
स्वर्गीय प्रोफेसर जी डी अग्रवाल (बीच में) के साथ लेखक (सबसे दाएं) की एक तस्वीर
ब्रिसबेन, ऑस्ट्रेलिया: 28 फरवरी 2025 को जैसे ही मैं ब्रिसबेन नदी को पार कर रहा था तो तुरंत मुझे प्रोफेसर जीडी अग्रवाल उर्फ़ सानंद स्वामी जी के गुस्से की याद आयी। जब वर्ष 2004 में तरुण भारत संघ को अंतरराष्ट्रीय नदी पुरस्कार दिया गया था, तब उसे लेने के लिए प्रोफेसर जीडी अग्रवाल जी और मैं साथ ब्रिसवेन गया था। यहां हम एक ही दिन रुकने वाले थे लेकिन किसी कारण फिर दो दिन रुकना पड़ा था।
मैने अवार्ड के दिन प्रो. जीडी अग्रवाल जी का गुस्सा देखा। उन्हें गुस्सा इस बात पर आया था कि , नदी पुनर्जीवन का अवॉर्ड तरुण भारत संघ को दिया गया था, जबकि आवार्ड का पैसा एक बहुत बड़ी कंपनी जिसने केवल नदी के लिए कुछ बैठक आयोजित की थी, उसको दे दिया गया।
अवार्ड समारोह में जीडी अग्रवाल जी ने कुछ नहीं कहा क्योंकि उन्हीं के हाथों से हमे अवॉर्ड लेना था। लेकिन लंच सैरेमनी में उन्होंने इंटरनेशनल रिवर फाउंडेशन के अध्यक्ष के साथ उन्हें और मुझे बहुत विनम्रता से अपने गुस्से को दबाते हुए बोले कि “भाई हम यहां बैठे हैं लेकिन हमारा लंच करने का मन नहीं है।’’ तब अध्यक्ष ने पूछा कि, “क्यों आपकी तबियत तो ठीक है?’’ तब अग्रवाल साहब बोले कि, “तबीयत तो ठीक है लेकिन आज जो इस आवार्ड फंक्शन में हुआ उससे मेरी तबीयत थोड़ी बिगड़ी है।’’
उन्होंने पूछा कि, ‘‘इस पुरस्कार की राशि आपने पैसे वाली बड़ी कंपनी को क्यों दी? उनके पास तो पहले से बहुत पैसा है। जो राशि जिसको अवार्ड मिला, उसी संस्था को दी जानी चाहिए थी।’’ अध्यक्ष को इस बात की गहराई शायद अनुभव नहीं हुई। अध्यक्ष ने बहुत सहजता से कहा कि, ‘‘उन्होंने ब्रिसबेन नदी के लिए बहुत सारी बैठक आयोजित की थी; जिसमें बहुत पैसा खर्च हो गया था। तब हमने सोचा कि, उनको इस अवार्ड से सपोर्ट मिल जाएगा और अच्छा होगा।’’
इंटरनेशनल रिवर फाउंडेशन के अध्यक्ष की यह बात सुनकर जीडी अग्रवाल साहब ने उनसे कहा कि, ‘‘जिस संस्था ने 20 साल से लोगों के पसीने से अरवरी नदी को पुनर्जीवित किया है, कभी आपने देखा कि, कोई समुदाय अपनी नदी को अपने साधनों और श्रम निष्ठा से जीवित कर सकता है? इस काम को जानना ही दुनिया के लिए अच्छा होता।
यह बात सुनकर इंटरनेशनल रिवर फाउंडेशन के अध्यक्ष शर्मिंदा हुए और गर्दन नीचे की। आखिर में जीडी अग्रवाल साहब जी ने अध्यक्ष से कहा कि ‘‘दुनिया का दिखावटी अर्थतंत्र सबका लालच बढ़ाता है और हम यहां लालची होकर पुरस्कार लेने नहीं आए थे। हमें पैसे की जरूरत बिल्कुल नहीं थी। हमारा काम तो चल रहा है। आपने जो सम्मान दिया है, उसे स्वीकार किया है । लेकिन दुनिया की बड़ी संस्थाओं को यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि यह नदियों का काम समाज की आंतरिक ऊर्जा का काम है इसलिए आपने जो बड़ी कंपनी को समाज का पैसा दिया है, वो ठीक नहीं है।’’
यह बात बहुत निजी तौर पर हो रही थी। मैंने भी कभी इस बात को आजतक सार्वजनिक नहीं किया था। लेकिन आज मुझे लगा कि, यह बात सार्वजनिक तौर पर कह देनी चाहिए क्योंकि इस बात से बड़ी-बड़ी दुनिया की अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं की रणनीति का पता चलता है।
इस बात से मैं समझ गया था कि, जी डी अग्रवाल साहब कोई भी गलती को सहन नहीं करते थे, वो तुरंत गलती को ध्यान दिलाते थे। अग्रवाल साहब ने मुझे यह भी कहा था क, इस बात को अवार्ड के समय सबके सामने कहना ठीक नहीं लेकिन फिर कभी जरूर कहिएगा क्योंकि तुम पैसे नहीं पुरस्कार लेने आए थे। इसलिए आज मुझे ब्रिसबेन में अग्रवाल साहब की बहुत याद आ रही है।
*जलपुरुष के नाम से विख्यात जल संरक्षक