कोटा: स्वच्छता अभियान यानि कैमरे के सामने झाड़ू लगाने का फैशन! हमारे देश में प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और कलेक्टरों तक यह फैशन सालों से चला आ रहा है कि झाड़ू लगाकर कचरा पात्र में कचरा डाल दिया जाए। उसके बाद वह कचरा कहां जाता है अधिकांश लोगों को पता भी नहीं है। हमेशा कहा जाता है कि सरकार कुछ नहीं करती। अधिकारी जिम्मेदारी नहीं निभाते।दूसरी ओर से कहा जाता है कि जनता सहयोग नहीं करती। यह सिलसिला लगातार चलता रहता है और समाधान दूर भागता रहता है। अभी तक जितने भी स्वच्छता अभियान चले उनमें सही संदेश जनता तक पहुंचने में सरकारें नाकामयाब रही।
एक स्वच्छता अभियान 7 साल पहले कोटा में बंद हो गया था उसमें सही संदेश देने की कोशिश की गई। वह था ठोस, तरल संसाधन प्रबंधन (एसएलआरएम)। सफाई व्यवस्था में अब तक का सबसे आधुनिक और कारगर मॉडल इसी को माना गया है। दुर्भाग्य से हमारी नगरीय शासन प्रणाली जिसे स्वायत्त शासन विभाग कहा जाता है इस मॉडल के प्रति गंभीर नहीं रही।
जवाब देह लोगों द्वारा बातचीत में जरूर कचरे के वर्गीकरण पर जोर दिया जाता है लेकिन इसे कौन करेगा कैसे करेगा? इस पर प्रशासन मौन रखता है। दूसरी प्रमुख परेशानी नगरीय स्वायत्त शासन विभाग को इस बात में आ रही है कि गंदगी करने वालों के खिलाफ कोई दंड का प्रावधान नहीं किया जाता।
कोटा शहर में आगामी 1 मार्च 2024 से स्वच्छता अभियान चलाए जाने के लिए कुछ उत्साही युवाओं ने पहल की है। अब तक चले विभिन्न स्वच्छता अभियानों की तरह इसका हश्र बुरा नहीं होना चाहिए, इसी सद्भावना के साथ लिखने की इच्छा हुई है कि जो भी अभियान चले उसकी सार्थकता होनी चाहिए ना कि मात्र फैशन के लिए अभियान चलाया जाए।
इस अभियान से कोटा एनवायरमेंटल सैनिटेशन सोसायटी भी उत्साहित है। गत दिनों कोटा नगर निगम के सभागार में आयोजित बैठक में शहर के प्रबुद्ध नागरिकों ने जो चिंता व्यक्त की इस चिंता में हम भी शामिल हुए।
अभियान चलाने वालों को रिड्यूस- रीयूज और रीसाइकलिंग की प्रक्रिया को तुरंत शुरू करना चाहिए। यही सार्थक संदेश जन जन में स्थापित कर देना चाहिए। कोटा शहर में चंबल की ओर जा रहे गंदे नालों का रुख मोड़ने में नगर निकाय क्यों लापरवाही बरत रहा है? इसके लिए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के आदेशों और निर्देशों की क्या आवश्यकता है? ये तो उनका मूलभूत कर्तव्य है।
पॉलीथिन और प्लास्टिक की समस्या के निस्तारण के लिए नगरीय निकायों के पास कोई प्रभावी तंत्र नहीं है। न ही उसको लागू करने की इच्छा शक्ति। केवल पॉलीथिन प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगा देने की कागजी कार्रवाई से इस समस्या का समाधान नहीं होने वाला।
कचरे का उत्पादन बंद करना ही कचरे की समस्या का निदान है। वैसे भी कचरा नामक शब्द ईश्वर की कृति में कहीं भी नहीं है। कचरे को कंचन बनाने की प्रक्रिया शुरू किए बिना हर अभियान पर सवालिया निशान लगते ही रहेंगे।
एसएलआरएम को संचालित करने में केईएसएस द्वारा कचरे के पृथक्कीकरण पर जोर दिया है। इस प्रक्रिया से हम 70% तक कचरे की समस्या का निदान कर सकते हैं। इसके लिए प्रशिक्षित कर्मचारियों का होना बहुत आवश्यक है मौजूदा सफाई व्यवस्था में लगे कर्मचारियों को नए मॉडल का प्रशिक्षण नहीं है। इसके लिए विगत नगर निगम के एकीकृत बोर्ड ने 400 लोगों को प्रशिक्षित किया था लेकिन बाद में उनसे काम नहीं लिया जोकि कोटा का दुर्भाग्य है। इस नए आधुनिक तकनीक के मॉडल से कचरे के पहाड़ों का निस्तारण स्वत:ही हो जाएगा जब कचरा बना ही बंद हो जाएगा। एक ट्रेचिंग ग्राउंड जो अभी नांता में चल रहा है उसके निस्तारण की प्रक्रिया बड़े जोर शोर से बताई जाती है लेकिन कचरे की फैक्ट्रियां जो हर घर और बाजार में चल रही हैं उनको रोकने का सिस्टम हमारे नगर निगम के तंत्र ने कतई नहीं किया है।इसी का परिणाम है कि आज हर गली मोहल्ले नाले, नालियां, चौराहा और उन पर मंडराते मवेशी,यह दृश्य हर जगह दिखाई दे रहा है।
राजस्थान में नई सरकार बनी है तो उसे इस दिशा में ठोस कार्यक्रम हाथ में लेने होंगे। इसके लिए आवश्यक है कि नगर निगम और नगर पालिकाओं में पर्याप्त और प्रशिक्षित कर्मचारियों की भर्ती की जाए जो सफाई अभियान को गति प्रदान कर सके। मौजूदा हालात तो यह है कि नगर पालिकाओं में भी सफाई के काम को इंजीनियर ही संभाले हुए हैं। जबकि यह काम इंजीनियरिंग का कम कुशल और प्रशिक्षित श्रमिकों का ज्यादा है। मुख्य स्वास्थ्य निरीक्षक का पद कई वर्षों से खाली चल रहा है। इसी प्रकार उद्यान अधीक्षक का पद 15 वर्षों से रिक्त चल रहा है। वार्ड स्तर पर सफाई निरीक्षक के कई पद खाली चल रहे हैं। इन पर भी सरकार को ध्यान देना होगा। यहां पर वोटों की राजनीति से ऊपर उठने की जरूरत है।सफाई व्यवस्था को भी विकास प्रक्रिया का अंग माना जाना चाहिए। केवल सीमेंट कंक्रीट के स्ट्रक्चर खड़े कर देना ही विकास नहीं है बेहतर सफाई व्यवस्था की प्रणाली को लागू करना भी विकास ही है ,और इस में हम क्यों पिछड़े हुए हैं, इसकी भी समीक्षा होनी चाहिए।
हमारे देश में इंदौर, उज्जैन और छत्तीसगढ़ में रायपुर का उदाहरण दिया जाता है क्यों ना स्मार्ट शहर कोटा को भी इस उदाहरण में शामिल किया जाए? यह काम कोई मिसाइल टेक्नोलॉजी जैसा तो नहीं है एक सामान्य सी प्रक्रिया है जिसको दृढ प्रशासनिक इच्छा शक्ति से लागू किया जा सकता है। इसके लिए आवश्यक है कि अभियान भी स्मार्ट चले।
*स्वतंत्र पत्रकार एवं अध्यक्ष कोटा एनवायरमेंटल सैनिटेशन सोसायटी