सप्ताहांत: सुखी एवं प्रसन्न रहने के लिए प्रकृति से जुड़ें
– प्रशांत सिन्हा
भागदौड़ भरे जीवन में लोग इतने व्यस्त होते हैं कि ईश्वर की अनुपम कृति प्रकृति से अनजान रहते हैं। मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि व्यक्ति प्रकृति के जितना समीप होता है सुख का सूरज उतनी ही शीघ्रता से उगता प्रतीत होता है। आजकल लोग क्रोधी स्वभाव के बनते जा रहे हैं, इसका कारण ही यह है कि वे प्रकृति से दूर हो गए हैं। बहुत कम व्यक्ति अब प्रकृति के परिर्वतन को महसूस करते हैं या आनंद लेते हैं। बचपन इसलिए आनंद में बीतता है क्योंकि हम उस कालखंड में प्रकृति से जुड़े रहते हैं। बरसात में बच्चे भीगना चाहते हैं या हाथों को फैलाकर बूंदों को महसूस करते हैं। तितलियों के पीछे भागते हैं, पेड़ों पर उतरते हैं, चढ़ते हैं। इस तरह प्रकृति से तालमेल बनाकर इसका आनंद लेते हैं। लेकिन बड़े होने पर समाज की चुनौतियां भर दी जाती है, और हम सफलता असफलता के चक्कर में में फंसते चले जाते हैं। नतीजा यह होता है कि प्रकृति के इस आनंद से वंचित रह जाते हैं।
हमारा उद्देश्य प्रकृति के साहचर्य मे रहकर आनंद लेने का प्रयास होना चाहिए जैसे पेड़ पौधों को आलिंगन में लेकर, पशुओं के संपर्क में रहकर या खुली आंखों से हरियाली को देखकर आदि। प्राकृतिक दृश्यों को निहारकर भी हम पोषण पा सकते हैं। यह फिलाडेल्फिया के एक अस्पताल में पर्यावरण मनोविज्ञान को लेकर एक शोध से पता चलता है। जिसमें कुछ ऐसे रोगियों को लिया गया जिन्हें पित्ताशय की बीमारी थी। सभी की एक ही स्थिति थी। कुछ रोगियों को एक ऐसे कमरे में रखा गया था जहां से सिर्फ ईंटों से बनी इमारतें दिखती थीं एवं कुछ ऐसे रोगियों को रखा गया था जहां से सिर्फ पेड़ पौधे दिखते थे। शोध में पाया गया कि जिन लोगो को पेड़ पौधे दिखते थे वे जल्द ठीक हो गए जबकि ईंटों की बनी इमारतें देखने वालों की बीमारी देर से ठीक हुआ। इससे यह पता चला कि हरियाली देखने मात्र से ” हीलिंग प्रोसेस ” बढ़िया रहा। तभी तो प्रकृति को ” मदर नेचर ” कहा जाता है। यह धरती हमारी मां हैं और अस्तित्व का कारण भी है। हमें पोषित करने के लिए यह धरती प्रकृति के जरिए हर वो चीज हम तक पहुंचाती है जिसकी हमें जरूरत होती है। पृथ्वी जननी है तो प्रकृति पोषक है।
अच्छा यही है कि हम प्रकृति की गोद में फले फूलें। इसके लिए ध्यान रखना होगा कि हम अपने आस पास के वातावरण को सुरम्य और सौम्य बनाएं। मनोवैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन से स्पष्ट किया है कि जो स्थान प्राकृतिक संपदा से भरपूर है, जहां हरियाली, नदी, तालाब है और प्रदुषण से मुक्त है वहां जाने पर अपने व्यवहार में सौम्यता एवं मन में प्रसन्नता अनुभव किया जा सकता है। प्रकृति से जुड़ने के और भी उपाय हैं जैसे हमें सूरज, हवा, धरती, आकाश से जुड़ना चाहिए। माना जाता है कि सुबह सूरज के सामने आने से हमसे जुड़ी नाकारात्मक ऊर्जाएं दूर हो जाती है। उसी प्रकार भवन से बाहर जा कर अपनी त्वचा पर हवा के स्पर्श को महसूस करना चाहिए। यह शरीर और मस्तिष्क को आराम देता है। धरती से जुड़ने के लिए नंगे पांव घास या रेत पर चलना चाहिए। इससे अपने जड़ों से जुड़ा हुआ महसूस होता है। आकाश से जुड़ने पर खुलेपन की भावना विकसित होता है। इसी प्रकार बादल, चांद , तारों पेड़ पत्तों से भी जुड़ने की अवश्यकता है। हमारे अधिकतर पर्व त्योहार भी पर्यावरण और प्रकृति से जुड़े हुए हैं।
प्रकृति के आंगन में ऊर्जा का महान भंडार संचित है। हमे स्वस्थ शरीर के लिए जिस ऊर्जा की जरूरत है वह प्रकृति से ही प्राप्त होती है। जो व्यक्ति प्रकृति के संपर्क में रहकर जितनी अधिक ऊर्जा ग्रहण करता है वह उतना ही अधिक स्वस्थ और दीर्घायु रहता है।