काठमांडू: आज यहां आयोजित विश्व सामाजिक मंच संपन्न हुआ और समारोह के अंतिम दिन स्वीकार की गई जन घोषणाओं के बारे में बातचीत हुई। सम्मेलन में मैंने कहा कि बाली में होने वाले जल मंच में भी हम पीपल्स वॉटर फोरम आयोजित करेंगे। पहला वर्ल्ड पीपल्स पीस वॉटर फोरम चंबल, राजस्थान में मार्च 2024 में आयोजित हो रहा है। दूसरा फोरम बाली में मई के महीने में आयोजित होगा। इस अवसर पर दुनिया के अधिकतर देशों से आए सभी लोगों ने इस निर्णय पर सर्वसम्मति जताई।
जल हमारा जीवन है। जल ही धरती – प्रकृति सबको बनाता और चलता है। पानी के सहारे ही पूरा ब्रह्माण्ड चलता है, इसलिए पानी पंचमहाभूतों में पहला महाभूत है, जो जीवन की शुरुआत करता है । उसके बाद जीवन जब आगे बढ़ता है तो मिट्टी की जरूरत होती है, जल से मिट्टी की निर्मिति है । उसकी ऊर्जा और श्वसन की प्रक्रिया भी जल के बिना संभव नहीं है। इसलिए जल को समग्रता से देखना ही जीवन है।
जीवन का जब निजीकरण कर देते हैं, तब फिर कुछ बचता ही नहीं है। इसलिए जल निजीकरण के विरुद्ध सर्वसम्मति से जल की घोषणा को स्वीकार किया गया।प्रकृति और मानव का जल पर समान अधिकार है। जल को मानव निर्मित और मानवता के अनुकूल करना बहुत आवश्यक है। यदि जल का निजीकरण होगा, तो मानव और प्रकृति दोनों के अधिकार को खत्म कर देगा। पानी का निजीकरण नहीं, समुदायीकरण होना चाहिए।पानी व्यापार या लाभ के लिए नहीं है, पानी तो सबके जीवन-सुख के लिए है।
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15-19 फरवरी 2024 तक काठमांडू नेपाल में आयोजित विश्व समाजिक मंच 2024 में अधोहस्ताक्षरी संगठन, स्वदेशी लोग, सामाजिक आंदोलन और जलदूत ने निम्नलिखित मांग कीः
1. हमारा मानना है कि, जल ही जीवन है। यह पृथ्वी पर मौजूद समस्त जीवन और उनकी खुशहाली के लिए एक बुनियादी शर्त है। फिर भी दुनिया भर में अरबों लोगों को सुरक्षित रूप से पेयजल तक नहीं पहुंच पा रहा है।
2. पानी और स्वच्छता मौलिक मानवाधिकार हैं। पानी एक सार्वजनिक वस्तु है और इसे सार्वजनिक नियंत्रण के तहत बिना किसी भेदभाव के सभी के लिए सुलभ होना चाहिए, न कि कोई वस्तु। पानी के व्यक्तिगत और घरेलू उपयोग को कृषि-व्यवसाय और उद्योग जैसे उत्पादक उपयोगों की तुलना में सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
3. जल नीतियों में नदियों, झीलों, आर्द्रभूमियों, झरनों और जलभरों के स्थायी प्रबंधन को प्राथमिकता देनी चाहिए। जिससे अच्छी पारिस्थितिक स्थिति की गारंटी हो। स्वच्छ पर्यावरण व मानव अधिकार के ढांचे के लिए प्रदूषण, वनों की कटाई, मरुस्थलीकरण, जैव विविधता हानि और जलवायु परिवर्तन पर ध्यान केंद्रित हो।
4. जल और स्वच्छता सेवाओं को हमेशा मानवाधिकारों द्वारा निर्देशित किया जाना चाहिए, किसी को भी पीछे नहीं छोड़ना चाहिए। जिनमें वे लोग भी शामिल हैं, जो असुरक्षित, गरीबी की स्थिति में रहते हैं, उन्हें भुगतान करना मुश्किल लगता है। पानी और स्वच्छता सेवाओं का निजीकरण, वस्तुकरण या वित्तीयकरण मानव अधिकारों की पूर्ति के लिए जोखिम है, और इसलिए इसे वैश्विक, राष्ट्रीय या स्थानीय स्तर के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय सहयोग में नीतियों के रूप में नहीं माना जाना चाहिए, जिसके बजाय सार्वजनिक स्वामित्व को बढ़ावा देना चाहिए। इसे प्रबंधन और सार्वजनिक-सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से मजबूत किया जाए।
5. हम इस बात की निंदा करते हैं कि शेयर बाजार में पानी का कारोबार – व्यापार की वस्तु के रूप में उपयोग किया जा रहा है। हम भविष्य के बाजारों के शेयरों से इसे तुरंत निरस्त करने की मांग करते हैं।
6. गांवों, शहरों, विश्वविद्यालयों, समुदायों, पूजा स्थलों और आस्था समुदायों को नीला समुदाय बनना चाहिए और सिद्धांतों का पालन करना चाहिएः
- पानी के मानव अधिकार का सम्मान करें।
- पानी के निजीकरण को ना कहें और पानी पर सार्वजनिक नियंत्रण को बढ़ावा दें।
- बोतलबंद पानी को ना कहें, जहां नल का पानी पीने के लिए सुरक्षित है या टिकाऊ विकल्प तलाशें।
7. हम लाभ के लिए पानी के बजाय, जीवन के लिए पानी पर विश्वास करते हैं और उसे बढ़ावा देते हैं।
8. हम मई 2024 के दौरान बाली, इंडोनेशिया में विश्व जल मंच के आयोजन की भी निंदा करते हैं, जिसमें उन कॉरपोरेट्स का वर्चस्व है जो लाभ के लिए पानी हड़पने और पानी का व्यापार करने में लगे हुए हैं। एक विकल्प के रूप में हम पीपुल्स वाटर फोरम को बढ़ावा देते हैं, जो उन सभी के लिए खुला है जो जीवन के लिए जल और जल को मानव अधिकार मानते हैं।
इन मांगों पर हस्ताक्षरकर्ता संगठन थे वर्ल्ड काउंसिल ऑफ चर्चेस (सार्वभौमिक जल नेटवर्क), क्रुहा, भारत शांति केंद्र, वर्ल्ड कम्यूनियन ऑफ रिफॉर्मेड चर्चेस, पीडब्ल्यूसीडीएफ (सुखाड़ और बाढ़ विश्व जन आयोग), तरुण भारत संघ, जल बिरादरी, सीएनआई एसबीएसएस (सोशल सर्विस), फेथ जस्टिस नेटवर्क।