रविवार विशेष: विश्व को समझना होगा जल केवल आर्थिक मूल्य की वस्तु नहीं है
– डॉ राजेन्द्र सिंह*
विश्व जल दिवस 22 मार्च, 2023, को संयुक्त राष्ट्र संघ के मुख्यालय, न्यूयॉर्क में आयोजित विश्व जल सम्मेलन का उद्घाटन संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने किया। उन्होंने कहा, “यह पानी पर एक सम्मेलन से अधिक है। यह आज की दुनिया पर एक सम्मेलन है, जिसे इसको सबसे महत्त्वपूर्ण संसाधन के दृष्टिकोण से देखा जाता है।
तज़ाकिस्तान के राष्ट्रपति एमोमाली रहमोन ने प्रस्तावित किया कि, तीसरा दुशान्बे जल दशक सम्मेलन 2028 में, 2018-2028 के अंतर्राष्ट्रीय दशक की कार्रवाई के अन्त को चिह्नित करने के लिए आयोजित किया जाएगा, प्रतिनिधियों को इस बात की जानकारी दी जाएगी कि जल कार्रवाई के अगले चरण कैसे दिख सकते हैं। उन्होंने “हमारे सामूहिक प्रयासों“ की क्षमता पर बल दिया।
इस विश्व जल सम्मेलन में भारत सरकार के प्रतिनिधि के रूप में केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत और भारत के तीस असरकारी सदस्यों के प्रतिनिधि मंडल शामिल हुए। दल के सभी प्रतिभागियों ने अपनी-अपनी बातों को रखा।
इस सम्मेलन में में दो नारों की गूँज सुनाई दी- “दुनिया को सुखाड़-बाढ़ मुक्ति की युक्ति सिखाने का काम संयुक्त राष्ट्र संघ करे” और दूसरा “नीर-नारी-नदी, नारायण है, नारायण है, नारायण है”। इन नारों की गूँज तब तक रही, जब तक यहाँ की पुलिस ने इसे बंद करने का निवेदन नहीं किया। इस निवेदन के बाद भी भारतीय दल ने उनसे कहा कि, “नीर-नारी-नदी नारायण है” यह कोई आंदोलन का नारा नही है। यह तो भारत के दिल से निकली हुई आवाज़ है। क्योंकि भारत के लोग नीर, नारी और नदी को बहुत सम्मान करते हैं, इसीलिए इन्हें नारायण कहते हैं।
पहला विश्व जल सम्मेलन वर्ष 1977 में आयोजित हुआ था। इसके 46 वर्ष बाद दूसरा विश्व जल सम्मेलन-2023 में संयुक्त राष्ट्र संघ मुख्यालय, न्यूयॉर्क में आयोजित हुआ। इसमें प्रकृति और धरती के जख्म़ भरने वाले भारतीय प्रतिनिधि मंडल ने प्रतिनिधित्व किया। सुखाड़-बाढ़ मुक्ति की युक्ति खोजने वाले इस दल में भारत के 30 प्रतिनिधि तथा अफ्रीका व सभी उपमहाद्वीपों, महाद्वीपों के प्रतिनिधि भी इस सम्मेलन में सुखाड़-बाढ़ विश्व जन आयोग प्रतिनिधिमंडल से जुड़कर शामिल हुए।
संयुक्त राष्ट्र संघ के सम्मेलन से पहले 20-21 मार्च 2023 को न्यूयॉर्क में ‘सुखाड़-बाढ़ विश्व जन आयोग’ आदि संगठनों के संयुक्त तत्त्वावधान में विश्व जल सम्मेलन आयोजित हुआ। इस सम्मेलन में दुनिया के चुनिंदा प्रतिनिधियों ने भाग लिया, जिन्होंने वर्षा-जल का संरक्षण करके, धरती पर हरियाली बढ़ाई और भू-जल का पुनर्भरण किया। इसके द्वारा नदियों का पुनर्जीवन हुआ और समुदायों को अहसास जगाकर, धरती और प्रकृति के जख़्मों को भरने हेतु काम कराने का आभास कराया। इस प्रक्रिया द्वारा समुदायों में ऊर्जा का संचार हुआ और उनका लचीलापन बढ़ा। इस प्रक्रिया में प्रकृति और मानवता के प्रति बराबर सम्मान भी बढ़ा।
हमें यदि इस तीसरे विश्व युद्ध से बचना है तो धरती और प्रकृति के प्रति स्नेह जाग्रत करना होगा। स्नेह जाग्रत करने का काम भारतीय समाज सदैव करता रहा है। इसलिए भारतीयों ने इस बार भी यह तय किया है कि, हम दुनिया में प्यार का वातावरण बनाएँगे और प्रकृति के प्रेम से प्रकृति को पुनर्जीवित करने के लिए जल से शुरुआत करेंगे। जल प्रकृति को पुनर्जीवित करने वाला पदार्थ है। यह जीवन का एकमात्र पदार्थ है, जिससे जीवन की शुरुआत होती है। लेकिन आधुनिक वैज्ञानिक जल को पदार्थ नहीं मानते। यदि ये पदार्थ मानते तो जल के लिए समग्रता से जल के मूल गुण- स्नेह, शांति, आत्मीयता पर अध्यात्म का विज्ञान सृजित करते। लेकिन इस आधुनिक विज्ञान ने जल के शांति, स्नेह बढ़ाने पर काम नहीं किया। उसी का परिणाम है कि, जल को केवल बाज़ार की वस्तु बना दिया गया है; जबकि, जैसे आदमी बाजार की वस्तु नहीं होता, वैसे ही जल भी बाजार की वस्तु बनना नहीं चाहिए है।
