रविवारीय: भगवान का हाथ
– मनीश वर्मा’मनु’
हम सभी मुसीबत में भगवान को याद करते हैं, क्या वाकई भगवान अस्तित्व में हैं! अगर तर्क की कसौटी पर देखें तो यकीन नहीं होता है। पर, विश्वास और आस्था इन सबसे परे हैं। बचपन में अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन के संदर्भ में एक कहानी मैंने पढ़ी थी। आप इसे कहानी न कह कर एक वाक़या भी कह सकते हैं। चलिए, आज इस वाक़ये को मैं आप सभी के साथ शेयर करता हूँ ।
बात कुछ ऐसी थी कि एक बार अब्राहम लिंकन ने अपने बेटे के शिक्षक को कहा- आप मेरे बेटे को पढ़ाते हैं, उसे अच्छी शिक्षा देते हैं। अच्छी बात है। मैं यहां आपको जो शिक्षा आप उसे देते हैं, उस संदर्भ में कुछ बताने नहीं आया हूँ । मैं सिर्फ आपसे यह निवेदन करना चाहता हूँ कि आप उसे बताएं कि जीवन में चाहे कितनी भी समस्या आए, कभी सच्चाई का दामन मत छोड़ना। सच बात कहने में कभी हिचकना नहीं। कभी भी सच्चाई से मुँह ना मोड़ना। जब आप सच्चाई का साथ देते हैं और जब आप सच्चाई के लिए किसी के साथ खड़े होते हैं, भगवान आपकी मदद के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं। ऐसा नहीं कि भगवान खुद आ जाते हैं, लेकिन जब आप परेशान होते हैं, तब एक हाथ की जरूरत होती है, जो आपको परेशानी से निकाल कर ले जाती है। वह हाथ भगवान का है। आप मेरे बेटे को इतना जरूर बताएं । बस आपसे मेरी इतनी सी अपेक्षा है।
बचपन में पढ़ा हुआ यह वाकया मेरे दिलो-दिमाग पर कुछ इस तरह बैठ गया है कि आज भी मैं इस पर अमल करता हूँ । चाहे कितनी भी परेशानी आए, सच कहने से कभी हिचकता नहीं हूँ । जो सच है, जो सही है, वह मैं ज़रूर कहता और करता हूँ । हां, सच का साथ देने पर और सच्चाई कहने पर, मेरे सामने परेशानियां जरूर आती हैं। कुछ देर के लिए मैं व्यथित हो जाता हूँ । सच थोड़ा कड़वा होता है! लोग इसे पसंद नहीं करते हैं। कुछ देर के लिए मैं अपने आप को अलग-थलग ज़रूर पाता हूँ ,पर अंततः जीत सच्चाई की ही होती है।
कुछ ऐसा ही वाक़या, अभी हाल में ही मेरे पटना से कोलकाता यात्रा के दौरान हुआ। मैं और मेरे बच्चे अपनी गाड़ी से सड़क मार्ग से पटना से कोलकाता जा रहे थे। हालांकि, पटना से कोलकाता का सफर सड़क मार्ग के द्वारा लगभग 600 किलोमीटर का है। पर अमूमन इसे तय करने में मिलाजुला कर लगभग 11 से 12 घंटे का वक्त लग ही जाता है। कहीं पर थोड़ा रास्ता खराब है, तो कहीं पर डायवर्जन, जिसकी वजह से आप 11 से 12 घंटे में ही कोलकाता पहुंच पाते हैं।
उस दिन भी हम लोग लगभग उसी हिसाब से चल रहे थे। रास्ते में धनबाद में थोड़ा सड़क जाम था। इसे देखते हुए एक घंटे की देरी हो सकती थी। पर अचानक से रास्ते में एक जगह वर्धमान में एक से डेढ़ घंटे का अप्रत्याशित सड़क जाम लग गया। प्रत्यक्षतः कोई कारण समझ में नहीं आ रहा था। शायद, जोरों की बारिश एक वजह हो सकती थी। वर्धमान से निकलते ही शाम का धुंधलका छाने लगा था। एक डर सा भी मन में आ रहा था। शाम का धुंधलका, बारिश का मौसम और जी. टी. रोड का सफर, और मैंने कभी रात में हाइवे पर ड्राइव भी नहीं किया था। खैर, एक बार दिल से भगवान को याद कर बढ़ चले। और कोई चारा भी नहीं था।
