– ज्योतिष्पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानंदः सरस्वती
सब इस बात को स्पष्ट रूप से समझते ही हैं कि उत्तराखण्ड में आर्थिक उन्नति के पीछे धार्मिक तीर्थ यात्राओं का बहुत बड़ा योगदान है। भगवान वेदव्यास जी ने वेद के चार विभाग किए, 18 पुराणों व उप-पुराणों की रचना की और उसमें यह स्पष्ट रूप से निरूपित किया कि भारत के इन तीर्थों में जाकर दर्शन करने से पुण्य लाभ होगा।
यह सर्वविदित है कि शीतकाल के छः मास उत्तराखण्ड के चार धामों बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री की बागडोर देवताओं को सौंप दी जाती है और उन स्थानों पर प्रतिष्ठित चल मूर्तियों को शीतकालीन पूजन स्थलों में विधि-विधान से उत्सव सहित विराजमान कर दिया जाता है। इन स्थानों पर भी देवता की पूजा छः मास तक पारम्परिक पुजारी आदि निरन्तर करते रहते हैं परन्तु सामान्य लोगों में यह धारणा बनी रहती है कि अब छः मास के लिए पट बन्द हुए तो देवताओं के दर्शन भी दुर्लभ होंगे।
उत्तराखण्ड स्थित चार धाम की पूजा निरंतर चलती रहती है, केवल पूजा स्थलों में परिवर्तन होता है। लेकिन लोगों को इस बारे में जानकारी न होने के कारण श्रद्धालु खुशीमठ , मुखीमठ, ऊखीमठ और जोशीमठ नहीं आ पाते हैं।
देश दुनिया में लोगों के बीच में यह भ्रम की स्थिति है कि उत्तराखण्ड स्थित चारों धामों के कपाट बंद होने के बाद पूजाएं भी बंद हो जाती हैं। जन-सामान्य की इसी अवधारणा को हटाने और यह संदेश देने के लिए कि उत्तराखण्ड में चारों धामों की पूजाएं निरंतर चलती रहती हैं, इन स्थानों मे अधिक से अधिक तीर्थ यात्री आ कर पुण्य अर्चित करें, इसी उद्देश्य के लिए उत्तराखण्ड की सप्त दिवसीय शीतकालीन चार धाम तीर्थ यात्रा को आरम्भ कर देवताओं के इन शीतकालीन प्रवास स्थल पर दर्शन की परम्परा का शुभारम्भ 27 दिसम्बर 2023 हुआ।
आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा ढाई हजार वर्ष पूर्व स्थापित परंपराओं का निर्वहन करते हुए सबसे पहले हरिद्वार के चण्डी घाट से गंगा पूजा कर शीत यमुनोत्री सुखीमठ, शीत गंगोत्री मुखीमठ, शीत केदार ऊखीमठ और शीत बदरीनाथ जोशीमठ में पूजा करके उद्धव जी और कुबेर जी की पूजा के बाद पुनः भगवती भागीरथी गंगा जी की विशेष पूजा और महा आरती सम्पन्न की गई।
शीतकालीन चार धाम तीर्थ यात्रा एक ऐतिहासिक पहल है, और ज्ञात इतिहास में पहली बार कोई शंकराचार्य ने ऐसी यात्रा की है। विश्वभर में सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व होना चाहिए। सनातन धर्म के अनुसार ही बातों को आगे किया जाना चाहिए। आज देश में जो भी धार्मिक यात्राएं चल रही है वे सभी हमारे पूर्वज ऋषि-मुनियों की देन है और ऋषि-मुनि, साधु-संतो ने ही इस तीर्थ यात्रा को आगे बढ़ाया।
शंकराचार्यों, ऋषियों, मुनियों ने जो संस्कृति शुरू की है उसको हम आगे बढ़ा रहे हैं। सनातन धर्मबलंबियो से आग्रह करते हैं कि वह शीतकाल में भी धर्मों की यात्रा करें। शीतकाल में सभी तीर्थस्थलों की ऊर्जा बडी अद्भुत रहती है, और आनन्द भी बहुत प्राप्त होता है। इस आनन्द को प्रत्येक आस्तिक सनातनी प्राप्त करें इसलिए हमने ये यात्रा की है, और जब लोग इन स्थानों पर जाएंगे तो निश्चित ही स्थानीय लोगों का भौतिक विकास अवश्य होगा। लोगों को रोजगार के अनेक अवसर मिलेगा।
आध्यात्मिक आनन्द की भूमि में जब हम कष्ट सहकर तीर्थ यात्रा करते हैं तो वो भौतिक रूप से शायद कठिन हो लेकिन उस कठिनाई से की गई यात्रा का परिणाम बहुत ही अधिक होकर हमें प्राप्त होता है । उसी अद्भुत आनन्द से ओतप्रोत है ये शीतकालीन यात्रा जहां पर प्रकृति और परमेश्वर प्रत्यक्ष दर्शन दे रहे हैं इस शीतकाल में।
