सैरनी से परिवर्तन-13: खेड़ा गांव के लोगों ने किया बारह जल संरचनाओं का निर्माण
– डॉ राजेंद्र सिंह*
खेड़ा गांव पहाड़ियों पर स्थित गांव है। इस गांव से ही सैरनी नदी का उद्गम होता है। पहाड़ियों की चोटी पर होने के कारण खेड़ा गांव में धरती के गर्भ के अन्दर हजार फीट तक पानी नहीं मिलता। लोग ट्यूबवेल लगाते-लगाते लोग परेशान हो गए, लेकिन पानी की कमी पूरी नहीं हुई। इसलिए गांव के अधिकतर युवा बाहर काम करने जाते हैं। आज से दो वर्ष पहले तक लोगों का खान मजदूरी से बहुत लगाव था, प्रत्येक परिवार में खान ठेकेदार था। जो लोगों के खून को चूसने का काम करता था। ऐसी परिस्थिति में खेड़ा गांव के लोगों को जल संरक्षण कार्य करने के लिए तरुण भारत संघ ने सहयोग देना शुरु किया। लोगों का धीरे-धीरे जुड़ाव होने लगा। यहां लोगों के सहयोग से बारह जल संरचनाओं का निर्माण कार्य पूर्ण हुआ।
गांव के बचन सिंह गुर्जर ने कहा कि पहले उनका कुआँ सुबह-शाम सिर्फ दो घंटे चलता था लेकिन अब ऊपर पोखर बनने से पूरे दिन चलता है। अब उनके चारों भाई की खेती में 200 क्विंटल गेहूं और सरसों होता है। ढाणी में जो आठ परिवार है, उन सभी को भी पानी मिल जाता है।
ध्रुव मास्टर ने कहा कि, यहाँ के परिवार खनन कार्य अधिक करते थे, क्योंकि पानी न होने के कारण जमीन बंजर पड़ी रहती थी। परिवार का भरण-पोषण करना ही बहुत मुश्किल से कर पाता था। आज जब तुलसा वाली पोखर बनाई, उससे पचास हजार रुपए की सिंघाड़े की खेती हो जाती है। गेंहू और सरसों की अलग खेती करते हैं। एक बच्चे को अच्छा पढ़ाया जो कि अब नौकरी कर रहा है। “हमारे 12 परिवार हैं और 12 परिवारों में अच्छे से खेती होने लगी है,” उन्होंने कहा।
जनक सिंह ठेकेदार ने कहा कि उनके पास 200-200 खनिया काम करते थे। सबसे अधिक वो ही धरती के पेट को फाड़ने का काम किया करता था। “बेचारे गरीब लोगों को बहुत चूसा। क्योंकि मेरे पास पानी नहीं था, तो खेती नहीं कर पाता था। मुझे तरुण भारत संघ का पता चला तो मैंने पोखर बनवाई है और जो बहुत अच्छी पोखर बनी है। इससे पोखर से आज 50 बीघा में खेती होने लगी है, जिसमें 200 मन गेहूं हो जाते हैं और 300 मन उड़द और सरसों जाती है। अब मेरा परिवार बहुत अच्छे से चल रहा है। पहले पता नहीं गरीबों का कैसा पैसा था, इसलिए परिवार में कोई न कोई बीमार रहता रहता था। अब तो सब स्वस्थ होकर अपने अपने काम में लगे रहते हैं और अच्छे से जीवन गुजारते हैं।”
गांव के युवा धर्मा ने कहा कि वो पहले पत्थरों को तोड़ने का काम करता था। उसी से अपना परिवार चलाता था। खान में ठेकेदारों के नीचे काम करना बिल्कुल पंसद नहीं था लेकिन कुछ उपाय भी नहीं था। खेती तो है लेकिन पानी बिना कैसे होती। बहुत परेशानी से अपना घर चलाता था। उसने पोखर बनवाने का काम किया, जिसमें तरुण भारत संघ ने उसकी आर्थिक मदद की थी। अब इस पोखर से 10 बीघा खेती होने लगी है और 2 बीघा पर गेहूं, 6 बीघा में सरसों, दो बीघा में चना की खेती कर रहा है। इससे उसको 200 मन अनाज हो जाता है। अब वह अच्छे से परिवार के साथ रह रहा है और एक बच्चे को बहुत अच्छे से पढ़ा पा रहा है।
बने सिंह ने कहा कि, जब गांव में पानी नहीं था, तो सारा परिवार पशुपालन करता था तथा पत्थर का व्यापार करता था। इससे ही परिवार का भरण-पोषण होता था। जब से आनंद बावड़ी की पोखर बनवाने का काम किया है, पोखर में बहुत पानी भरता है, जो कि, सैरनी नदी की उद्गम में है। इससे से ही सैरनी नदी की मुख्यधारा निकलती है। अभी पूरा परिवार इससे खेती का काम कर रहा है।
*लेखक जलपुरुष के नाम से विश्व विख्यात जल संरक्षक हैं।