स्टॉकहोम: 20 अगस्त 2023 से विश्व जल सप्ताह का यहां शुभारंभ किया गया। स्टॉकहोम वाटरफ्रंट कांग्रेस सेंटर की नई बिल्डिंग में इस सम्मेलन की शुरुआत हुई। इस सम्मेलन में पहले जितने ज्यादा लोग नहीं हैं लेकिन यहां बड़ी-बड़ी कंपनियों के खूब सारे लोग हैं। सरकारी विभागों के सिर्फ बड़े लोग ही उपस्थित हैं ।
पहले इस सम्मेलन में सामुदायिक और जल सुरक्षा के लिए काम करने वाले लोगों की बड़ी संख्या में उपस्थिति होती थी; लेकिन अब तो यहां ज्यादातर जल का व्यापार करने वाले लोगों की ही भीड़ है। इसलिए वॉटर टेक्नोलॉजी और वाटर डाटा इन विषयों पर ज्यादा बातचीत हो रही है। यहां दुनिया में डाटा को ग्लोबल भाषा बनाने के लिए काम करने वाली बड़ी कंपनियां है।
ग्लोबल डाटा को भाषा कैसे बनाएं? इस पर काम करने वाले लोग एक साथ थे। मैंने इनसे एक सवाल पूछा कि जो कंपनियों का डाटा और टेक्नोलॉजी है, यह बाढ़ – सुखाड़ मुक्ति में कैसे काम आएगा? टेक्नोलॉजी का मूल ज्ञान से क्या संबंध है? इनका ज्यादातर जवाब यही था कि यह कंपनियां समुदाय की सहायता (वेलफेयर) के लिए ही काम कर रही हैं।
पर मेरे अनुसार यह वेलफेयर भीख जैसा होता है, इससे समाज का भला नहीं होता। समाज की भलाई करने वाली तकनीक और इंजीनियरिंग तो तब होती है, जब समाज अपने तरीके से कुछ सोच समझकर, अपने काम करता है। जब समाज अपना काम खुद करने लगता है, तो समाज आगे बढ़ता है । समाज को पानी का एहसास और आभास जब तक खुद को नहीं होगा, तब तक समाज खुद पानी के काम में नहीं जुटेगा। किसी कंपनी की दी हुई पानी की भीख से समाज पानीदार नहीं बन सकता।
पानी एक और यह दुनिया एक है। इसलिए दुनिया को साथ लेकर, यह समझाना होगा कि, पानी केवल कंपनियों के लिए नहीं होता, यह समाज और प्रकृति के लिए है। इन पर सबका बराबर अधिकार है।
उनसे बातचीत के दौरान मैंने कहा कि 21 वीं शताब्दी में बढ़ रहे बाढ़ – सुखाड़ के संकट से समाज, प्रकृति सब त्रस्त हैं। इसलिए पानी को यदि हम पूरी प्रकृति के लिए दे देंगे तो फिर पानी का व्यापार नहीं होगा । सब यही समझेंगे कि ,पानी प्रकृति के लिए आया है और प्रकृति का इससे पोषण होता है। यदि हम पानी का बाजार बना देते हैं तो प्रकृति का पोषण रुक जाता है। इसलिए पानी का समाधान केवल तकनीकी और इंजीनियरिंग नहीं हो सकता। इसके लिए तो प्रौद्योगिकी और अभियांत्रिकी का विज्ञान और अध्यात्म के साथ समन्वय होना जरूरी है। विज्ञान और अध्यात्म के साथ यह संबंध होगा तो हो सकता है कि जो तकनीक कंपनियां खोज रही हैं, वह लोगों के काम आए। लोक विज्ञान और अध्यात्म प्रकृति के हित में कैसे हो? हमें यह सोचने की जरूरत है,तभी सबके लिए साझा समाधान मिल पाएगा।
विश्व जल सप्ताह में यहां भारत से आए चार अनुभवी वैज्ञानिक डॉक्टर रमेश सिंह, डॉ आनंदा, डॉ वेंकटेश, डॉक्टर कमलेश गर्ग वैज्ञानिकों के साथ बहुत लंबी बात हुई। मैंने इनसे कहा कि वे जो झांसी में काम कर कर रहे हैं, वह बहुत अच्छा है। इसको मैं प्रकृति और समाज के हित में देखता हूं । उससे भूजल का पुनर्भरण होगा और लोगों का भी हित होगा। पर इन वैज्ञानिकों को भी समझना होगा कि पानी का काम पूरी जलवायु परिवर्तन का काम है। इसलिए पानी, प्रकृति और मानवता के साझे काम को आगे बढ़ाने की जरूरत है। इससे दुनिया पानीदार बनेगी। अब समय है, जब हम प्रकृति को प्यार करना शुरू करें,जिससे प्रकृति हमारा सम्मान करके पोषण करेगी। हमारे प्रकृति के प्रति रक्षण, संरक्षण व पोषण से ही समाज और प्रकृति समृद्ध बनेगी। ऐसे कामों में हम सभी को एक साथ आकर जुटना होगा।
