रविवारीय: गूगल बाबा
गूगल को हम जितना जानने और समझने की कोशिश करते हैं गूगल हमसे कहीं और आगे निकल जाता है। गूगल बाबा हम तो कहेंगे। इतना ज्यादा भरोसा तो हमें अपने बाबा पर नहीं है जितना गूगल बाबा पर हम सभी को है। आज बच्चे बच्चे की जुबान पर गूगल है। अरे! अभी तो उसने ढंग से चलना भी नहीं सीखा है।
जब 1998 में सर्गेई ब्रिन और लैरी पेज जिन्हें लोग ‘गूगल गाइज़ ‘ भी कहते हैं, नाम के दो छात्रों ने कैलिफोर्निया में गूगल की स्थापना की थी तो शायद उन्हें भी इस बात का अंदाजा नहीं रहा होगा कि गूगल, गूगल ना हो कर गूगल बाबा हो जाएगा।
एक वो समय था जब कुछ ढूंढने के लिए इनसाइक्लोपीडिया एकमात्र विकल्प हुआ करता था। बहुत सारे खंडों में बंटा होता था। किसी व्यक्ति के वश की बात नहीं थी इनसाइक्लोपीडिया खरीद कर घर में रखने की । लाइब्रेरी की शोभा होती थी इनसाइक्लोपीडिया। ज्ञानी व्यक्ति को हम लोग इनसाइक्लोपीडिया की उपाधि दिया करते थे पर, आज आपके एक बटन दबाने की देर है और गूगल बाबा हाज़िर !
ऐसा शायद ही कोई जगह हो जहां बाबा ने अपनी उपस्थिति दर्ज ना कराई हो। हम कहते हैं स्काई इज द लिमिट पर, यहां गूगल बाबा ने तो सारे मिथक, सारे भ्रम तोड़ दिए हैं। क्या बचा है उनसे, बस आप उन्हें याद तो करें। हर मर्ज की दवा हैं गूगल बाबा। कहीं जाना हो, कुछ मंगाना हो, कुछ जानना हो सभी जगह बाबा विराजमान। आप अपना दायरा जितना भी बढ़ा लें , गूगल बाबा आपसे हमेशा चार क़दम आगे ही हैं। बच्चे- बच्चे की जुबान पर बाबा का नाम बस एक ही कमी है बाबा में, ये आपसे काम करवाते हैं खुद नहीं करते हैं। थोड़ा खुद भी कर लें तो बंदे को आराम हो जाएगा। हालांकि, वो दौर आ ही जाएगा।
वैसे, अब आप क्या चाहते हैं? सब काम आप बैठे बैठे ही करना चाहते हैं। अरे भाई! भगवान् ने आपको यह इतना बड़ा शरीर क्यों दिया है। कुछ तो अपने से करो।
अब तो लोग डाक्टर के पास जाने से पहले बाबा से इतनी जानकारी ले लेते हैं कि डाक्टर भी बेचारा सोचता है कि आखिर यह बंदा मेरे पास आया क्यूं है!
खैर! वो दिन शायद अब लौट कर नहीं आएगा जब कोई मां अपने बच्चों को बिठा कर कुछ सिखाने की कोशिश करेगी। बेटियां शायद ही अपने मां से अब खाना बनाना सिखने की जहमत उठाने की कोशिश करेगी। अब कोई बच्चा अपने बड़ों से कोई सवाल जवाब नहीं करता है। उसे मालूम है गूगल बाबा बता ही देंगे।
अभी बहुत वक्त नहीं बीता है। हम छोटे-छोटे थे। उस वक्त परीक्षा में एक लेख लिखने को आता था- विज्ञान वरदान है या अभिशाप! या फिर विज्ञान के चमत्कार!
दुनिया बस वहीं तक सीमित थी अपनी। पुरी मेहनत कर, इधर उधर से रट्टा मारकर लेख के दो चार किताब से ढूंढ- ढूंढ कर जोरदार लेख लिखने की कोशिश करते थे। लेख की किताबें हुआ करती थी उस वक्त। अच्छे और नामचीन लेखकों ने लेख की किताबें लिख रखी थी। अपने विद्यालय के सिलेबस का पार्ट हुआ करता था। कहां उस वक्त गूगल का ज़माना था। अगर होता तो एक अदद लेख लिखने के लिए इतनी मशक्कत थोड़े ही ना करनी पड़ती।
आज तो गूगल ने क्रांति ला दी है।
मां के द्वारा पूछे जाने बच्चे अब कहते हैं – मां, छोड़ो भी ना जब जरूरत पड़ेगी गूगल में सर्च कर लूंगी ना! क्यों अभी परेशान करती हो। इंसानी जीवन एक मशीन की तरह हो गया है। अब वो बोन्ड नहीं रहा। पहले रिश्तों में एक भावनात्मक लगाव हुआ करता था। एक दूसरे के पास बैठने, बातें करने से तो बहुत कुछ तो हम बातों ही बातों में सीख जाया करते थे। रिश्तों में एक गहराई आती थी सो अलग। तरक्की तो हमने बहुत कर ली। बहुत आगे बढ़ गए। इतना कि अब शायद ही लौट पाएं पर, दुनिया गोल है। इतना तो विश्वास है हम रहे या ना रहें वो दौर फिर से आएगा जब हम और आप गुगल बाबा से ऊब कर फिर से नानी दादी से कहानी सुनेंगे और किसी भी प्रश्न के उत्तर के लिए गुगल बाबा की शरण में ना जाकर अपने बड़ों के पास जाएंगे। आएगा वो दौर जल्द ही आएगा। हालांकि गूगल कंपनी ने एक अन ऑफिसियल स्लोगन बना रखा है – बुरा ना बनें
गूगल जो अंग्रेजी का शब्द गूगोल की गलत वर्तनी थी।गुगोल का शाब्दिक अर्थ – एक ऐसा नंबर जिसमें एक के बाद सौ शुन्य हों । मतलब साफ है- जानकारियां ही जानकारियां। एक ढूंढो हजार मिलेंगे।
एक व्यंगपूर्ण ज्ञानवर्धक आलेख
अब तो चैट जी पी टी भी आ गया है जिसे आप बता दीजिए किस बारे में आपको कोई अभिव्यक्ति लिखना वो लिख देता है ।
महाशय,
यह एक परिश्रमी व पूर्ण लेख दिखती है. तत्पश्चात् गूगल के द्वारा इसलिए हमसे कार्य करवाया जाता है ताकि गूगल उपयोगी बने जिसकी सर्वोत्तम उदाहरण गूगल-मैप है.
सादर
Well studied article