यह यात्रा 27 दिसंबर 2023 को प्रातः 8 बजे हरिद्वार स्थित- श्रीशंकराचार्य मठ, कनखल, हरिद्वार से निकलकर – ऋषिकेश – देहरादून – मसूरी – यमुना पुल – नैनबाग – डामटा – नौगाव – बड़कोट – छटांगा- खरादी – कुथनौर- कुनसाला – राना – हनुमान चट्टी – जानकी चट्टी – होते हुए यमुना जी की शीतकालीन पूजा स्थली खरसाली गांव पहुंची जहां सायं 3:30 बजे से यमुना मन्दिर परिसर में धर्मसभा और यमुना जी की आरती हुई। 28 दिसंबर को प्रातः 10 बजे यमुना जी की शीतकालीन पूजा स्थली खरसाली गांव से प्रस्थान कर – बडकोट- होते हुए यह यात्रा उत्तरकाशी पहुंची। यहां श्री विश्वनाथ संस्कृत महाविद्यालय, उजेली, उत्तरकाशी में रात्रि-विश्राम के बाद 29 तारीख को प्रातः 8 बजे भटवाडी- गंगनानी – हर्षिल होते हुए गंगा जी की शीतकालीन पूजा स्थली मुखवा गांव पहुंची और वहां भगवती जी की पूजा और महा आरती तथा भंडारा के पश्चात मध्याह्न 1 बजे यात्रा उत्तरकाशी की ओर रवाना हो गयी। सायं 5 बजे गंगा घाट, कैलास आश्रम, उजेली, उत्तरकाशी में भगवती गंगा जी की महाआरती हुई। अगले दिन प्रातः भगवान काशी विश्वनाथ जी के दर्शन के बाद 9 बजे उत्तरकाशी से चमियाला – घनशाली – जाखोली- तिलवाडा- अगस्तमुनि- होते हुए यात्रा भगवान केदारनाथ जी की शीतकालीन पूजा स्थली ऊखीमठ के ओंकारेश्वर मन्दिर में सायं 3:30 बजे पहुंची जहां भगवान ओंकारेश्वर जी की महाआरती और प्रसाद वितरण किया गया।
ऊखीमठ से दो रास्ते हैं और मौसम के आधार पर यह तय किया जाता है कि किस रास्ते पर जाना चाहिए। पहला रास्ता ऊखीमठ से अगस्तमुनि- तिलवाडा- रुद्रप्रयाग- गौचर – कर्णप्रयाग – नन्दप्रयाग – चमोली – पीपलकोटि होते हुए जोशीमठ जाता है। दूसरा रास्ता ऊखीमठ से चोपता – मण्डल- गोपेश्वर- चमोली- पीपलकोटि- होते हुए जोशीमठ पहुँचता है ।
दिनांक 1 जनवरी 2024 को प्रातः 8 बजे नृसिंह मन्दिर परिसर में महापूजा और फिर प्रातः 9 बजे विष्णुप्रयाग के विष्णु मन्दिर में महापूजा तथा प्रातः 10 बजे पाण्डुकेश्वर स्थित श्री योग-ध्यान बदरी मंदिर में महापूजा, प्रसाद वितरण कर यात्रा का ज्योतिर्मठ आगमन हुआ जहां दोपहर 12 बजे भण्डारा का आयोजन था। यहाँ बदरिकाश्रम, हिमालय में रात्रि-विश्राम के बाद अगले दिन प्रातः 8 बजे ज्योतिर्मठ से प्रस्थान कर पीपलकोटि- चमोली- नन्दप्रयाग- कर्णप्रयाग – गौचर – रुद्रप्रयाग में अल्प विश्राम के बाद यात्रा रुद्रप्रयाग से – श्रीनगर- देवप्रयाग – ऋषिकेश होते हुए हरिद्वार पहुंची।
तीर्थ पुरोहितों के द्वारा ही धर्मों का व्यापक तौर से प्रचार-प्रसार किया गया है और शीतकालीन यात्रा के प्रचार प्रसार के लिए भी उन लोगों को प्रयास करना चाहिए। शीतकालीन पूजा स्थलों की जानकारी अधिक से अधिक लोगों को हो इसके लिए सरकार के साथ ही स्थानीय और धार्मिक गतिविधि से जुड़े लोगों को पहल करनी होगी। शीतकालीन चार धाम यात्रा से उत्तराखण्ड प्रदेश का राजस्व तो बढ़ेगा ही साथ मे शीतकाल में चार धाम यात्रा करने वाले भक्तों को दस गुणा पुण्य लाभ मिलेगा और 6 महीने तीर्थ यात्रियों के न आने से आर्थिक स्थिति गड़बड़ होने अनेकों परेशानी का सामना करने वाले स्थानीय लोगों को रोजगार भी प्राप्त होगा। देव-दर्शन से जहाँ एक ओर यात्रियों को धार्मिक-आध्यात्मिक लाभ होगा वहीं इस यात्रा से पहाड़ के स्थानीय लोगों का भौतिक लाभ भी निहित है।
इस यात्रा के विषय निरन्तर चर्चा बनाए रखने की आवश्यकता है ताकि सब लोग जान सकें। पुरोहितों, हकहकूकधारियों तथा समस्त संबन्धितो से अनुरोध है कि सब लोग इस यात्रा को जन जन तक पहुंचाने के लिए इसका प्रचार प्रसार करें साथ ही उत्तराखण्ड सरकार जैसे ग्रीष्मकालीन यात्राओं की बुकिंग करती है उसी तरह शीतकालीन यात्राओं के विस्तार के लिए बुकिंग आरम्भ कर दे।
सौजन्य: संजय पाण्डेय, ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगदगुरु शंकराचार्य के मीडिया प्रभारी