सैरनी से परिवर्तन-11: कैसे हुआ चम्बल में चमत्कार ?
– डॉ राजेंद्र सिंह*
चम्बल में सैरनी और पार्बती दोनों नदियाँ मिलकर कुल 841 वर्ग किलोमीटर का जलागम क्षेत्र बनाती है। इसमें तरुण भारत संघ द्वारा अभी तक कुल 160 जल संरचनाओं का निर्माण किया गया है। जलागम संरक्षण-संवर्धन क्षेत्र की दृष्टि से संख्या थोड़ी कम है। इसमें और ज्यादा काम करने की जरूरत है। मोटे तौर पर देखें तो सैरनी नदी में 11 जल धाराएँ (जलागम क्षेत्र) छोटी (500 हैक्टेयर से कम) और 7 बड़ी (500 हैक्टेयर से ज्यादा) हैं।
पार्बती नदी की सबसे लंबी धारा 70 किलोमीटर की है। इसमें पांच नदियाँ-तेवर, गोडेर, खरैर भामाया और सैरनी नदियाँ मिलती है तथा राजहवादेह, गुरेर, बठुआ खोह, कुण्ड, माराधाता नाम के पांच नाले मिलते है। सबसे बड़ी जल धारा को तेवर नदी के नाम से जानते हैं। इस तेवर नदी में तरुण भारत संघ ने सम्पूर्ण रूप से काम कर दिया। इसमें भी छोटे 5 वाटरशैड हैं। पार्बती नदी में 5 बहुत बड़े नाले तथा 5 छोटी नदियाँ मिलती हैं। अतः पार्बती 22 बड़े वाटरशैड और 43 छोटे वाटरशैड की नदी है।
पार्बती और सैरनी दोनों नदियों में अनकनफाइंड होरीजेंटल फ्रैक्चर (भूतलीय समांतर दरारें) है। इसमें लाल रंग के पत्थर हैं, इसमें मिट्टी बहुत ही कम है। पुराने जमाने में अरावली के पश्चिम से जो मिट्टी हवा के साथ आकर जमी थी, वह ही रेतीली मिट्टी है। जो पानी के संपर्क से अब चिकनी और दोमट मिट्टी बन गई है। इस प्रकार पार्बती और सैरनी नदी के जलागम क्षेत्र में मुश्किल से सिर्फ 7 प्रतिशत जमीन जंगल की है। ज्यादातर जमीन गोचर और पहाड़ी हैं, जिसमें जंगल की जमीन और सामलातदेह पर बहुत कम जंगल है। जंगल अब धीरे-धीरे बढ़ रहा है।
पानी आने से जहाँ भी लोगों को मिट्टी मिली, उस मिट्टी को लाकर अपने खेत बनाने का काम अब बंदूक छोड़कर, फावड़े से जोरों से किया है। यह काम पिछले पांच सालों में बहुत तेजी से हुआ है। दोनों नदियों के जलागम क्षेत्र में 7 तरह की मिट्टी पाई जाती है। इस कारण इन दोनों नदियों में 7 तरह की जल संरचनाओं का निर्माण किया गया है। मिट्टी वाली जगहों पर ताल, पोखर, पाल बनाई है। इन 160 जल संरचनाओं में से आधे से ज्यादा मिट्टी वाली जल संरचना ही हैं। बाकी में चैक-डैम और एनीकट बनाए गए हैं। ऊपर कई जगहों पर नालीबंध का कार्य किया है। इसके अलावा खेती की जमीन पर मेड़बंदी ताल-पाल-झाल के कार्य भी किये गये हैं। इस प्रकार अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग तरह की जल संरचनाओं का निर्माण किया गया है। भूसंरचना को समझकर जल संरचना बनाई हैं।
160 जल संरचनाओं में मेड़बंदी, नाला बन्ध और गली बन्ध की संख्या शामिल नहीं है। इसमें ताल,पोखर, तालाब, जोहड़, चैक डैम, एनीकट और पगारे को ही संख्या में लिया गया है।