वर्धमान के बाद कोलकाता के रास्ते में बहुत सारे गड्ढे जो सड़क पर बन गए हैं, वे अंफान साइक्लोन के बाद कुछ ज्यादा ही खतरनाक साबित हो रहे थे। अंधेरे में उस पर ध्यान दे पाना काफी मुश्किल हो रहा था। ऐसा ही कुछ उस दिन हुआ। रात की वजह से रास्ते में एक गड्ढे को न देख पाने की वजह से गाड़ी की बायीं तरफ का अगला चक्का गड्ढे में जा गिरा। एक जोर की आवाज हुई। खैर, धड़कते दिल से गाड़ी आगे बढ़ाते गए। थोड़ा आगे जाने के बाद उस जगह से आवाज आने लगी, जब मैंने गाड़ी को रोका तो पाया गाड़ी के बायीं तरफ का अगला टायर तो बिल्कुल बर्स्ट कर गया था और गाड़ी तो लगभग रिम के सहारे ही चल रही थी। बरसात की अंधेरी रात, हाईवे का सफर, साथ में बच्चे ! आस-पास कुछ भी नहीं बड़ी मुसीबत से किसी तरह हिम्मत जुटाकर हम और हमारे बच्चों ने टायर को बदलने की कोशिश की। पता नहीं नर्वस होने की वजह से या फिर कुछ और वजह थी, हम लोग तमाम कोशिशों के बाद भी टायर नहीं बदल पाए। लगा, अब क्या करें? कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था। आस-पास कोई पेट्रोल पंप भी नहीं था। ना ही कोई छोटी सी दुकान या कोई व्यक्ति दिख रहा था, जिससे मदद की उम्मीद की जा सके। बस, दिख रहा था, तो हाईवे पर पसरा हुआ घुप्प अंधेरा, बारिश और हाइवे पर गुजरती हुई छोटी-बड़ी गाड़ियां।
रात गहराने लगी थी। कोलकाता अभी भी लगभग 40 किलोमीटर दूर था। तभी वहां पर एक बाइक आकर रुका। हम थोड़े देर के लिए डर भी गए। पता नहीं कौन हैं ये लोग। दो लोग बैठे थे उस बाईक पर। मैंने हिम्मत कर उनसे कहा, भाई थोड़ी मदद करो हम स्टेपनी नहीं बदल पा रहे हैं। उन्होंने कहा, आप चिंता बिल्कुल मत करें हम लोग हुंडई कंपनी के इंजीनियर हैं और आपको यहां इस अंधेरी रात में देखकर ही हमने अपनी गाड़ी रोकी है ।
उनके मुख से ऐसा सुनकर लगा कि वास्तव में कोई न कोई हाथ ऐसा होता है, जो शायद भगवान का ही होता है। वह आता है और आपको मुसीबत से बचा कर ले जाता है। उन्होंने मेरी गाड़ी की स्टेपनी बदल दी। साथ ही साथ उन्होंने अपना मोबाइल नंबर भी शेयर किया और कहा चिंता नहीं करेंगे। हम लोग आपके कोलकाता पहुंचने तक आपसे जुड़े रहेंगे। मेरे पास उन्हें धन्यवाद देने के कोई शब्द नहीं थे या आप कह सकते हैं कि भावनाओं के अतिरेक में मेरे मुंह से शब्द नहीं निकल पा रहे थे। उनसे सिर्फ इतना ही कह पाया, भाई आपको देने के लिए मेरे पास कुछ भी नहीं है। मैं आपको ढंग से धन्यवाद भी नहीं दे सकता हूँ । उन्होंने कहा कोई बात नहीं! मुझे अपनी बची हुई यात्रा के लिए शुभकामनाएं देते हुए वे लोग चले गए।
आप विश्वास करें या न करें, अगर ईश्वर में आपकी आस्था है, विश्वास है, तो मुसीबत में एक हाथ आएगा, जरूर आएगा और मुसीबत से आपको बचा कर ले जाएगा! वह भगवान का हाथ होगा!