न्यूयॉर्क: संयुक्त राष्ट्र संघ के पहले विश्व जल सम्मेलन में भारत से जल संरक्षकों बड़ा समूह मौजूद रहेगा। यह समूह अमेरिका, यूरोप में आयी बाढ़-सुखाड के संकट से मुक्ति की युक्ति सिखाने और राज, समाज, वैज्ञानिक, सामाजिक कार्यकर्ता सभी को भागीदार बनाने के लिए जल सामुदायिक जिम्मेदारी और हकदारी तय करेगा।
जल का अपना अधिकार होता है और समाज का भी जीने का अधिकार होता है। इसलिए जल और समुदाय मिलकर एक आवाज बन जाएँ, तो फिर कंपनियां की मालकियत जल को अधीन नहीं करेंगी। कंपनियाँ तभी इसको अपने अधीन करती हैं, जब समाज इसके हक को भूल जाता है और अपनी जिम्मेदारी से बचने के लिए अपनी हकदारी को भी त्याग देता है।
समाज और राज दोनों को मिलकर काम करने का अवसर सृजित करना चाहिए, लेकिन आज वह अवसर नहीं है। आज जहाँ भी समाज अपनी स्वेच्छा से जल के संरक्षण का काम करता है, तो उसे दुनिया की सरकारें करने नहीं देतीं। उसे कहती हैं कि, यह पानी समाज का नहीं है, राज का है। इसलिए समाज डर जाता है और काम नहीं हो पाता।
राज ने दुनिया में केवल पानी का बाजार ही बनाया है। बाजार बनाने के अलावा, कोई समाधान नहीं किया। संयुक्त राष्ट्र संघ में पानी के बाजार की बड़ी कंपनियों ने वैसा कानून नहीं बनने दिया, जिसमें समाज भी अपना काम कर सके। हम जानते हैं कि, इस बार भी संयुक्त राष्ट्र संघ में कंपनियों का वर्चस्व रहेगा, परंतु समुदायों का भी वर्चस्व हो; समुदायों की भी आवाजों को सुना जाए। इसलिए भारतीयों ने यह तय किया कि, इस बार हम जल और समुदायों की आवाज को साथ जोड़कर दोनों की एक आवाज बनाएंगे।
जल पर अधिकार और कर्तव्य के रिश्तों को स्थापित करने के लिए राजस्थान के अलवर जिला में स्थित तरुण भारत संघ को पिछले 42 वर्षों का लम्बा अनुभव है। इस अनुभव से आधुनिक विश्व के जलवायु परिवर्तन के संकट, जिससे बाढ़ और सुखाड़ बढ़ रही है; उसके समाधान हेतु दुनिया का एकमात्र समय सिद्ध अनुभव है। उस अनुभव के आधार पर इस बार संयुक्त राष्ट्र संघ में यह आवाज बनेंगे। इस आवाज से दुनिया अपने को पानीदार बनाएं।
हम जानते हैं कि, इस वर्ष अमेरिका का कोर्लफोनिया और यूरोप के बहुत सारे देश बाढ़ – सुखाड़ दोनों से त्रस्त हैं। स्टॉकहोम में मैंने अपनी आंखों से, उनके आंखों में आंसू देखे थे। उन आँसुओं को पोंछने वाले केवल भारतीय थे । यह बातें कर रहे थे कि इस काम को प्रकृति का क्रोध मानकर हम लोग डर कर नहीं बैठें, यह प्रकृति का क्रोध नहीं है; यह तो मानव निर्मित विनाश है।
