रविवारीय: लखनऊ का बड़ा मंगल
लखनऊ के समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रतिबिंब दर्शाने वाले परंपराओं में से एक है बड़ा मंगल। जब हम लखनऊ आए तो लोगों ने कहा यहां बड़े मंगलवार को भंडारा होता है।आप जरूर शिरकत करेंगे। उसे मिस नहीं करेंगे। मुझे उस वक्त लगा पता नहीं यह बड़े मंगलवार की भंडारे में ऐसी क्या बात है जो मुझसे कहा जा रहा है कि आप उस दिन भंडारे में जरूर शामिल हों। वाकई मैं तो इसे अद्भुत और अलौकिक अनुभव ही कहूंगा।
आइए बात करते हैं बड़े मंगलवार और उस दिन के भंडारे के बारे में।
कहते हैं शहर के प्रसिद्ध छांछी कुआं मंदिर में गोस्वामी तुलसीदास एक बार पधारे थे। वहां उन्होंने रात्रि विश्राम किया था। रात में उन्हें स्वप्न में हनुमान जी के दर्शन हुए। मंगलवार का दिन था वो।तभी से बड़ा मंगल मनाने की परंपरा अवध, खासकर लखनऊ, में शुरू हुई।
राम भक्त हनुमान को समर्पित हिन्दी महीने का तीसरा महीना ज्येष्ठ (जेठ ) का बड़ा मंगल। बड़ा मंगल को अवध क्षेत्र में खासतौर पर लखनऊ में बड़े ही धूम-धाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। जगह-जगह भंडारे होते हैं। मंदिरों में दर्शन पूजन के लिए भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है, जिसके लिए प्रशासन पूरी तैयारियां करता है। सारा शहर बड़े मंगलवार के भक्तिमय हो जाता है। शहर की ट्राफिक व्यवस्था को संभालना एक मुश्किल काम होता है। जगह जगह गाड़ियों के आने जाने के रास्ते को डायवर्ट किया जाता है।
राज्य सरकार ज्येष्ठ या जेठ महीने के पहले मंगलवार को सार्वजनिक छुट्टी घोषित कर देती है। एक आंकड़े के अनुसार इस वर्ष जेठ महीने के पहले मंगलवार को लखनऊ शहर में निबंधित भंडारे की संख्या तीन हज़ार थी। बाकी तो आप और समझ सकते हैं अन्य छोटे छोटे भंडारों के बारे में।
आखिर बड़ा मंगल को मनाने की परंपरा कहां से शुरू हुई और क्यों इस दिन भंडारे होते हैं?
नवाबों के शहर लखनऊ में एक ऐसे नवाब भी हुए हैं, जो हनुमान जी के बड़े अनन्य भक्त थे । यह नवाब और कोई नहीं, बल्कि नवाब वाजिद अली शाह थे। इतिहासकारों के अनुसार नवाब वाजिद अली शाह ने अलीगंज स्थित प्राचीन हनुमान मंदिर में भंडारा कराया था। यही नहीं, बड़े मंगल की शुरुआत भी नवाब वाजिद अली शाह और उनकी बेगमों ने करवाई थी।
नवाब वाजिद अली शाह और उनकी बेगमों की तरफ से इसी मंदिर में बंदरों को चना खिलाया जाता था। खास बात यह थी कि वाजिद अली शाह बजरंगबली के प्रति इतनी अधिक श्रद्धा रखते थे कि उनके नवाबी काल में बंदरों की हत्या पर प्रतिबंध था। नवाब वाजिद अली शाह के नवाबी काल में एक बार किसी ने बंदरों पर बंदूक चला दी थी, तो उसको इसका भुगतान भी करना पड़ा।
लखनऊ में जेठ महीने में बड़े मंगल पर भंडारों का इतिहास लगभग 500 वर्ष पुराना है। यहां के भंडारे की खासियत गंगा जमुना तहजीब मतलब यहां के भंडारों में क्या हिंदू क्या मुस्लिम सभी शिरकत करते हैं। मजहब की दीवार उनके बीच नहीं आती है।
आइए ,अब हम बातें करते हैं कि आखिर लखनऊ में बड़े मंगल पर भंडारे की शुरुआत कब और कैसे हुई। एक मान्यता के बारे में हमने ऊपर लिखा है, पर इस बारे में अलग-अलग और भी मान्यताएं हैं। चलिए हम पहले उन मान्यताओं की बातें करते हैं।