सम्मेलन में ‘सुखाड़ बाढ़ विश्व जनआयोग’ जिसका मुख्यालय स्वीडन में तथा सचिवालय भारत के अलवर जिला में है, उसके एक प्रतिनिधिमंडल ने जल चक्र पुनर्जनन न्यूयॉर्क संकल्प, 2023, द्वारा सभी से स्वस्थ जल चक्र बनाने हेतु संवाद, सह अभ्यास और सहयोग की अपील किया।
‘सुखाड़ बाढ़ विश्व जन आयोग’ को, दुनिया में सुखाड़-बाढ़ मुक्ति के लिए, संयुक्त राष्ट्र संघ एवं दुनिया की सभी सरकारों व विश्व बैंक जैसी सभी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के साथ जुड़कर, पूरी दुनिया के लोगां के साथ मिलकर, ‘सुखाड़-बाढ़ मुक्ति की युक्ति’ खोज कर ‘सुखाड़-बाढ़ मुक्त’ दुनिया बनाने की पहल करनी होगी।
हमारे जीवनकाल में ही जल चक्र टूट गया है। हमारा समाधान पुनर्जनन है। पुनर्जनन, विचार और व्यवहार में एक आदर्श बदलाव है, जो प्रमुख मानव केंद्रित विश्व दृष्टि से परे है। हम इन दस प्रमुख बदलावों को पुनर्जनन के लिए प्रोत्साहित करते हैं : –
१) जलचक्र की मानव केंद्रित संकीर्ण समझ के परे व्यापक मानव एवं प्रकृति केंद्रित अवधरणाओं की समझ की ओर बढ़ना होगा।
२) सामुदायिक ज्ञानतंत्र प्रणाली एवं आधुनिक विज्ञान, कला और तकनीक की समग्र समझ के आधार पर, विकसित ज्ञान और विद्या का उपयोग करेंगे।
३) मानवता और प्रकृति के आपसी संबंधां की समझ प्रदान करने वाली शिक्षा(विद्या) प्रणाली, जो युवाओं को पृथ्वी के पुनर्जनन के कार्य के लिए प्रेरित करेगी।
४) पानी के दुरुपयोग को रोककर, विवेकपूर्ण विश्वस्त की भूमिका निभाते हुए जल का कुशलतापूर्वक सदुपयोग करेंगे।
५) पानी के व्यापारीकरण का विरोध करते हुए पानी के सामुदायिकरण को स्थापित करेंगे। यहाँ समुदाय का मतलब सभी प्राणियों के समुदाय से है।
६) लापरवाही और उदासीनता के परे जाकर संगठित होकर जलचक्र के पुनर्जनन के लिए काम करेंगे।
७) हर जलाशय, जल स्रोत्र एवं नदी प्रणाली एक अद्वितीय जैव विविधता से परिपूर्ण परितंत्र है। इस बात का ध्यान रखते हुए जलाशयों के साथ व्यवहार करेंगे।
८) भावी पीढ़ियों को ध्यान में रखते हुए हम पानी का अल्पकालीन से लेकर जीवन भर की प्रतिबद्धताओं तक जल के उपयोग को एक विश्वस्त की भूमिका में रहते हुए निभाएंगे।
९) जल जीवन है, जल जीवन का आधार है, वह केवल आर्थिक मूल्य की वस्तु नहीं है।
१०) नदियाँ जल सरिताएँ और सारे जीव सृष्टि को पोषित करते हुए अविरलता, निर्मलता और स्वतंत्रता से बहने का अधिकार रखती हैं।
हम सामूहिक रूप से विश्वास रखते हैं कि इस प्रतिज्ञा को पूरा करने से जलवायु परिवर्तन अनुकूलन, उनमूलन और लचीलापन हो सकता है। ये परिवर्तन बाहरी से आंतरिक समझ की ओर एक घनीभूत बदलाव होंगे, एक आध्यात्मिक जीवन का मार्ग प्रशस्त करेंगे जो सुख, कल्याण और शांति के लिए प्रयास करता है।
सभी ने संयुक्त राष्ट्र संघ से अपेक्षा की है कि, वह इन संकल्पों की पालना करे। उक्त संकल्प पत्र को 24 मार्च 2023 को संयुक्त राष्ट्र संघ के विश्व जल सम्मेलन में प्रस्तुत किया और संयुक्त राष्ट्र संघ ने इसका अंग्रेजी प्रारूप स्वीकार किया।
*जलपुरुष के नाम से विख्यात जल विशेषज्ञ।