सैरनी से परिवर्तन -3: भूड़खेड़ा गांव में जल से आयी शांति
– डॉ राजेंद्र सिंह*
भूड़खेड़ा गांव का सोना बाबा सबको जोड़ता था। यहां के हिंसक, लाचार ,बेकार, बीमार , फरार लोगों ने पूरे गांव को तीन टोलियों में बांट दिया था। ये तीनों टोलियां अलग अलग क्षेत्रों में सक्रिय थी। मुझे जब कुंवर राज, दुलैया, चमन सिंह ने चम्बल के इस गांव की बैठक में बुलाया तो भी तीन तरह की बातें और आवाजें साफ-साफ सुनाई पड़ती थी। जबकि गांव को बांटने वाले इस बैठक में मौजूद नहीं थे। मैनें सोना बाबा को रोते हुए देखकर पूछा कि अब आगे भी ऐसे ही गांव की लूट पाट के आंसुओं के घूंट पीते रहना चाहते है या कुछ अच्छा करने का मन है। हम तो जीवन भर तबाह रहे हैं। मरते – मिटते रहे हैं। अगली पीढ़ी को आप का सहारा मिल रहा है। हम अब सब सुधरने की तैयारी में हैं। आप जिस गांव में जाते हैं, उसकी फूट – लूट मिटाते हैं। आपके काम से सैकड़ों गांव अच्छे हुए हैं। उन गांवों में मेरी रिश्तेदारी है, मैंने देखे हैं। उन्होंने भी अब वे अच्छे काम और गांव देख लिए हैं, जहां अपने अच्छे काम किए हैं। इसलिए अब इनके मन बदल रहे हैं, अब सब बदलेंगे। वे सब इस बैठक में नहीं हैं। अगली बार वे सब भी आपसे मिलेंगे।
सोना बाबा की बात में सरलता, सहजता और विश्वास था। इस विश्वास ने मुझे भी प्रभावित किया है।
मैनें काम शुरू करने से पहले अपनी तरफ से सफाई कर दी, गांव को एक तिहाई योगदान श्रमदान देना ही होगा, तभी कुछ काम आगे बढ़ेगा। कुंवर राज – महाराजपुरा , सोना बाबा – भूड़खेड़ा ने सबसे सामूहिक बात करने से पहले अलग – अलग , एक-एक से पूरी बात करी। उसके बाद सामूहिक सर्वसम्मति से काम करने का निर्णय हो गया। उसके बाद मूहर्त निकाला।
मैं उस मूहर्त पर भी गया था। जब काम शुरू हो गया तो चमन सिंह ने इस काम का संचालन संभाला। वर्षा से पहले पूरा होने पर और फिर वर्षा जल से भरने के बाद अपरा बही, तो भी मैं देखने गया। मछली का ठेका गांव वालों ने दे दिया। बड़ी मछली भी देखने गया था। साईफन पद्धति से गेहूं की सिंचाई और सभी कुछ देख रहा था।
इतने में एक पंडित जी ने इस काम में अचानक अड़चन पैदा करने हेतु मुकदमा किया।सभी अड़चनों से गुजरते हुए इस सदाचारी संरक्षण से गेहूं – सरसों का भारी उत्पादन भी मैंने देखा। इस उत्पादन ने लज्जाराम, मुकेश, ओवारी, रूस्तम, राजवीर, महावीर रामराज का मन भी हिंसा से हटकर अहिंसक सदाचारी बनने लगा। ये सभी अब अपने गांव का अच्छा नाम बनाने में जुट गए है। इन्हे अच्छे काम करने की प्रेरणा गांव में पानी होने से ही मिली थी।
इन्हें किसी ने भी त्याग, समर्पण, करने को कुछ भी नहीं कहा, केवल जल उपलब्धता ने भय ,लाचार, बेकार ,फरार मुक्त बनाया है। अब हम इज्जतदार, पानीदार और मालदार बन गए हैं। हमारा घर परिवार में भी इज्जत बढ़ गई, वीरबानी को भी आराम हो गया। पहले तो महीनों में कभी-कभी हम बहिन और पत्नी से भी डर-डर के मिलते थे। अब तो साथ-साथ रहते, खाते, सोते हैं। ऊ भी खुश और हम भी खुश हैं।
ओतारी बोला कि पहले हमें पता नहीं था हम क्यों मारे-मारे फिरते थे। पानी ने हमें बता दिया कि, मेरे बिना जीना मुश्किल होता है। जल के बिना जीवन, जीविका और जमीर से नहीं जी सकते है। रात-दिन मारे-मारे फिरते थे। अब चारों पहर चैन से खाते-पीते-सोते है। हमारी गाय, बकरी, भैंस भी हम से चैन से बात करती है। पेड़-पौधे भी हमसे बोलते है और हम उनकी सुनते हैं। ये आनंद हमें बहुत आनंदित करता है। सब्बर और संतोष सब कुछ मिल गया है।
भूड़खेड़ा के लच्छू सिंह कहते हैं कि, “मेरे ऊपर 40 केस थे, अब सभी से मुक्ति मिल गई है। अब मैं नहीं डरता हूँ और न ही किसी को डराता हूँ। सभी मुझे प्यार करने लगे है, मेरा घर परिवार सभी प्रसन्न हैं”।
ऐसी ही सभी की कहानी है। अब सभी आनंद से रहते हैं। सभी से पूछने पर एक जैसा ही जबाव मिलता हैं। जब यहाँ जल नहीं था, तो जीवन भी संभव नहीं था। जीवन चलाने के लिए जीविका के अवसर नहीं बचे थे, तब जमीर कैसे बचता? जब जल आया तो जीवन मिल गया, जीविका के सभी अवसर मौजूद हो गए। सैरनी के उद्गम के सभी गांवों की स्थिति एक जैसी ही थी। अब जल आया तो सभी के हालात एक जैसे ही सुधार की तरफ आगे बढ़ने लगे। अब सारा भूड़खेड़ा गाँव मुक्त होकर, अपनी खेती, भैंस-बकरी पालन, दूध, अन्न सभी प्रकार का उत्पादन आरंभ हो गया।
