
मीरा जल्दी जल्दी तैयार हो रही थी। आशा ने बताया था कि परामर्श का समय 10 बजे है। मीरा 10 बजे ही पहुँचना चाहती थी। पूरी रात नींद नहीं आई थी। इस कारण हाथ पैर नहीं चल रहे थे पर मीरा के मन में उत्साह था इस उम्मीद में कि शायद स्वयंसेवी सामाजिक संस्था ‘सम्पूर्णा’ में जाकर उसकी मानसिक स्थिति में कुछ परिवर्तन आ जाए। इसलिए वह एक क्षण भी गवाना नहीं चाहती थी। कई बार किसी रिश्तेदार से भी बात करना चाही मगर हर बार मीरा को मुँह की ही खानी पड़ती थी।
‘सम्पूर्णा’ महिलाओं की बात सुनती है और उन्हें बोलने का मौका देती है। मीरा ने सोचा सम्पूर्णा में जाकर उसकी समस्याओं का समाधान हो सके। उसने जल्दी जल्दी नाश्ता किया और वो ठीक 10 बजे सम्पूर्णा परामर्श केंद्र में जा पहुँची। मीरा की स्थिति विचित्र थी। अब भी वह सब कुछ परामर्शदाता को बताना नहीं चाहती थी।
12 वीं पास है तो क्या घर की मान मर्यादा का भी तो ध्यान रखना होगा। इसलिए अपने गहरे ज़ख्मो को परामर्शदाता से छुपाना चाहती थी। परामर्शदाता निष्पक्ष थी। पहले सत्र में उसने मीरा को किसी दिशा निर्देश में नहीं बाँधा केवल उसके आँसुओं और परेशानियों को निश्छल रूप से बह जाने दिया। एक घंटा हो चुका था। सत्र समाप्त हो गया। मीरा की परामर्शदाता ने कहा कि अब यह सत्र कल होगा।
मीरा अनमन्य मन से वहां से उठी और सोचने लगी कुछ भी तो नहीं हुआ यह कैसा सत्र था? पर जैसे -जैसे मीरा धीमे धीमे अपने घर की ओर जा रही थी वैसे -वैसे उसे एक अजीब सी शान्ति का आभास हो रहा था। वह केवल एक घंटा बोली और उसे किसी ने सुना। यह भाव और यह और यह कुछ कह भर देने की उपलब्धि उसे बहुत ही शांति देने वाली थी। आज वह घर में गुनगुनाते हुए अपना काम कर रही थी। घरवालों ने तो न कभी पहले उसके बुझे मन को देखा था तो अब खुश मन को देखने की ललक उनमे नहीं थी। मीरा अब केवल दूसरे सत्र का इंतज़ार कर रही थी।
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दूसरा दिन भी आ ही पहुँचा। मीरा सुबह तैयार होकर परामर्शदाता के पास पहुँच गई। अब परामर्शदाता ने कुछ बिंदुओं के माध्यम से उससे दिशा निर्देश किया। उसने उसे एक कहानी के माध्यम से बचपन से लेकर अभी तक के निर्देशित बिंदुओं पर बात करने का अनुरोध किया। मीरा ने अपने बचपन की सभी अच्छी और बुरी बातों को बिना किसी लुका छुपी के ध्यान से सुनाया। परामर्शदाता का यह ध्यान देकर सुनना मीरा के लिए एक रामबाण की तरह था। वह काफी सुकून महसूस कर रही थी। इस तरह मीरा के कई सत्र हुए।
जिस दिन मीरा का अंतिम सत्र था उस दिन मीरा और परामर्शदाता ने मिलकर यह निष्कर्ष निकाला कि पति, पुत्र और बहू इन्फीरियर ब्रांड है और मीरा की गहराई, व्यापकता और बाल सुलभता को ऐसे इन्फीरियर ब्रांड छू तो सकते है लेकिन उनको किसी प्रकार की हानि नहीं पहुँचा सकते।
अब मीरा को एक नए आत्मविश्वास का बोध हो गया था। वह इसी परिवार में रहकर इन्ही परिस्थितियों के साथ संघर्ष करेगी। मीरा ने ‘सम्पूर्णा’ के परामर्शदाता को कोटि-कोटि धन्यवाद किया।
परामर्शदाता ने बताया कि मीरा जैसी लाखों बहनें इस दुनिया में लगातार संघर्ष करती है लेकिन हर जगह कही लिंग की सत्ता, कही पढ़ाई – लिखाई की सत्ता तो कही पैसों का मंत्र इंसान को इंसान नहीं बनने देता पर ‘सम्पूर्णा’ जैसे परामर्श केंद्र अनेकों बहनों को आत्मबोध से जीवन की इस डगर में चलने का साहस और धैर्य प्रदान करता है।
*डॉ शोभा विजेंदर दिल्ली स्थित एनजीओ, संपूर्णा, की संस्थापिका और अध्यक्षा हैं, जिसकी स्थापना 1993 में हुई थी।