व्यंग्य
पेंशन मिलेगी घर बैठे!
सुबह होती है, शाम होती है, ज़िन्दगी यूँ ही तमाम होती है। अभी ज़िन्दगी तो तमाम नहीं हुई, पर शारदा देवी के रिटायर होने का टाइम नज़दीक आ ही गया। लोग बधाईयाँ दे रहे थे-“वाह! अब तो आपके मज़े ही मज़े हैं। पेंशन मिलेगी घर बैठे। बिना काम किए रुपए। कितना आराम रहेगा। जब मन में आए सोकर उठिए। जब मन आए सो जाइए। बैठे-बैठे आर्डर जमाइए-“बहू, खाना बन गया? आज क्या सब्ज़ी बना रही है? मेरे लिए मूँग की दाल बना और साथ में मिर्च के पकौड़े।” जो मन में आए उटपटाँग खाइए। बहू कुछ नहीं कहेगी। पेंशन पानेवाली सास दुधारू गाय की तरह होती है। सब उसकी पूजा करते हैं।
कॉलेज में साथ काम करनेवाली टीचरों ने डराया-“पता है, दस-बारह जगहों से “नो ड्यूज” सर्टिफिकेट लेना पड़ता है, तब जाकर पेंशन का कागज जमा होता है।” शारदा देवी ने सोचा अभी रिटायर होने में एक महीना बाकी है। चलो अभी से “नो ड्यूज” लेना शुरू करते हैं। कॉलेज लाइब्रेरी जाकर पुस्तकों का एक बंडल लौटाया। बोलीं-“अगले हफ़्ते बाकी की सारी किताबें लौटा दूँगी। आप मेरा “नो ड्यूज” सर्टिफिकेट तैयार रखिएगा।” लाइब्रेरियन बोला-“मैडम ऐसा नहीं हो सकता। अभी आप रिटायर नहीं हुई हैं। हो सकता है अगले हफ़्ते आप फिर कोई किताब इश्यू करवा लें। आपका हक है। बिना रिटायर हुए आपको-‘नो ड्यूज’ नहीं दे सकते।” सभी जगह से ऐसा ही जवाब मिलना था। शारदा देवी चुपचाप महीना बीतने का इंतज़ार करने लगीं।
वे रिटायर हो गईं। कॉलेज और विभाग से उन्हें विदाई पार्टी भी मिल गई। अब उन्हें फिर कॉलेज जाने में शरम आने लगी। पर “नो ड्यूज” लेने जाना ही था। लाइब्रेरी की सारी किताबें जमा कीं, पर एक किताब मिल ही नहीं रही थी। बहुत सोचने पर याद आया वह किताब एम.ए.की छात्रा हरजीत कौर ले गई थी। पर वह तो शादी करके जा चुकी। बड़ी मुश्किल से उसकी सहेलियों से पता पूछकर उसके घर पहुँची। उसकी माँ शान से बोली-‘दामाद कैप्टेन है न! अब हरजीत ने पढ़ाई-वढ़ाई की करणा कबाड़ी को किताबें बेच को जम्मू चली गई। वहाँ आर्मी कैंटीन की चीजें मस्त खाएगी। साट्टा दामाद कैप्टेन है ना! वह किताब इतनी पुरानी थी कि बाजार में भी उपलब्ध नहीं थी। मरती क्या न करती। शारदा देवी एक इतवार सुबह से कबाड़ी के यहाँ बैठी किताब ढूँढती रहीं। आखिर वह किताब संयोग से मिल गई आधे दाम पर। वे खुश हुईं. जब किताब को खोलकर देखा तो उसमें उन्हीं के कॉलेज लाइब्रेरी की मुहर पड़ी थी। और नम्बर भी था। खैर, किताब लौटाकर उन्होंने लाइब्रेरी से ‘नो ड्यूज’ ले लिया।
फिर कहा गया कि आप यूनिवर्सिटी क्वार्टर में भले ही कभी नहीं रहीं पर वहाँ के इंचार्ज से भी ‘नो ड्यूज’ लाइए। इंचार्ज का ऑफिस ढूँढते-ढूँढते जब वे पहुँचीं तो वह निकल रहा था, बोला-“अभी तो मैं बीवी को लाने अपनी ससुराल जा रहा हूँ। आप पन्द्रह दिनों के बाद आइए, आपका काम कर दूँगा।” पन्द्रह दिनों बाद जब शारदा देवी उसके पास पहुँची तो उनकी हेयर डाई उड़ चुकी थी। उनके सफेद बाल देखकर वह बोला-“ओह, मैडम, यू आर टू ओल्ड। आपको कष्ट नहीं देना चाहता। अभी आपका ‘नो ड्यूज’ देता हूँ और उसने झट से उनका काम कर दिया।
शारदा देवी को अभी मुक्ति कहाँ थी। उन्हें पता भी नहीं था कि कॉलेज में कोई ‘को-ऑपरेटिव’ भी है जो लोन देता है। उन्होंने कोई लोन नहीं लिया था। फिर भी वहाँ से ‘नो ड्यूज’ लेने के लिए उन्हें कई चक्कर लगाने पड़े। फिर नया टेंशन सामने आया। उनसे पूछा गया-“मैरिज के लिए आपने एडवाँस लिया था? शारदा देवी शादी के बाद काम करने आई थीं। फिर उनके बेटे ने भी बिना दहेज लिए कोर्ट में लव मैरिज की थी। उनका मन हुआ पूछें, कि कोई प्रोफेसर अगर तलाक ले ले तो दुबारा शादी करने के लिए उसे मैरिज लोन मिलता है क्या? पर अब पूछकर क्या फायदा? इस टेंशन को भी झेल गईं। भाग-दौड़कर वहाँ से भी ‘नो