रूस्तम ने कहा कि अब भूड़खेड़ा; प्रेम का खेड़ा बन गया है। पानी ही प्रेम को लेकर आया है, अब पानी ने शांति कायम कर दी है। अब हमारे गांव का नाम जलशांतिखेड़ा होना चाहिए। पूरे गांव में फूट की, लूट-मारपीट का, हाल था, कोई किसी के पास बैठता भी नहीं था। अब पूरा गाँव साथ बैठकर, सर्व सम्मति से मिलकर निर्णय करता है। प्रेम से ही विश्वास बना है। विश्वास ने शांति कायम कर दी। यह विश्वास जल ने पैदा किया है। हमारा गाँव जल शांति का सर्वोत्तम मॉडल है।
राजवीर ने कहा कि‘‘ अब हमारा गाँव दुनिया का सबसे अच्छा गाँव है।’’ हम गाँव वालों ने मिलकर अपना घानी का तालाब बना लिया है। हम सबने उसे बनाने में अपना पैसा लगाया था। कुछ पैसा तरुण भारत संघ से भी हमने लिया था। ग्रामवासी ही इसके मालिक हैं। कुछ लोग तो होते ही है , जो दूसरों की भलाई देखना नहीं चाहते है, इसलिए अच्छे कामों में अड़चने पैदा करने वाले भी आते हैं। हमारे गांव के सोन बाबा, बच्छी सिंह जैसे बहुत अच्छे लोग हैं, जिन्होंने गांव की अड़चनों को दूर कर दिया है। अब हमारे गाँव को जीवन-जीविका भी मिल गई है।
महावीर बोले कि घानी का तालाब हमारे सारे गाँव और सैरनी नदी का जीवन बन गया है। हमारे लिए सरकार ने हैंडपम्प लगाये है, वह सभी सूखे निकले, उन्हें पानी नहीं मिला। हम प्यासे मरते सारे गाँव ने मिलकर सर्वसम्मिति से सभी पंडितों, ठाकुरों, गुर्जरों की राय लेकर यह घानी का तालाब बन गया। सभी ने इसे बनाने में पैसा लगाया, यह सभी का है। हम सभी इसके मालिक है, इसने हम सभी को प्राण दे दिए है। ‘‘पूरे गाँव का प्राण घानी का ताल है’’।
घानी के तालाब को सारे गांव से पैसा इकट्ठा करके बनाया है। अब सारे गांव की प्राण रेखा बन गया है। इसे बनाने में हमने तरुण भारत संघ की मदद ली थी, पर बनाया हमने ही है। इसे बनाने वाला सारा गांव है। लेकिन एक आदमी ने मुकदमा कर दिया है, जबकि बनाते वक्त वो भी हमारे साथ था। इसके बनने से सारे गांव की खेती देखकर, जलन से झूठा मुकदमा दायर करके, तंग कर रहा है। इस तालाब पर जितना हक मेरा है, उतना ही लाभ और हक मुकदमा करने वाले का है। फिर भी न जाने हमें और चमन सिंह को तंग करने के लिए मुकदमा हमारे खिलाफ करा दिया है। खैर जीत तो शुभ की ही होगी। शुभ तो सत्य है। घानी का तालाब सभी का है, सभी के लिए पुण्य मिल रहा है। न्यायालय ही न्याय करेगी कि, तालाब को तालाब को तरह रहने देगी।
घानी का तालाब बनवाने वाले सोना बाबा एक मात्र व्यक्ति थे जो गाँव में तालाब बनाने के लिए तैयार हुए थे। इनके के साथ कुंवरराज और चमन सिंह की पहल से यह काम पूरा हुआ। इस काम पर जितना खर्च हुआ है, इसका चौथाई खर्च तो पहले साल ही केवल मछली के ठेके से मिल गया। खर्च से 10 गुना ज्यादा का गेहूं, जौ, सरसों की पैदा हुआ, फिर मक्का-ज्वार से पैदा होने लगी। इस गाँव के सभी हिंसको ने अहिंसक बनना ठान लिया और अहिंसक खेती में सभी जुट गए है। जिसके पास एक भी भैंस नहीं थी, अब इसके पास तो 40 भैंस हो गई। सबको घास-चारा पानी बिना खर्च किए मिलने लगा।
अधिक खर्च करके अधिक कमाई करने का चलन है। सैरनी में बिना खर्च कमाई करने का सिद्धांत स्थापित हुआ। यहाँ पानी में मछली और सिंघाड़ा पैदा होने लगे। इस पानी की मिट्टी में नमी से फसल का उत्पादन होने लगा। इससे पशुओं का चारा और ईधन से महिलाओं के जीवन में सुख-सुविधा बढ़ने लगी।
रामरज ने कहा कि कष्ट में जन्मे, कष्ट में पले – बढ़े हुए, अब जीवन का सारा आनंद मिल रहा है। जल शांति आ गई है। जल शांति ने सारे सुख हमें दे दिए है।
यह गाँव दुनिया को जल से शांति कैसे आती है, यह सिखाने हेतु तैयार है। इस लेख को पढ़ने वाले, इनके गाँव जरूर पहुँचे। यह गांव इस वर्ष के संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा घोषित विश्व जल शांति वर्ष के लिए प्रेरक गाँव है। यह दुनिया को शांति सिखाने वाला गाँव है।
*लेखक जलपुरुष के नाम से विश्व विख्यात जल संरक्षक हैं।