सैरनी से परिवर्तन-9: दाउदपुर गांव में होने लगी सरसों, गेहूं और सिंघाड़े की खेती
– डॉ राजेंद्र सिंह*
दाउदपुर मासलपुर से 15 किलोमीटर दूर पहाड़ियों के बीच में सैरनी नदी के किनारे बसा हुआ गांव है। इसमें सभी जातियों के डेढ़ सौ परिवार निवास करते हैं। इस गांव के किनारे से कदम वाला नाला 5 किलोमीटर दूरी से पूर्व दिशा में सैरनी नदी को जोड़ता है। यह नाला पहले सूखा रहता था। तरुण भारत संघ ने इस पर पिछले 5 वर्षों में कदम ताल, बांस की पोखर, बालाजी का ताल, गधेल वाली पोखर बनाई। यह नाला आज 12 माह बहकर सैरनी नदी को पुनर्जीवित कर रहा है। इस नाले पर पहला तालाब जो बना है, वह कदम वाला ताल है। इससे 10 परिवार प्रत्यक्ष रूप से जुड़े हैं। ताल बनने से पहले इनके पास 100 बीघा जमीन थी, उसमें केवल एक ही फसल होती थी।
दाउदपुर के राजवीर का कहना है कि, उनके पास 25 बीघा जमीन थी, उसमें वर्षा आधारित केवल बाजरा की खेती होती थी, कोई फसल नहीं होती थी। जब से यह ताल बना वे गेहूं और सरसों की खेती की खेती करते हैं। “इसी वर्ष मेरे पास 5 बीघा में गेहूं बोया, जिसमें 60 क्विंटल गेहूं का उत्पादन हुआ है तथा 20 बीघा सरसों की खेती करी, जिसमें 80 क्विंटल सरसों का उत्पादन हुआ है। मैंने खेती करने के लिए अभी-अभी नया स्वराज ट्रैक्टर लिया है। पहले मैं दूसरों से अपनी खेती के लिए काम करवाता था, अभी मैंने ट्रैक्टर लिया है अब मैं अपन खेती कर लेता हूं और ₹200000 की दूसरों की खेती का काम कर लेता हूँ,” उन्होंने बताया।
इस तरह से दाउदपुर में सभी दसों परिवारों के यहां इस तालाब से खेती हो रही है। सभी आनंद से अपना जीवन जी रहे हैं। गांव के शीशराम ने कहा कि उन्होंने बालाजी का ताल बनवाया। इससे सिंचाई के लिए पानी तो लेते हैं, उसके साथ-साथ सिंघाड़े की खेती भी करते हैं। उससे ₹500000 की आय हो जाती है। इस तालाब से यहाँ का जलस्तर भी ऊपर आया है। गांव के ट्यूब वेल और कुओं जो सूखे थे, वह भर गए हैं । इससे अच्छी खेती होने लगी है। पहले गांव के लोग 100% खनन मजदूरी करते थे और जिसने गांव की पूरी पहाड़ियों को खोदकर डाला था। पेड़ तो देखने को नहीं मिलते, अभी पानी होने से पेड़ लगाने का काम लोग करने लगे हैं।
“अतः तरुण भारत संघ से बनने वाली जलसंरचनाओं ने गांव के जनजीवन को सुख समृद्धि देने का काम किया है। ऐसा काम दूसरी जगह भी होने चाहिए,” शीशराम ने कहा।
गांव की महिला कलावती ने कहा कि पहले गांव में कोई रोजगार नहीं था। “हम घर पर ही बिना काम के पड़ी रहते थे। आज गांव में खेती में मजदूरी मिलती है और मकान बनाने में मजदूरी मिलती है। स्वयं की बकरिया पालन करने का काम कर रही हूं। छोटे-छोटे बच्चों को स्कूल भेजने का काम करती हूँ”।
गांव की विधवा किरण देवी जाटव ने कहा कि उनका पति खनन कार्य करते हुए नई उम्र में छोड़कर चला गया। तब वह रोजगार के लिए दर-दर भटकती थी, पर अभी गांव में फसल होने से फसल में कटाई करने की मजदूरी मिल जाती है तथा गांव में फसल होने से पशुपालन में वृद्धि होने से पैसा आने लगा है।
गांव के लोग नए-नए मकान बनाने लगे हैं, उसमें मुझको मजदूरी मिल जाती है। “अभी मेरे छोटे-छोटे बच्चे हैं ,उनको मैं विद्यालय में भेजती हूँ। उनके पालन पोषण के लिए मजदूरी करके पेट भरने का काम करती हूँ,” किरण ने बताया।
काशीराम गुर्जर ने कहा कि, उसने गंधेल वाली पोखर बनवाई है, और उसके पानी से खेती करते हैं। पहले खानों पर काम करके अपना परिवार चलाते थे। खेती में अभी 12 माह के लिए अनाज हो जाता है तथा 12 माह खर्च करने के लिए सरसों की खेती हो जाती है। पशु के लिए चारा उपलब्ध होने से अभी उनके पास 10 भैंस, 25 बकरियां कथा 5 गाय हैं, उनसे लाखों रुपए का दूध बेचते हैं । “अब मुझे कहीं जाने की जरूरत नहीं पड़ती है। मेरे जीवन में अब बहुत खुशहाली है,” उन्होंने कहा।*
लेखक जलपुरुष के नाम से विश्व विख्यात जल संरक्षक हैं।