अरवरी नदी में 1 वर्ग किलोमीटर में 1 जल संरचना होती है, लेकिन यहाँ कम इसलिए हैं क्योंकि, यहाँ की जल संरचनाएँ थोड़ी बड़ी भी बनी हुई है। जैसे भूड़खेड़ा, जिसका जलागम क्षेत्र 3 किलोमीटर है , कोरीपुरा बांध का 6 किलोमीटर, महाराजपुरा का 4 वर्ग किलोमीटर है । अतः इस आकार से लगभग औसतन 1 जल संरचना में करीब 4|50 करोड़ लीटर पानी की क्षमता है।
भूड़खेड़ा का जलागम क्षेत्र 3 वर्ग किलोमीटर है, इसके जल क्षेत्र में बरसने वाले पानी से उन्नतीस करोड नौ लाख छियानवे हजार लीटर पानी जमा होता है। इसी प्रकार इससे दो गुना कोरीपुरा में पानी जमा होता है। डेढ़ गुणा महाराजपुरा में इकट्ठा होकर नदी में जाता रहता है।
इन जल संरचनाओं के क्षेत्र अलग-अलग हैं। भूड़खेड़ा का कैंचमेंट एरिया 3 वर्ग किलोमीटर है, भराव क्षेत्र कुल 42 बीघा है, मतलब 1 लाख वर्ग मीटर। अपरा का स्तर 97.50 है। पाल के टॉप का स्तर 100.50 है। भराव क्षेत्र का न्यूनतम स्तर 88.84, पानी की अधिकतम गहराई 8|66 मीटर है। पानी की औसत गहराई 2.77 मीटर, अपरा से टाप की ऊंचाई 3 मीटर, अपरा की चौड़ाई 15 मीटर , अपरा के पानी की अनुमानित ऊंचाई 1.5 मीटर, सम्पूर्ण पानी का आयतन 2|0996 घन मीटर, इस प्रकार सम्पूर्ण पानी का आयतन लीटर में 29,0996.000 है.
इसी प्रकार कोरीपुरा बांध इससे भी दो गुना बड़ा है। इसकी जल क्षमता 60 करोड़ के आसपास है, कुछ की 40 करोड़ और कुछ की 20 करोड़ लीटर पानी की क्षमता है। इस तरह से तीन तरह की जल संरचनाओं में कुल औसत चार हजार पांच सौ साठ करोड़ लीटर पानी रुकता है। इसमें से भू गर्भ में 3 हजार चालीस करोड़ लीटर जल जाता है। इसकी कुल क्षमता 3201 करोड़ लीटर है। अब हमे पता चल गया है कि, हम कितना पानी रोक सकते हैं और कितना भूजल भरण कर सकते हैं। हम अधिकतर पानी को चलना सिखा रहे है, दो तिहाई से ज्यादा पानी अधोभूजल से नीचे आता है, जिसके कारण नदी बह रही है। खेती भी हो रही है, दोनों काम अच्छे से चल रहे हैं।
तरुण भारत संघ द्वारा बनाए गए पोखर, तालाब देखें, तो पीपर वाली पोखर, गढ़मण्डोरा उसकी क्षमता एक करोड़ सैतालीस लाख बत्तीस हजार है। यह सबसे छोटी मानी जा सकती है। इससे थोडा़ बड़ा संडन वाला ताल, फैदालपुरा है, जिसकी क्षमता 7 करोड़ 27 लाख पंनचानवे हजार लीटर है। कोरीपुरा की 60 करोड़ लीटर के आसपास है। भूडखेड़ा की 29 करोड़ लीटर, महाराजपुरा की लगभग 40 करोड़ लीटर है। इस तरह से हमारे पास 7 तरह की जल संरचनाएँ है। पहली जिनकी 60 करोड़ लीटर से ज्यादा क्षमता है, दूसरी 40 करोड़ लीटर वाली , तीसरी 30 करोड़, चौथी 1.57 करोड़, पांचवीं 1.47 करोड़, छटवीं 7.27 करोड़ और सातवीं 0.63 करोड़ लीटर है।
इन सात जल संरचनाओं के 1,40,05,74,750 लीटर जल को 7 से विभाजित करने पर एक जल संरचना में भरे हुए जल का आयतन 20,00,82,107 लीटर हुआ। अतः एक जल संरचना के आयतन को 160 से गुणा करने पर, कुल जल संरचनाओं का आयतन 32,01,31,37120 (3201 करोड़) लीटर हुआ।