यूरोप और अमेरिका में यह मानव निर्मित बाढ़ – सुखाड़ का विनाश बढ़ा है। इस विनाश से मुक्ति दिलाने में भारत का समय सिद्ध अनुभव ही काम आएगा। यही मानकर जल पर काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता, विशेषज्ञ और पर्यावरणविद संयुक्त राष्ट्र संघ, न्यूयॉर्क पहुंच रहे हैं। इस सम्मेलन में कोशिश करेंगे कि, उनके लिए एक अच्छी सृजनात्मक आवाज बने। यह आवाज केवल डराने के लिए नहीं, बल्कि शांति और समृद्धि का सृजन करने के लिए है। जिसे अभी तक विकास कहा था, उसी विकास का विनाश बाढ़ सुखाड़ है। यह विनाश उसी विकास की देन है। इसलिए हमें समय रहते इस विनाश से बचने के लिए उपाय खोजने होंगे, नहीं तो यह पूरी दुनिया तीसरे विश्व जल युद्ध का शिकार बन जायेगी। हमें यदि इस तीसरे विश्व युद्ध से बचना है तो धरती और प्रकृति प्रति स्नेह जागृत करना होगा।
जागृत करने का काम सदैव ही भारतीय समाज करता रहा है। इसलिए भारतीयों ने इस बार यह तय किया है कि, हम दुनिया में प्यार का वातावरण बनाएं और प्रकृति के प्रेम से प्रकृति को पुनर्जीवित करने के लिए जल से शुरुआत करें। जल प्रकृति को पुनर्जीवित करने वाला पदार्थ है। यह जीवन का एकमात्र पदार्थ है,जिससे जीवन की शुरुआत होती है। लेकिन आधुनिक वैज्ञानिक जल को पदार्थ नहीं मानते। यदि ये पदार्थ मानते तो जल के लिए समग्रता से जल के मूल गुण – स्नेह, शांति, आत्मीयता पर अध्यात्म का विज्ञान सृजन करते। लेकिन इस आधुनिक विज्ञान ने जल के शांति, स्नेह बढ़ाने पर काम नहीं किया। उसी का परिणाम है कि, जल को केवल बाजार की वस्तु बना दिया गया है। जैसे आदमी बाजार की वस्तु नहीं होता, वैसे ही जल भी बाजार की वस्तु नहीं है।
जल में जीवन है, इसे जल ही जीवन कहकर, अपने को बचाना नहीं है।जल में ही जीवन है और वह जीवन स्नेह, शांति और समृद्धि को पैदा करता है । स्नेही, शांति और समृद्धि को जन्म देने वाला जल आज बाजार की वस्तु बन रहा है। इसे बाजार की वस्तु बनाने के लिए यूरोप और अमेरिका के वैज्ञानिकों ने काम किया है, वे उसके शिकारी थे और अब वे ही उसके शिकार बन गए हैं। अर्थात् जो प्रकृति के साथ अन्याय करता है, वह ही एक समय के बाद स्वयं उसका शिकार बन जाता है। यह बताने,सिखाने और समझाने के लिए भी संयुक्त राष्ट्र संघ में यह भारतीय प्रतिनिधि मंडल जा रहा है। लेकिन यह बताना मुश्किल है कि, संयुक्त राष्ट्र संघ हमारी बातों को कितना मानेगा। पर हम मानते हैं कि, जो सत्य होता है, वही भगवान् होता है। जल में ही जीवन है,यह सत्य है और वह भगवान् का अंश है। इसलिए हम भगवान् को सत्य मानने वाले लोग, अपनी बातों को दुनिया के सामने रखेंगे।
जल में ही जान है, बाजार नहीं, इस बात को मनवाने के लिए भारतीयों का प्रतिनिधिमंडल न्यूयॉर्क पहुँच चुका है। यह प्रतिनिधिमंडल 19 मार्च 2023 से 20 अप्रैल 2023 तक अलग-अलग स्थानों पर जाएगा। सबसे पहले 26 मार्च 2023 तक संयुक्त राष्ट्र संघ के सम्मेलन में रहेगा। फिर वहाँ से जो देश बाढ़-सुखाड़ के कारण त्रस्त है, उन देशों में इस प्रतिनिधिमंडल से छोटे-छोटे प्रतिनिधीमण्डल जायेंगे।
*जलपुरुष के नाम से विख्यात जल संरक्षक