1 अगस्त 2023 को हम ल्हासा , तिब्बत में थे। ल्हासा में पोताला महल तिब्बत के राजनीतिक व धार्मिक मिश्रित शासन का केन्द्र था।। पोताला महल बहुत ही सुंदर है। यहां से पांचवे दलाई लामा से लेकर, तेरहवें दलाई लामा ने राज किया था। यहां के छठे दलाई लामा भारत चले गए थे, जिनका अंत तक पता नहीं चला।अभी के चौदहवें दलाई लामा तो भारत में ही हैं।
यहां धार्मिक परंपरा में भगवान बुद्ध को अपना भगवान मानते हैं। यहां दो तरह के लामा होते हैं ,एक दलाई लामा है और दूसरे पांचा लामा। पांचा लामा चीन की राजधानी बीजिंग में रहते हैं और दलाई लामा भारत में रहते हैं। पांचा लामा, ल्हासा साल में दो बार आते हैं।
हम तिब्बत को तीन हिस्सों में बांट कर देख सकते हैं। पहला हिस्सा है 1000 से 2000 मीटर का मैदानी केंद्रीय तिब्बत, जहां बहुत अच्छी खेती होती है, बांध और बिजली है। दूसरा उत्तर में 2000 से लेकर 3500 मीटर तक और तीसरा पूर्व 3500 से 8000 मीटर तक।
हमारी यात्रा का लक्ष्य था कि यहां की संस्कृति और समाज पानी व प्रकृति को कैसे देखता है? क्योंकि यहां का धर्म पूरा प्रकृतिमय है। भगवान बुद्ध का जो संदेश है, वह संदेश पूरे प्रकृति को ही भगवान मानने का संदेश है। बौद्ध धर्म 7000 वर्ष पूर्व भारत में आरंभ हुआ था, लेकिन 2500 साल पहले भारत से तिब्बत में आया था। तब से यहां पर भी इस धर्म को मानने वालों की संख्या बढ़ रही है। यह धर्म मंगोलिया, थाईलैंड, भारत और तिब्बत में बहुत विस्तार पाया है।
हम यह भी जानने की कोशिश कर रहे थे कि तिब्बत में नदियों की हालत कैसी है? इस क्षेत्र के लिए जब आगे काम करना हो तो कैसे होगा? इन सारे सवालों के लिए हम लासा के लंगरी होटल में ठहरे थे। यह होटल ल्हासा नदी के तट पर स्थित है। यह ल्हासा नदी ब्रह्मपुत्र में मिलती है।
हम जानना चाहते थे कि प्रकृति को भगवान मानने वाले धर्म अब प्रकृति के साथ कैसा व्यवहार कर रहे हैं? यह पहाड़ों, नदियों, जानवरों और इंसानों के साथ कैसा व्यवहार कर रहे हैं? इनके पहाड़ और धरती कटकर समुद्र में जा रहे हैं, तो यहां बाढ़ और सुखाड़ का प्रभाव कैसा है?
अगले दिन 2 अगस्त को हम ब्रह्मपुत्र और ल्हासा नदी के संगम पर पहुंचे । यहां की सबसे बड़ी नदी का नाम यानाचांगु है। यह एवरेस्ट से निकलती है और उसके बाद इसमें नमचो, हाइपर और बहुत सारी बड़ी नदियाँ मिलती जाती हैं जो ब्रह्मपुत्र नदी को नदी बनाती हैं। उसके बाद हम ब्रह्मपुत्र नदी के ऊपरी हिस्से में पहुंचे। ब्रह्मपुत्र की एक धारा एवरेस्ट बेस कैंप के पास चांचू दूध जैसे जल से बहती है और फिर बहुत सारी नदियों को साथ लेकर ब्रह्मपुत्र में मिल जाती है। इस नदी के जल से नीचे खेती करने का प्रयास अब नया शुरू हो रहा है। इसके ऊपर से लगभग 100 मीटर नीचे चलने के बाद बहुत सारे गांव बसे हैं, जो खेती करते हैं।
