प्राचीन समय से देश की अर्थव्यवस्था में त्योहारों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। अब नए ज़माने में बाजारों में खरीदारी के साथ लोग त्योहारों पर आने वाले शुभ मुहूर्त के अनुसार शेयर ट्रेडिंग, आईपीओ और अन्य डिजिटल सिक्योरिटीज में निवेश करने लगे हैं। ऐसा अनुमान लगाया गया है कि त्योहारों पर खरीद एवं अन्य सेवाओं के जरिए करीब साढ़े चार लाख करोड़ रुपए की तरलता का बाज़ार में आएगा। पिछले साल यह खरीदारी साढ़े तीन लाख करोड़ रुपए की रही थी।
इस साल त्यौहारी बिक्री पर नजर रखने वाले अखिल भारतीय व्यापारी संगठन कनफ़ेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) का अनुमान है कि छठ पूजा से देश भर में लगभग 12,000 करोड़ रुपए का व्यापार होगा। कैट के महामंत्री तथा दिल्ली के चांदनी चौक से सांसद प्रवीण खंडेलवाल का कहना है कि त्योहारों से न केवल अर्थव्यवस्था पर असर पड़ता है बल्कि बड़े पैमाने पर लाखों लोगों को रोज़गार भी मिलता है। खंडेलवाल ने कहा कि छठ पूजा से व्यापार और स्थानीय उत्पादकों को भी सीधा लाभ पहुँचता है।
वैसे तो भारत में सालों भर त्योहारों का सिलसिला चलता है लेकिन अक्टूबर और नवम्बर के महीने में बड़े त्यौहार आते हैं जिसमें बड़ी खरीदारी होती है जिससे देश की अर्थव्यवस्था को बल मिलता है। गणेश चतुर्थी, नवरात्रि, दशहरा, दीपावली, होली, ओणम, रामनवमी, महाशिवरात्रि, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी आदि त्योहारों को देश में सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में गिना जाता है। इस दौरान स्थानीय स्तर पर तैयार की गई वस्तुओं की मांग बढ़ती है। इससे हर क्षेत्र में स्थानीय अर्थव्यवस्था को गति मिलती है।
भारतीय संस्कृति सबसे प्राचीन समृद्ध है। हम संस्कृति के अनुसार पर्व, परंपराएं और पूजन का विधान पूरा करते हैं। हर भारतीय त्यौहार का एक वैज्ञानिक महत्व भी है। हमारा हर पर्व रहन सहन, खान पान, फसलों व प्रकृति के परिवर्तनों पर आधारित है। हमारे पर्वों में जहां पौराणिक कथाओं का उल्लेख मिलता है, वहीं खगोलीय घटना, धरती के वातावरण, मनुष्य के मनोवैज्ञानिक व सामाजिक कर्तव्यों की सीख भी परिलक्षित होती है। सारे त्योहारों का हमारे जीवन में बहुत गहरा महत्व है। यह सारे त्यौहार हमारी सभ्यता और संस्कृति में इस तरह से रचे बसे हैं कि असल में इन्हीं के माध्यम से समरस सामाज का निर्माण होता है।
हमारे त्यौहार सांस्कृतिक एकता की सबसे बड़ी धरोहर होने के साथ ही अर्थव्यवस्था का पहिया भी है। हमारे पूर्वजों ने इन त्यौहारों में बड़ी शालीनता से हमारी संस्कृति ने आर्थिक और सामाजिक गतिविधियां भी जोड़ दी। त्यौहारों से अर्थव्यवस्था को तो बल मिलता ही है इससे सामाजिक सदभाव भी प्रगाढ़ मिलता है। भारतीय त्योहारों के दौरान बड़े पैमाने पर मेले लगते हैं, छोटे बड़े कस्बों में भांति भांति आयोजन होते हैं। लोग जमकर खरीदारी करते है। नए कपड़े पहनते हैं, नए वाहन खरीदते हैं। एक तरह से यह त्यौहार हमारी धर्म और संस्कृति के साथ ही हमारी अर्थव्यवस्था का सबसे प्राचीन पहिया है। यह अमीर को खर्चे खर्चे करने का और ग़रीब को नई आमदनी हासिल करने का मौका देते हैं। भगवान गणेश की प्रतिमाओं का निर्माण करने वाले वाले और रावण के पुतले बनाने वाले ज्यादातर लोग कारीगर वर्ग से आते हैं। वे साल भर मेहनत करते हैं। इसी तरह दीपोत्सव पर सजने वाली बाज़ार के लिए मिट्टी के दिए, मूर्तियां, सजावटी सामान आदि बाजार में लाते हैं।
त्योहारों के साथ बढ़ रहे पर्यटन ने स्थानीय उद्योगों के लिए नई उम्मीद जगाई है। हाल ही में आयोजित मैसूर का 409 साल पुराना दशहरा मेला इसका बहुत बड़ा उदाहरण है, जिसे देखने एक लाख से ज्यादा पर्यटक पहुंचे। इसके साथ ही विदेशी पर्यटकों के लिए ‘कुंभ’ सबसे बड़े कौतुहल का विषय है। पिछले साल प्रयागराज में हुए कुंभ से भारतीय पर्यटन खासकर उत्तर प्रदेश के पर्यटन विभाग को अप्रत्याशित लाभ हुआ।
भारत में हिंदू धर्म के साथ ही अन्य धर्मों के त्यौहार भी उसी उल्लास के साथ मनाए जाते हैं। ईद, बकरीद, क्रिसमस आदि में भी अच्छी खरीदारी होती है। भारत के बारे में यदि यह कहा जाए कि यहां एक तरह से संस्कृति की अर्थव्यवस्था ही चल पड़ी है, तो यह अतिश्योक्ति नहीं होगा।