पौध तैयार करने के साथ-साथ पौध वितरण और पौध रोपण का काम भी जारी है। हम जिन्हें भी पौध देते हैं, उन्हें बताते हैं कि तुलसी के साथ आपका जैसा व्यवहार होगा, वैसा ही व्यवहार यह आपके साथ करेगी।
तुलसी मानव का जीवन, जीविका और ज़मीर है। यह जीवन को स्वस्थ रखने का साधन है, ग़रीबों की जीविका है और सभी भारतियों का ज़मीर है। यह प्रकृति के क्रोध को कम करके उसे नष्ट भी करती है।
यह मिट्टी संरक्षण और जल संरक्षण में झाड़ी रूप में मददगार करती है। यह प्राणवायु उत्सर्जन करके वातावरण व पर्यावरण को सुधारती है। आज पूरी दुनिया में पर्यावरण संकट है। तुलसी की हरियाली बढ़ाना इस संकट के समाधान का सबसे महŸवपूर्ण कार्य है। तुलसी का बाग़ और जंगल धरती को चढ़ते बुखार और मौसम के बिगड़ते मिज़ाज को भी सुधार सकता है। तुलसी जिस प्रकार से इंसानों की सेहत को ठीक रखने में मददगार है, ठीक उसी प्रकार से धरती और प्रक्रति की सेहत को भी सुधारती है।
हमारा तुलसी के साथ प्रायोगिक अनुभव है। तुलसी पथरीली मिट्टी और कम पानी में भी फलती-फूलती है। इसे केवल पाले (ठण्ड) और लू (गर्मी) से बचाने की जरूरत है। हमारा तुलसी बाग़ बड़े पेड़ों के नीचे है, इसीलिए पाले (ठण्ड) और लू (गर्मी) की मार से बचा रहा और इसीलिए हमें अप्रेल-मई में तुलसी का पका हुआ बीज मिल गया है। इसी से हम अब करोड़ों पौधे तैयार करके मुफ़्त बाँट रहे हैं।
तुलसी में ज़हरीली गैस को प्रणवायु में बदलने की बड़ी शक्ति है। इस ब्रह्माण्ड में सबसे अधिक प्राणवायु उत्सर्जन करने वाला पौधा होने के कारण ही यह भारतीय ऋषियों का सबसे प्रिय और सबसे पवित्र पौधा बना था। भारतीय ऋषि ’शुभ चिन्तक’ थे, आधुनिक वैज्ञानिक ’लाभ चिन्तक’ हैं। आधुनिक वैज्ञानिक लाभकारी शोध कार्य को ही बढ़ावा देते हैं। वे शुभ कार्य को भूल कर बिसार देते हैं। इसीलिए दुनिया के बहुत-से भू-भाग पर यह नहीं पनपा, पर भारत में यह प्रायः हर जगह हो जाता है। लेकिन भारत में भी अब इसके उपयोग और महत्त्व को भुला कर बिसार दिया है। अब कोविड ने ही इसकी जरूरत का पुनः अहसास और आभास कराया है। आज ग्रामीण और शहरी सभी इसकी तरफ झुकने लगे हैं।
मैंने अपने आयुर्वेद स्नातक शिक्षण में तुलसी को बहुत पढ़ा था, पर व्यवहार में नहीं लिया था। कोविड ने मुझे मेरे बाग़ की तुलसी को औषधि रूप में व्यवहार में लेने का अवसर प्रदान किया, अर्थात् काढ़ा बना कर पिलाया। तुलसी के बाग़ में बीमारों को आराम कराया। इसका अद्भुत् प्रभाव देखकर इसको बढ़ाने का और एक करोड़ से अधिक पौधे तैयार करने का संकल्प लिया है। यह संकल्प पूरा कराने में आपका भी योगदान होगा। आप भी तुलसी के पौधे तैयार करके उसे हमारी तरह ही मुफ़्त बाँटें। हमारे आश्रम से भी तुलसी मुफ़्त ले जाकर तुलसी बाग़ तैयार करें। यह आपकी अपनी लक्ष्मी और सरस्वती है। यही भगवान् राम और भगवान् कृष्ण भी है। यही हमारी कुदरत, प्रकृति और सभी को सहारा देने वाली विरासत भी है। तुलसी को संस्कृत में वृन्दा भी कहते हैं, इसीलिए तुलसी के बाग़ को ब्रज में वृन्दावन कहते हैं।
*लेखक पूर्व आयुर्वेदाचार्य हैं तथा जलपुरुष के नाम से विख्यात, मैग्सेसे और स्टॉकहोल्म वॉटर प्राइज से सम्मानित, पर्यावरणविद हैं। प्रकाशित लेख उनके निजी विचार हैं।