रविवारीय
– दिनेश दिनकर
“मौत के आगोश में अब कोई और ना जाए
थक गयी संवेदनाएं, अब कंठ भर आये।
शव नदी में बह रहे रोको कोई
जा रहे अपने कई टोको कोई।
मिन्नतें रब से करो, अब ना सताए
थक गयी संवेदनाएं, अब कंठ भर आये।”
(‘त्रासदी का दौर‘ – राजपाल सिंह)
कोरोना काल पर यूं तो कई किताबें और लेख लिखे जा चुके हैं, लेकिन समय के फेर में कई दब गये तो कई पाठकों तक पहुंच ही नहीं पाए लेकिन इस दौर में कुछ लेखक ऐसे भी रहे जिनकी किताब पाठकों तक पहुंची भी और लोगों ने सराहा भी। ऐसे ही लेखक है मयंक पांडे जिनकी किताब ‘पलायान पीड़ा प्रेरणा’ ने सबका ध्यान खींचा और इस किताब की गिनती कोरोना काल पर सबसे ज्यादा बिकने वाली किताबों में शामिल हो गई। दूसरी किताबों में विनोद कापड़ी की 1232 किमी (कोरोना काल में एक असंभव सफर) का नाम है। इस किताब को भी पाठकों का प्यार मिला, किताब ने चर्चा बटोरने का भी काम किया।
कोरोना काल की तीसरी किताब की बात करें तो ये किताब कवि राजपाल सिंह ने लिखी जिसका नाम त्रासदी का दौर है। इस किताब ने कम समय में ही सुर्खियां बटोरने का काम किया और इसके टीजर को अब तक अलग-अलग पेज से शेयर किया जा रहा है, जिसे लाखों लोगों द्वारा देखा जा चुका है।
मयंक पांडे की पलायन पीड़ा प्रेरणा की बात करें तो इस किताब में कहानियों के माध्यम से अपनी बात कही गई और कोरोना काल के दर्द को आसान भाषा में परिचित कराया गया, जिसे पाठकों ने समझा और इस किताब को अपना प्यार दिया। वहीं सोशल मीडिया पर मयंक पांडे की सक्रीयता का फायदा उनकी किताब को मिला और किताब पाठकों तक पहुंच सकी और ये किताब रिलीज के एक साल बाद भी कोरोना काल की सबसे चर्चित किताब में अब तक बनी हुई है।
फिल्म डायरेक्टर विनोद कापड़ी की किताब ने शुरूआत में चर्चा बटोरने का काम किया था, लेकिन उसका कारण उनकी फिल्मों से जुड़ा होना और सोशल मीडिया पर बड़ा चेहरा भी माना जाता है।
त्रासदी का दौर, कोरोना काल की कविताएं – इस किताब को वैसे तो इतना महत्व पाठकों के द्वारा नहीं दिया जा रहा था, लेकिन लेखक राजपाल सिंह के किताब के टीजर ने लोगों का ध्यान खींचने का काम किया। किताब के सरल भाषा में होने का फायदा भी किताब को मिला और किताब ‘पलायन पीड़ा प्रेरणा’ के बाद कोरोना काल की किताबों में चर्चा में आ गई है।
कोरोनाकाल के हर पहलू पर चर्चा करती ‘त्रासदी का दौर‘ में कवि ने त्रासदी का बहुत ही जीवंत विवरण दिया है ।इस काव्य संग्रह के जरिए कवि शासन-प्रशासन को कठघरे में खड़ा करते हुए उन लोगों पर भी नाराजगी जताते हैं जो वैश्विक महामारी में बेईमानी, भ्रष्टाचार, गैर-कानूनी कृत्य, कालाबाजारी करते हुए अमानवीय कृत्य का परिचय देते हैं और इस बीमारी के खिलाफ चल रही जंग को कमजोर करते हैं। जैसे –
“कोरोना काल में अस्पतालों के हालात निराले थे
हाल बहुत बिगड़े थे , ये कहाँ सम्भलने वाले थे।
कुछ अस्पतालों में हो रहा था मरीजों का शोषण
जैसे कोई कालाबाजारियों का करा रहा हो वित्तीय पोषण।”
कोरोनाकाल में स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव से तड़प रहे मरीजों की लाचारी और शासन-प्रशासन की अव्यवस्था पर दुख व्यक्त करते हुए युवा कवि लिखते हैं…”बेबसी और सिसकियों का दौर/चीखों और चित्कारों का दौर/ हमने देखा है एक त्रासदी का दौर।”
प्रेम जैसे सार्वभौमिक विषय पर उपन्यास लिख चुके युवा रचनाकार राजपाल सिंह चौहान से पाठक श्रृंगार रस पर आधारित पुस्तकें लिखने को लेकर उम्मीद कर रहे थे जोकि स्वाभाविक है। किन्तु रचनाकार ने कोरोनावायरस जैसे एक सार्वभौमिक विषय पर ही काव्य संग्रह प्रकाशित करते हुए मौजूदा माहौल में एक संवेदनशील कवि होने का परिचय दिया है।
उदाहरण के तौर पर कोरोना सेनानियों को समर्पित एक कविता में उन्होंने लिखा:
“जाती न देखि धर्म न देखा
कर्त्तव्य मार्ग पर अड़े रहे।
राह भी रोकी महामारी ने
फिर भी मैदान पर खड़े रहे।”
कुल पैंतीस रचनाओं को संकलित किए हुए काव्य संग्रह ‘त्रासदी का दौर‘ वैश्विक महामारी कोरोनावायरस, इसके सामाजिक-आर्थिक-पारिवारिक-राजनीतिक-सांस्कृतिक प्रभावों को लेकर चर्चा कर रहा है तथा युवा कवि की युवा कलम भविष्य को लेकर भी कुछ सुझाव यहां शासन-प्रशासन, समाज को दे रही है।
त्रासदी का दौर शीर्षक काव्य संग्रह में कुछ रचनाओं के शीर्षक मात्र से ही पाठक कविता के केंद्र बिंदु को लेकर सटीक अनुमान लगा सकते हैं। ‘लाशों की नदी’ , ‘काले लोग’ , ‘कोरोनाकाल में अस्पताल’ , ‘भले हो जाए सर कलम’ , ‘आक्सीजन रेल’ , ‘सरदार तो सरदार होते हैं’ , ‘तड़पता इस काल में हर आदमी’ , ‘गांव के लोग’ , ‘थक गई संवेदनाएं’ , ‘कोरोना सेनानियों को समर्पित’ इत्यादि रचनाओं के शीर्षक मात्र से पाठक कविता के विषय को लेकर आश्वस्त हो सकते हैं।
रचनाओं में संवेदनशीलता की अहम भूमिका निभाने हेतू प्रयुक्त युवा चित्रकार निहारिका बिष्ट की चित्रकारी से काव्य संग्रह में एक जीवंतता उभरती है। आने वाले समय में जब भी कहीं कोरोनाकाल और लॉकडाउन को लेकर कोई चर्चा होगी तो ‘पलायान पीड़ा प्रेरणा’, ‘ 1232 किमी’ और ‘त्रासदी का दौर‘ ज़रूर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाएंगे ।
किताब पलायन पीड़ा प्रेरणा को कोरोना कालखंड की महत्त्वपूर्ण किताबों में शामिल करने के लिए, ग्लोबल बिहारी और दिनेश दिनकर जी का आभार एवं धन्यवाद।
आप जनमानस की जिजीविषा और समय की दयालुता को प्रेरणा के धरातल पर रखकर लिखने का प्रयास किया है।