इसके बाद हमने कोरोला ग्लेशियर के लिए प्रस्थान किया। कोरोला ग्लेशियर बहुत ही सुंदर ग्लेशियर है। रास्ते में बहुत सारे याक मिले । याक के बारे बताया कि इस के शरीर का प्रत्येक अंग बहुत मूल्यवान है। इसकी खाल, हड्डियां, बाल सब बहुत अच्छे से उपयोग की जाती हैं, इसलिए यह पर्वतमाला का हिस्सा है। आज आसमान बहुत साफ था। यह कोरोला पास 5020 मीटर की ऊंचाई पर है। ग्लेशियर के आसपास धरती पर काफी बर्फ जमी हुयी है। गांव में छप्पर खेती की जमीन व नए मकान तैयार हो रहे थे। यहां बहुत बड़ी-बड़ी मशीन एवम विविध प्रकार की छोटी मशीनें भी हैं। यहां जेसीबी तो जैसे हमारे राजस्थान में घर में ट्रैक्टर होता है, वैसे यहां हर घर में जेसीबी खड़ी थी। ऐसा लगता है कि यह देश मशीनों से भरा हुआ है। यहां काम के लिए खूब सारी मशीनें हैं । रास्ते में बहुत सारी छोटी धाराएं मिलीं, जो ऊपर से नीचे की तरफ बहुत तेजी से आती हैं, और वहां पानी बहुत साफ दिखता है। नदियों में प्रदूषण नहीं है, लेकिन मिट्टी बहुत भारी मात्रा में घुली हुई होती हैं क्योंकि पहाड़ों में इतना गहरा कटाव है, जैसे हमारे चंबल की वादियों में होता है। यहां कई जगहों पर खच्चर गाड़ी और ग्लेशियर भी दिखे। कुछ ग्लेशियर पर हम रुके। वर्षा और ग्लेशियर दोनों का एक साथ दर्शन करके बहुत आनंदित हुए।
3 अगस्त 2023 को हम शिगात्से में रहे । यह शहर तिब्बत का दूसरा सबसे विकसित शहर है। यहां पर रिकोज नाम का एयरपोर्ट भी है। इसके आसपास तरबूज आदि की अच्छी खेती होती है।यहां कई शहर ऐसे है ,जहां रसायनिक खाद और दवाइयों का उपयोग नहीं किया जाता। इस शहर की आबादी 5 लाख है। यह लासा से छोटा है लेकिन ऊंचाई में 200 मीटर अधिक है। यहां की ऊंचाई 5200मीटर है। शिगात्से का क्षेत्र, भारत में उत्तराखंड का एक क्षेत्र जैसा है, जहां महिलाएं अपने पति के अलावा,उनके भाइयों को भी पति जैसा मानने की परम्परा है। यह परंपरा यमनोत्री के ऊपर के हिस्से में है। यह महिला प्रमुख प्रधान क्षेत्र है। पहाड़ों में अधिक ऊंचाइयों में वाले बहुत सारे क्षेत्र में महिलाएं पतियों और परिवार को बहुत अच्छे से संभालती हैं। यह यहां की परंपरा है कि, यहां के परिवार की जो संपदा है, वह एक महिला के पास में ही रहे। पशु पालन और खेती की आय घर का बड़ा भाई संभालता है। छोटे भाई, घर पर रहते हैं और बाहर कमाई के लिए भी जाते हैं।
यह यात्रा बहुत लंबी रही, सुबह जल्दी शुरू हुई और शाम को देर तक चली। यात्रा के दौरान बहुत सारे परमिट पास लेते हुए 3 अगस्त की रात को एवरेस्ट के बेस कैंप पहुंचे जो कि 5200 मीटर की ऊंचाई पर है । यहां के बेस कैंप में टायलेट की सुविधा नही थी। यह यात्रा बहुत कठिन रही, क्योंकि ऑक्सीजन बहुत कम है। यहां ऑक्सीजन सिलेंडर के उपयोग से थोड़ी बोलने की हिम्मत हुई है। यहां से चलकर, एवरेस्ट कैंप पहुंचने से पहले रास्ते में सारी चीजें समझ पाए कि यहां के पहाड़ों में सीधे से ऊपर की तरफ ज्यादा दरारें हैं। एवरेस्ट की ऊंचाई तो 8840 मीटर है।
4 अगस्त 2023 को एवरेस्ट बेस कैंप के चारों तरफ मोनस्ट्री और अन्य छोटी जगहों पर गए।
हम भारतीय लोगों के लिए कैलाश पर्वत और यहां स्थित मानसरोवर एक तीर्थ समान है। इस पर्वतमाला के साथ भारत का पुराना गहरा रिश्ता है। इस यात्रा का लक्ष्य था कि हमारी पवित्र जगह पर हमें जाना चाहिए। हमने 25 जुलाई से आरंभ होने वाली इस यात्रा का एवरेस्ट बेस कैंप पर अंतर मूल्यांकन किया। हमें जो जानना था, वह इस यात्रा से जानने में सफल हुए हैं,अब हम आज रात को शिगात्से पहुंच जायेंगे और रास्ते में कई नई जगहों पर जायेंगे।
*जलपुरुष के नाम से विख्यात जल विशेषज्ञ।