ड्यूज’ ले लिया। सारे कागजात लेकर प्रिंसिपल से साइन करवाने पहुँची तो वे बोलीं- ‘कल मन्त्री जी कॉलेज में आ रहे हैं। अभी तक मेरे सभी भाषण आपने लिखे हैं। जाते-जाते यह भाषण भी लिखकर कल सवेरे तक ले आइए। तभी साइन कर दूँगी। फिर रात भर पेंशन के टेंशन में शारदा देवी ने प्रिंसिपल के लिए भाषण लिखा। पेंशन के सारे कागज साइन करवाकर जब शारदा देवी उन्हें ऑफिस के बड़ा-बाबू को देने पहुँची तो पता चला बड़ा-बाबू तो एक हफ्ते पहले ही रिटायर हो चुके हैं। अब वे खुद टेबल टू टेबल अपनी पेंशन के लिए दौड़ रहे हैं। उनसे नीचे जो दो बाबू, उनमें अभी सीनियारिटी की लड़ाई चल रही है। जब यह तय हो जाएगा कि दोनों में कौन बनेगा बड़ा-बाबू, तब पेंशन-पेपर्स जमा कीजिएगा।
आखिर सारे पेपर्स एक दिन जमा हो ही गए। महीनों बीत गए मगर पेंशन के बादल तक आसमान में नहीं दिखाई दे रहे थे, बरसना तो दूर की बात। किसी ने कहा-“आपको नहीं पता, जैसे दावत के बाद हाजमे की गोली, नाश्ते के बाद चाय की प्याली जरूरी है वैसे ही हर एप्लीकेशन के साथ नोटों का वज़न ज़रूरी है। आपने जरूर दान-दक्षिणा देकर खुश नहीं किया होगा।” शारदा देवी बोलीं – “आजकल निगरानी विभाग घूस देने वालों को भी पकड़ रहा है। अखबार में फोटो छप रहे हैं।” सहेली बोली – “अरे यार, खुले आम पैसे कौन देता है। लोग तो रोटी में नोटों की गड्डी लपेटकर टिफिन में भरकर हाथ में थमाते हैं। लो पराठे और परवल का अचार। भाभी ने बनाया है। घूस देने का आइडिया मालूम होना चाहिए।”
खैर, साल-भर दौड़ते-घूमते शारदा देवी को पेंशन ऑर्डर मिल गया। उन्होंने भगवान के आगे अगरबत्ती जलाई, नारियल फोड़ा, प्रसाद बाँटा और पेंशन का कागज लेकर बैंक दौड़ी गईं। पेंशन बाबू बोले – “आपका नाम क्या है?” वे बोलीं-“शारदा देवी। ” वे बोले “यह देखिए, यहाँ हारदा देवी छपा है। मैं जानता हूँ, आप ही शारदा देवी हैं, मगर मैं हारदा देवी के नाम की पेंशन आपको कैसे दे दूँ। मेरी भी नौकरी है. जाइए, यूनिवर्सिटी से नाम ठीक करवा कर लाइए।” अब पेंशन की टेंशन को झेलते-झेलते शारदा देवी पूरी तरह से समझ गई थीं कि ऊपर भगवान और नीचे क्लर्को के हाथों इंसानों की तकदीर है। दोनों को पज्ं-पुष्पं-नैवेद्यम से खुश करना ज़रूरी है वरना इस अंजुमन में आपको आना है-बार-बार…
इन दिनों ‘हारदा देवी’ को ‘शारदा देवी’ बनवाने के चक्कर में शारदा देवी चक्कर लगा रही हैं – कभी क्लर्क छुट्टी पर, कभी अफसर गायब, कभी हड़ताल। अचानक उन्हें महानायक का टी.वी.विज्ञापन याद आ जाता है – “ठंडा-ठंडा कूल-कूल तेल लगाइए। टेंशन जाएगा पेंशन लेने।” बहुत दिनों बाद मन ही मन में हँसती हैं शारदा देवी- “महानायक जी, ज़रा टेंशन को पेंशन लेने भेजकर तो देखिए। ई टेबल से ऊ टेबल तक उसे अनेक महानायकों के दर्शन होंगे…वह चक्कर काट-काटकर खुदे टेंशनिया जाएगा।”
*डॉ. गीता पुष्प शॉ की रचनाओं का आकाशवाणी पटना, इलाहाबाद तथा बी.बी.सी. से प्रसारण, ‘हवा महल’ से अनेकों नाटिकाएं प्रसारित। गवर्नमेंट होम साइंस कॉलेज, जबलपुर में अध्यापन। सुप्रसिद्ध लेखक ‘राबिन शॉ पुष्प’ से विवाह के पश्चात् पटना विश्वविद्यालय के मगध महिला कॉलेज में अध्यापन। मेट्रिक से स्नातकोत्तर स्तर तक की पाठ्य पुस्तकों का लेखन। देश की प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित। तीन बाल-उपन्यास एवं छह हास्य-व्यंग्य संकलन प्रकाशित। राबिन शॉ पुष्प रचनावली (छः खंड) का सम्पादन। बिहार सरकार के राजभाषा विभाग द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित। बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् द्वारा साहित्य साधना सम्मान से सम्मानित एवं पुरस्कृत। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन से शताब्दी सम्मान एवं साहित्य के लिए काशीनाथ पाण्डेय शिखर सम्मान प्राप्त।