सैरनी से परिवर्तन-6: जब नाहरपुरा के दर्जनों युवाओं ने हिंसा का मार्ग छोड़ दिया
– डॉ राजेंद्र सिंह*
नाहरपुरा करौली-धौलपुर जिले के बॉर्डर का गांव है। इस उजड़े हुए वीरान गांव में मुश्किल से 30 घर हैं। पहले यहाँ के लोग पानी न होने के कारण, घर छोड़कर चले जाते थे। यह सिर्फ बरसात के दिनों में गांव रहते थे। यहाँ के भूरा सिंह और उनके पिता ने मिलकर, यहाँ से गुजरने वाली छोटी नदी पर तालाब बनवाया। इस तालाब के बनने से 9 परिवारों की जमीन पर पानी हो गया। जिससे यह लोग खेती करने लगे। अब इतनी उपज हुई, जितनी इन लोगों ने अपने जीवन में देखी नहीं थी। इससे इनके मन में विचार आने लगा कि फरारी करने से कोई फायदा नहीं है। क्योंकि फरारी में न रहने का ठिकाना, न पीने के पानी का, न ही खाना और हर वक्त डरकर रहना। ऐसा जीवन क्यों जीना।
तरुण भारत संघ इन लोगों के साथ केवल पानी का काम करता है और खेती ठीक करने के लिए पाइप-फुव्वारे वितरित करता है। अभी भूरे सिंह के खेत में नीचे से ऊपर तक पूरी खेती में पाइप-फुव्वारे लगे हुए हैं। तरुण भारत संघ ने एक तरफ पानी बचाने का काम किया और दूसरी तरफ जल उपयोग दक्षता बढ़ाने का काम किया है। इसलिए यह लोग समझ गए कि यह पानी के काम के साथ-साथ, उसका अनुशासित उपयोग करना भी सिखा रहे है। जिससे यह लोग आनंदित है।
भूरे सिंह ने हिम्मत की और अदालत में जाकर अपना समर्पण किया। वकील को देने के लिए पैसे भी आ गए। फिर अदालत ने भी उदारता से विचार किया और इन्हें बरी कर दिया। भूरे सिंह को देखकर बहुत लोग जो लाचार, बेकार और बीमार थे। उन फरार लोगों के मन में इज्जतदार, मालदार और पानीदार बनने का विचार आने लगा। इस विचार ने सब को बहुत उत्साह पैदा किया और यह सब लोग मिलकर पानी के काम में लग गए। धीरे-धीरे पानी का काम होने लगा था।
नाहरपुरा में भूरा सिंह की पिता खूबा बहुत भाग दौड़ करने वाले बहादुर व्यक्ति हैं। मुझे खेत पर बनी झोपड़ी में बुलाया। यहाँ उनकी पत्नी गुड्डी ने घने जंगल में चाय पिलाई थी। जब मैंने कहा कि आपने यह झोपड़ी जंगल में क्यों बनाई है, तब बोला कि, पहले हम लोग जंगलों में छुपे रहते थे और डरते थे। लेकिन अब हम लोग डरते नहीं है। अब पूरा परिवार झोपड़ी में बिना डरे रहता है।
“यह डर हमारा पानी से निकला है। खेत पर पानी आने से हम खेती करने लगे और जो हमारे पीछे पुलिस लगी रहती थी, वह भी खत्म हो गया है। हमारे परिवार में सुख शांति पानी से आयी है। हम अब मुक्ति भाव से यहां रहते है। हमारे गांव नाहरपुरा का अर्थ “शेरों का घर“ होता है , क्योंकि नाहर मतलब शेर और पुरा मतलब घर होता है। अब हम अहिंसक शेर यहां के गौरव है ,” खूबा ने कहा।
मैं 2018 में नाहरपुरा में गया था, जब काम शुरू हुआ था। फिर वर्ष 2020, 2022 अभी अप्रैल 2023 के आखिर में नाहरपुरा में एक बार फिर गया था। मैने इस गांव में बहुत रौनक देखी। गांव के बच्चों का स्वास्थ्य अच्छा हुआ, महिलाएँ जागरूक हुई है, उनके मन में बात करने का विश्वास आया, लोगों का कोई डर नहीं है। यह विश्वास पानी से आया है। विश्वास से जब एहसास हुआ कि यह काम सबसे अच्छा है। इसके बाद यह सभी तरुण भारत संघ के साथ अपने दिल-दिमाग से जुड़ते गए। यह जुड़ाव तरुण भारत संघ ने बिना किसी प्रचार-प्रसार से शांति से अपने पानी के काम को करते रहे हैं। तरुण भारत संघ के कार्यकर्ताओं पर इनका बहुत विश्वास हो गया था, क्योंकि, तरुण भारत संघ इनके कामों का हिसाब सभी के समाने पारदर्शिता से बताता था।
पारदर्शिता ने नाहरपुरा के दर्जनों युवाओं को हिंसा छोड़कर, अहिंसा के काम में लगा दिया। यह पानी का काम हिंसा को अहिंसा में बदलने का काम है। यह दिल-दिमाग का मरहम है। यह ऊँच-नीच मिटाता है। पानी जीवन का प्राण है। इसलिए नाहरपुरा के पानी के काम ने युवाओं के सदाचारी और अहिंसक बनने के लिए तैयार किया। इस तैयारी की सुगंध दुनिया में धीरे धीरे फैलने लगी, इसलिए कुछ दिनों पहले ही इंग्लैंड की एक लड़की इनसे मिलने आयी और गांव में खाट पर इनके घरों में सात दिनों तक निवास किया। ना लड़की को गांव वालों से डर लगा और ना ही गांव वालों को लड़की से। यह तब होता है जब आपका प्रकृति और मानवता के प्रति प्रेम बढ़ता है। नाहरपुरा इन दूरियों को खत्म करने का बड़ा उदाहरण है।
नाहरपुरा जब पहले गया था, तब जिन नौ लोगों की जमीन पर पानी था, इनमें से कोई एक साथ बैठने को तैयार नहीं था। इन सभी से अलग-अलग उनके घरों में जाकर बात करनी पड़ी। जब यह सभी तैयार हुए, तब श्रमदान जुटाया गया। तब सभी लोग काम करने के लिए तैयार हुए।
संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस वर्ष को जल शांति वर्ष घोषित किया है। नाहरपुरा गांव के काम में समझ और शक्ति है, जिससे दुनिया प्रेरित हो सकती है। दुनिया में जहां भी जल की कमी और जल की अधिकता है। जलवायु परिवर्तन के कारण लोग जलवायु परिवर्तन शरणार्थी बन रहे हैं, उन सब को इस गांव में आकर देखना और सीखना चाहिए कि एक मामूली सी कोशिश ने इतना बड़ा काम कैसे कर दिया। तरुण भारत संघ ने किसी को भी बंदूक छोड़ने के लिए नहीं कहा क्योंकि इसका सिर्फ पानी का काम है।
तरुण भारत संघ ने नाहरपुरा गांव के लोगों की थाली में रोटी और पानी मिल जाए, यह देने का काम किया। इस काम से लोगों को रोजगार मिल गया। इसलिए इस गांव में लाचारी, बेकारी, बीमारी और फरारी मिट गई और शांति का वातावरण निर्मित हो गया। यह शांति की क्रांति नाहरपुरा गांव में हो रहा है, इस प्रकार का काम पूरी दुनिया में होना चाहिए।