नदी के जल क्षेत्र में अभी थोडी घास, पेड़, जंगल आ गया है। जलसंरक्षण के कारण इसमें हरियाली आयी है। इस जलागम क्षेत्र में जब काम शुरू हुआ था, तब यह पूरी तरह से वीरान और उजाड़ था, अभी यह क्षेत्र हरा-भरा हो रहा है। इसके जल क्षेत्र में वन विभाग का क्षेत्र भी आता है। इसलिए अब कह सकते हैं कि, जल क्षेत्र स्वस्थ हो रहा है। इसमें तरुण भारत संघ पानी का प्रवाह करीब 40 प्रतिशत मान रहा है। यह कैंचमेंट के स्वास्थ्य पर निर्भर करता है। अभी इसमें ढ़ाल है, जिससे बहकर जल जल्दी नीचे की तरफ आ जाता है।
बहुत अच्छा जंगल, खेती होती तो यह जल प्रवाह कम हो जाता। आने वाले समय में नदी क्षेत्र और अधिक स्वस्थ होगा, जिससे सीधा जल प्रवाह थोड़ा कम हो जायेगा। भूजल प्रवाह बढ़ सकता है। नदी शुद्ध-सदानीरा बनकर बहेगी, अच्छी खेती भी होगी। जल संरचनाओं में जल कम समय-कम ही रूकता है। ज्यादातर भूजल में जाकर नदी को पुनर्जीवित और शुद्ध-सदानीरा बनाता है।
मिट्टी पथरीली और ढाल होने के कारण, जल स्रोत में जब पानी रुकता है, तो वर्जिन लैंड में बहुत अच्छी शैवाल, घास आ गई है। जल जैव विविधता बहुत अच्छे से समृद्ध हुई है। हमने स्वयं कदम वाले नाले में दर्जनों तरह की शैवाल देखी है। पानी को शुद्ध करने वाला पटेरा और जंतु उसमें आ गए हैं। आस-पास पक्षियों की संख्या भी बढ़ गई है। यहाँ एक तरह से बहुत समृद्धि जैव विविधता हो गई है। यह सब प्राकृतिक है।
अभी पूरे साल भूजल पुनर्भरण प्रक्रिया चालू है। यहाँ की दरारें बहुत तेज हैं, इसलिए भूजल का तेजी से पुनर्भरण हो रहा है। अध्ययन से पता चला है कि जल संरचना में रुकने वाले जल से दो गुना जल, धरती में चला जाता है। 3201 करोड़ लीटर तालाबों में रुका है, 6402 लीटर भू-जल भंडार में चला गया है। 22.6 प्रतिशत जल संरक्षण करने की और जरूरत है।
दोनों नदियों की छोटी-छोटी जल धाराओं में जल संरचनाओं का निर्माण हुआ है। पार्बती में कम जल संरचनाओं का निर्माण हुआ है। जिन नालों में काम नहीं हुआ, वे आज भी सूखे हुए है। यहाँ का फसल-चक्र किसानों ने वर्षा-चक्र के साथ जोड़कर रखा है। लोग तरूण भारत संघ के द्वारा दिए गए पाइप-फव्वारे से जल का अनुशासित होकर उपयोग करते हैं। इसलिए ही गर्मी के दिनों में बहुत पानी दिखता है। इससे लाचारी,बेकारी खत्म हो जाती है। यह इलाका अब स्वस्थ हो रहा है। जिससे सभ्यता और संस्कृति समृद्ध होने लगती है। जब भी सरिता स्वस्थ होकर बहती है, तो वह सभ्यता और संस्कृति को समृद्ध बना देती है।
अब यहाँ के ताल पोखर में पानी रहने से मछली पालन बहुत बढ़ा है। मछलीपालन और सिंघाडे की खेती भी बड़ी मात्रा में होनी लगी है, केवल मछली पालन की अतिरिक्त आय से ही जल संरचना के खर्च को पांच साल में ही पूर्ति कर देती है। सैरनी और पार्बती का स्वास्थ्य अच्छा हो रहा है। इसलिए लोग अब शुभ के लिए ज्यादा विचार करते हैं। पहले जो लोग बंदूक लिए इधर-उधर घूमते रहते थे, दिन-रात परेशान रहते थे, वह अब स्वस्थ होकर, जीवन की फरारी छोड़कर, सबके साथ रहने की चाह शुरू कर रहे हैं। यह विचार आना ही बड़ी बात है। सबके साथ रहने में अपनी फरारी से मुक्त होने की कोशिश कराती है। इस फरारी की मुक्ति से अच्छे विचार आगे आ रहे हैं।