एक मान्यता के अनुसार अवध के नवाब शूजाउदौला की बेगम मल्लिका आलिया का सपने में एक मूर्ति का दिखना बना। यह लगभग 1760 ई की बात है। सपने के अनुसार जहां पर हनुमान जी की मूर्ति मिली वहां पर बेगम आलिया ने एक बड़ा और भव्य मंदिर बनवाया जो आज अलीगंज हनुमान मंदिर के नाम से जाना जाता है। ज्ञातव्य है कि बेगम आलिया के नाम पर ही अलीगंज मोहल्ला बसा है। मंदिर के लिए बेगम ने कुछ जमीन इस मंदिर के नाम की और कहा इसकी आमदनी से ही दर्शनार्थियों को प्रसाद वगैरह दिया जाए। कहते हैं, तभी से भंडारे की शुरुआत हुई। एक दूसरी मान्यता के अनुसार बेगम आलिया का अपने बीमार बेटे के लिए हनुमान जी से प्रार्थना करना था। हनुमान जी की कृपा से उनके बेटे की तबीयत ठीक हो गई।
कुछ ऐसी भी मान्यता है कि नवाब साहब बजरंगबली की मूर्ति इमामबाड़े के पास ले जाना चाहते थे, पर जिस हाथी पर मूर्ति को ले जाना था, वह बार-बार गोमती नदी के तट पर आकर रुक जा रहा था। नदी पार नहीं कर रहा था। बड़ी मुश्किल हुई। आखिरकार इसी स्थान पर नवाब साहब ने हनुमान मंदिर की स्थापना की और फिर बड़े मंगल पर भंडारे की शुरुआत हुई।
वहीं कुछ लोगों के अनुसार बड़े मंगल पर पूजन और भंडारे की शुरुआत लक्ष्मण जी से जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि जब लक्ष्मण जी सीता मां को लेकर अयोध्या से महर्षि वाल्मीकि के आश्रम की ओर जा रहे थे तो रास्ते में वह जहां रुके वो जगह आज टीले की मस्जिद के नाम से विख्यात है और वहां पर हनुमान जी ही उनकी रक्षा के लिए रक्षक बन खड़े थे।
तो कुछ ऐसी भी मान्यता है कि पूजन और भंडारे शुरुआत वहां से हुई।
ख़ैर! मान्यता कुछ भी रही हो, पर लखनऊ में बड़े मंगलवार पर एक उत्सव जैसा माहौल होता है। पुरा शहर ही मानो हनुमान भक्ति में डूब सा जाता है। एक अद्भुत,अतुलनीय, अवर्णनीय और अभूतपूर्व अनुभव। ज्येष्ठ (जेठ) माह की तपती धूप और 45° से ऊपर का तापमान भी यहां के लोगों के उत्साह में कोई कमी नहीं ला पाता है। लखनऊ शहर का लगभग हर व्यक्ति चाहे वो किसी भी मज़हब को मानता हो अपने आप को इस माहौल से अलग नहीं पाता है। इस बात में शायद कोई अतिशयोक्ति नहीं कि हम कहें कि भंडारे के दिन लखनऊ में घरों में दोपहर के भोजन के लिए चूल्हा नहीं जलता है। इस बात से इत्तेफाक शायद सभी लखनवी रखें। क्या बड़ी क्या छोटी? सभी तरह की दीवारें टूट जाती हैं।
कहते हैं नवाब वाजिद अली शाह ने अलीगंज स्थित प्राचीन हनुमान मंदिर के शिखर पर जो चांद का निशान लगवाया था, वह आज भी वह मौजूद है।
Beautiful description
बिलकुल नयी जानकारी अद्भुत 🙏🙏🙏🌹🌷
बहुत ही रोचक जानकारी। असली गंगा – जमुनी तहजीब की परिचायक है यह परम्परा।
श्री मनीष वर्मा ‘मनु’ द्वारा “लखनऊ का बड़ा मंगल” पर गहन शोध करते हुये सारगर्भित तथ्यों सहित लखनऊ की गंगा-जमुनी तहज़ीब से समाज को रुबरु कराने व सामाजिक समरसता के भाव को प्रवाहमान बनाये रखने का सार्थक प्रयास किया गया है। सामाजिक समरसता के संदेश के साथ विषय से सम्बंधित विभिन्न पहलुओं को लेखनी के माध्यम से समाज के सामने लाना लेखक की विशिष्टता है। अत्यंत रोचक व सारगर्भित जानकारी के लिये लेखक को साभार धन्यवाद।