21 अगस्त 2023 को विश्व जल सप्ताह में स्टॉकहोम वाटरफ्रंट कांग्रेस सेंटर में बोलते हुए मैंने कहा कि हम पानी को प्राण मानते हैं। इसी विचार से पानी का रक्षण – संरक्षण होगा। जब दुनिया जल उपयोग की दक्षता और अनुशासित होकर उपयोग करेगी, तभी दुनिया पानीदार बनेगी। हमें जल,जंगल और ज़मीन संरक्षण करना चाहिए।
जल, जंगल और जमीन का संरक्षण करने वाले लोग कभी गरीब नहीं होते। जल, जंगल और जमीन तीनों मिलकर मानव के जीवन को आगे बढ़ाते हैं। हम सभी को इस तरह के सम्मेलनों में आकर,अपनी ऊर्जा और समझ से दुनिया को पानीदार बनाने का काम करना चाहिए।
मैंने सम्मेलन में अलग-अलग छोटे-छोटे समूहों में विभिन्न लोगों से बातचीत की। मैंने ने मूल ज्ञान वाले समुदायों के साथ बैठक की। यहां आदिवासियों के साथ वार्ता हुई। इनके मूल ज्ञान से दुनिया बाढ़-सुखाड़ के संकट से बचने की अच्छी पहल कर सकती है। बाढ़-सुखाड़ मुक्त बनाने के लिए धरती पर हरियाली बढ़ाने का काम करना चाहिए। हमारी धरती जब पानीदार होगी, तो दुनिया में सुख,समृद्धि और शांति बनी रहेगी। अपने जीवन की समृद्धि ,समाधान और शांति के काम में प्रकृति को समृद्ध करना होगा। आज हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती है कि हम अपनी धरती- प्रकृति, जल, जंगल और जमीन को संरक्षित कैसे करें?
इस सम्मेलन में गूगल, माइक्रोसॉफ्ट जैसी दुनिया की बड़ी कंपनियों की भागीदारी सबसे अधिक दिख रही है। आज उनके पास बहुत पैसा है, जिससे ये कहीं भी अपने कार्यक्रम आयोजित करने में सफल हो जाते हैं। जिनके पास पैसे नहीं है, वह हमेशा ऐसे कामों में पीछे रह जाते है। इसीलिए आज दूसरे दिन भी समुदाय के साथ काम करने वाले लोग बिल्कुल नजर नहीं। आए केवल संस्थाओं, कंपनियों के लोग तथा वैज्ञानिक, इंजीनियर ही ज्यादा नजर आए।
अब दुनिया में सम्मेलन, संगोष्ठियों और शिविरों का चलन बदल रहा है। मुझे याद है कि जब मैं पहली बार इस विश्व जल सप्ताह में बुलाया गया था, तब आधे से ज्यादा लोग समुदायों की समझ और ज्ञान की बात करने वाले होते थे। अब वैसे लोगों का इस सम्मेलन में ना होना, इस बात का प्रमाण है कि, अब दुनिया में बाजार और व्यापारिक ताकतें बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं। सामुदायिक और प्रकृति का काम करने वाली ताकतों के पास आर्थिक संकट है। स्वीडन में पहले सरकार इस सम्मेलन के लिए सामुदायिक समझ को बढ़ाने के लिए बहुत मदद करती थी। यहां की सीडा एक ऐसी संस्था थी, जो सम्मेलन को पूरा सहयोग करती थी। आज जब इनके दान-दाता की सूची देखी तो उसमे सीडा उसमे बड़ी फंडर नहीं है, अब सिर्फ दुनिया में बड़ी कंपनियां है। इस बार इसमें सरकार के लोगों की भी बड़ी कमी है।
इस दो दिन के सम्मेलन में करीब एक दर्जन से ज्यादा बैठकों में हम शामिल हुए जिसमें अधिकतर लोग व्यापारिक कार्यों की भाषा बोल रहे थे। पहले इनमें जलवायु परिवर्तन, जन, जंगल और जमीन की बहुत बात होती थी। एक दो छोटे विभागों में बातचीत जरूर जानवरों की पीड़ा पर थी, लेकिन वो भी कंपनी ने ही आयोजित किया था।इससे समझ आता है कि, हम एक अलग तरह के प्राकृतिक संकट को झेल रहे है। इसका समाधान बताने वाली भी वे ही कंपनियां है जो प्रकृति का विनाश – शोषण कर रही है। इसलिए दो दिन में मेरा विचार है कि इस सम्मेलन में केवल कंपनियां अपने ही भले की बातें कर रही हैं और सामुदाय को बाढ़ – सुखाड़ मुक्त बनाने की बात दिखाई नहीं दे रही। स्वीडन ने जरूर अपनी धरती पर जंगल को दो गुना बड़ा किया है, क्योंकि यहां की सरकारें और समुदाय सामुदायिक हित को ज्यादा संभालती थी। लेकिन अब इनका भी स्वभाव बदल रहा दिखता है और कंपनियों की सरकार बन रही है।
*जलपुरुष के नाम से विख्यात जल विशेषज्ञ।