पहले हिंसक जीवन था, अब शांतिमय हुआ है। इसमें राजस्थान पुलिस और न्यायपालिका का भी योगदान है। उन्होंने इनको सुनकर अच्छे जीवन के साथ समझौता करने का अवसर दिया है। ये अब अपने आप अपना सामान्य जीवन को जीने के लिए आगे आ रहे है। पहले जो डरने-मरने और लूट-पाट का काम था, वह अब छूट गया है। अब सबके साथ प्यार और सम्मान से रहते है। सभी को विश्वास देते और लेते हैं। डकैती छोड़ने का अहसास, इन्हें पानी ने ही कराया है। खेती शुरू करते ही फरारी से मुक्ति का आभास इन्हें हो गया है।
सैरनी और पार्बती के यह अच्छे परिवर्तन की शुरूआत 37 साल पहले सवाईमाधोपुर की बामनवास तहसील से आरंभ हुई थी। उसके बाद वहां के काम देखकर करौली के लोगों ने अपने इलाके में काम शुरू करवाया। यहाँ कैला देवी और महेश्वरा के काम वाले इलाके में इनके रिश्तेदार थे। यहाँ के खजूरा गाँव में बड़ा सम्मेलन हुआ था, उससे ये लोग बहुत प्रभावित हुए थे। उसके बाद उन्होंने तरुण भारत संघ को अपने इलाके में आमंत्रित किया । तभी से तरुण भारत संघ वहाँ काम करने लग गया था। अब यह काम तरुण भारत संघ की प्राथमिकता में आ गया है। इसलिए इस क्षेत्र| में जो अच्छे काम हुए, वह गांव के लोगों ने मिलकर किए। उनके करने से यह काम आगे बढ़ पाया।
मोटे तौर पर देखने को मिला की शुरू में ये सभी लोग नहीं जुड़े ,धीरे-धीरे गांव में जब परिवर्तन हुआ तो इन्होने गांव में रहना शुरू किया। फरारी को छोड़कर अदालत में पेश हुए । अदालत में पेश होकर अपने को मुक्त करके, पूरे मनोयोग से खेती का काम कर रहे हैं। इस मनोयोग ने इन्हें खेती का काम करनेवाला बना दिया। पहले फरारी, लाचारी, बेकारी और बीमारी का डर था, वह अब खत्म हो गया है। अब ये इज्जतदार, मालदार और पानीदार बन गए हैं। यही अपने आप में सुख-संस्कृति का संदेश होता है। यह रास्ता इन्होने अपने आप निकला है। भारतीय ज्ञानतंत्र में प्राकृतिक आस्था है। इन्होंने भी उसी आस्था ने स्थान बना दिया है। यह शांति से क्रांति हो गई है।
सभ्यता और संस्कृति की समृद्धि से अब सैरनी और पार्बती के बेटे-बेटियाँ शेर की तरह रहने लगे है। गांव से बाहर जाकर, जो फरारी, लाचारी, बेकारी, बीमारी का डर था, वह अब खत्म हो गया है। इससे जीवन में आनंद ही आनंद हो गया। इस आनंद की अनुभूति ने 18,19 और 20 मई, 2023, को देश -दुनिया के लोगों को अपने इलाके में मिलने के लिए बुला रहे है। आप सभी इसमें सादर आमंत्रित हैं। यहाँ आकर देखेंगे की शांति से क्रांति कैसे हो जाती है। धीरज, सरल-शांत स्वभाव से क्रांति ही शांति में क्यों बदलती? यह आपको पार्बती में देखने को मिलेगा। सैरनी के शेरों से मिलने जरूर आएँ।
*लेखक जलपुरुष के नाम से विश्व विख्यात जल संरक्षक हैं।