रविवारीय: महिला सशक्तिकरण
– मनीश वर्मा ‘मनु’
मुझे भली भांति याद है, हमारे बचपन के दिनों में हमें कहां महिला सशक्तिकरण के बारे में मालूम था? इस शब्द का तो मेरे याद्दाश्त में कोई वजूद ही नहीं था। मेरी प्रारंभिक शिक्षा शुरुआत के एक साल शिशु निकेतन स्कूल, पटना में हुई। मेरी मां जिन्होंने बाद में सरकारी शिक्षक के रूप में अपना योगदान दिया, वो भी वहीं शिक्षिका थीं। शायद यही कारण रहा कि बाद में मेरा नामांकन मोती एकेडमी, पटना में कराया गया। खैर , हाई स्कूल के पहले तक की मेरी पढ़ाई इसी स्कूल से हुई।
बचपन की बातें हैं, बहुत छोटे थे हम, बहुत कुछ तो याद नहीं है पर, एक बात जो मुझे ख़ासतौर से याद है और जिसका मैं यहां पर जिक्र करना भी चाहूंगा वो हमारी प्रिंसिपल मैडम के बारे में है। श्रीमती मन्ना रानी सिंह यही नाम था उनका। कुछ धुंधली सी यादें हैं उनकी। उस वक्त उनकी उम्र करीब ५० के आसपास की रही होगी। लंबे कद की सौम्य एवं गरिमामय व्यक्तित्व की मालकिन। विद्वत्ता से परिपूर्ण बड़ा ही प्रभावशाली व्यक्तित्व था उनका।
उस जमाने में जब पटना शहर में गिनी चुनी गाड़ियां हुआ करती थीं। आप उन्हें उनके स्वामी के नाम के साथ पहचाना करते थे। उस वक्त मैडम के पास दो- दो गाड़ियां थीं। एक थी विलीज जीप और दूसरी शायद फियट कार थी। दोनों ही गाडियां मैडम खुद ड्राइव करतीं थीं। पटना की सड़कों पर मैडम को बिंदास गाड़ी चलाते हुए देखकर हम लोगों को बड़ी हैरत होती थी। आज जबकि ऐसी कोई बात नहीं है। मैडम के पति पटना उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता थे। दो बेटियां थीं एक के बारे में मालूम था कि अमेरिका में डाक्टर हैं। इकलौता बेटा था। हमलोग उन्हें अतुल भैया कह बुलाया करते थे। बढ़िया क्रिकेटर थे। बड़ा सा घर और घर के अहाते में ही क्रिकेट की प्रैक्टिस के लिए सारे साधन जुटाए गए थे। प्रेक्टिस करने के लिए नेट लगा रहता था।
अब, आप कहेंगे कि हम आपको यह सब क्यों बता रहे हैं। क्या प्रासंगिकता है इन बातों की? थोड़ा धैर्य रखें।
हमें उस उम्र में कहां मालूम था कि नारी सशक्तिकरण किस बला का नाम है। हमने तो जब होश संभाला तो सशक्त नारी के रूप में मां को देखा। सशक्त नारी की प्रतिमूर्ति। जैसा मैंने पहले ही बताया शिक्षिका थीं वो। अनुशासन के मामले में घर और स्कूल में कोई फ़र्क नहीं। अच्छा खासा प्रभाव था उनका। चिल्लाकर वो प्रभाव नहीं जमाती थीं। व्यवहार ही उनका कुछ ऐसा था कि आप उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकते थे। विद्यालय वाली गरिमा घर में भी बरकरार थी।
घर से बाहर जब स्कूल में दाखिला हुआ तो मैडम के रूप में एक अति शक्तिशाली महिला को एक नेत्री के रूप में पाया। क्या मजाल कि मैडम राउंड पर हों और चूं तक की आवाज सुनाई दे। एकदम सुई पटक सन्नाटा।
इतिहास गवाह है महिलाओं की वीरता, उनके शौर्य, नेतृत्व क्षमता और विद्वत्ता का पुरा विश्व कायल रहा है। तब फ़र्क कहां पड़ा है? फ़र्क आया है।आज जब हम नारी सशक्तिकरण के संदर्भ में गढ़े गए विभिन्न प्रकार के नारों को या फिर इस संदर्भ में होनेवाली बैठकों या गोष्ठियों को देखते हैं तो एक अजीब सा एहसास होता है।
जिस देश में नारी विभिन्न रूपों में सदा ही पूजनीय एवं वंदनीय रही हों, शक्ति की अधिष्ठात्री देवी के रूप में जिनकी पूजा होती रही हो, क्षत्रिय धर्म को भी जिस देश की महिलाओं ने अंगिकार किया हो, पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर जिसने रणभूमि में भी अपना जौहर दिखलाया हो, सामाजिक और सांस्कृतिक रूप में भी जो सदा आगे रही हों, शंकराचार्य को भी जिसने शास्त्रार्थ में हराया हो, आज हम उसे शक्तिशाली बनाने की चर्चा कर रहे हैं। मुझे याद नहीं कि उस वक्त कभी समाचार पत्र में हम नारी के संदर्भ में किसी भी तरह के अत्याचार या किसी भी तरह की गलत बातों को पढ़ते थे। समाज में एक सम्मान था । नज़रें उठती भी थीं तो सम्मान देने के लिए।
जाने कहां गए वो दिन? काश कोई मेरा बचपन मुझे लौटा पाता! शायद लौट आते वो दिन! जब आधी आबादी चैन से, सुकुन से, निश्चिंतता और परस्पर भरोसे और विश्वास के साथ सुरक्षित जिंदगी जी पातीं।