रविवारीय: बांस घाट दूर है…
– मनीश वर्मा’मनु’
मुझे क्या, पटना में रहने वाले लगभग सभी लोग इसे जानते हैं कि उस वक्त श्मशान घाट को सभी बांस घाट के नाम से जानते थे। गंगा नदी के किनारे बसा पटना शहर और उस शहर में अन्य कई घाटों के बीच एक घाट जहां मनुष्य का अंतिम संस्कार किया जाता था।
मुझे आज भी याद है बचपन के उन दिनों की बातें। आमतौर पर बच्चों को वहां नही ले जाया जाता था। महिलाओं का प्रवेश तो बिल्कुल ही वर्जित था। आज परिस्थितियां काफी बदल गयीं हैं। बांस घाट एक पर्याय बन चुका था मुक्तिधाम का। खैर आज भी है। आप इसे किसी भी नाम से पुकार लें बैकुंठधाम, गोलोकधाम आदि आदि।
आज हम और आप अंत्येष्टि स्थल का चाहे जो नाम रख लें पर, जेहन में आज भी बांस घाट ही है। यह वो जगह है जहां सभी आपको गहरी नींद में सोए हुए मिलते हैं। ऐसा लगता है मानों सभी को अभी अभी गहरी नींद आई है। दिनभर की मेहनत मशक्कत के बाद सभी अपने सारे घोड़े बेचकर , दिन दुनिया से बेखबर सोए हुए हैं। किसी बात की कोई फिक्र नहीं। आस-पास की दुनिया से बिल्कुल बेखबर। यह नजारा आपको दिखाई दे जाएगा हर मुक्तिधाम में।यहां सभी अपने सोए हुए लोगों को आवाज़ देकर उठाने नहीं बल्कि उन्हें इस नश्वर संसार से विदा करने आए हुए हैं।
लगभग सभी छोटे बड़े शहरों में एक बांस घाट है, नाम भले ही कुछ भी रख लें कह लें। आत्मा तो इस नश्वर शरीर से कब का विदा ले चुकी है। बस एक औपचारिकता बची है और हम सभी उसी औपचारिकता को निभाने के लिए ही तो यहां एकत्र हुए हैं। जब आत्मा आपके शरीर से निकल कर किसी और के शरीर में प्रविष्ट कर जाती है, अब आप, आप न होकर सिर्फ और सिर्फ एक मृत शरीर हो जाते हैं। तब आप और हम पहुंचते हैं, मुक्तिधाम । यह वो जगह है, जहां आप और हम सभी बंधनों से मुक्त हो जाते हैं। आप बिल्कुल निश्चिन्त हैं। तमाम तरह के उधेड़बुन से दूर, बहुत दूर। आपका खुद का शरीर जिसे आपने बड़े जतन से पाला पोसा है एक पल में ही मिट्टी में मिल जाता है। मन के सारे क्लेश विकार खत्म हो जाते हैं। मिट्टी का बना यह शरीर मिट्टी में मिल जाता है। आत्मा आपके शरीर से निकलकर किसी और के शरीर में प्रविष्ट कर जाती है। किसी की मृत्यु होती है तो किसी का जन्म होता है। यही तो प्रकृति का शाश्वत नियम है।
बांस घाट को अर्थी ले जाते हुए पटना की सड़कों पर सभी एक ही नारा लगाते थे – बांस घाट दूर है जाना ज़रूर है। तब तो नहीं पर आज जब सोचता हूँ तो लगता है कितनी सच्चाई थी इस छोटे से नारे में। शरीर नश्वर है पर, आत्मा अजर अमर है। सृष्टि की एकमात्र सच्चाई बयां करता एक स्थान मनुष्य की सारी की सारी प्लानिंग बस यहीं की यहीं धरी की धरी रह जाती है।
आप बहुत ताकतवर रहे हों, कोई फर्क नहीं पड़ता। सब मन का भ्रम है। व्यक्ति सिर्फ और सिर्फ भ्रम में जीता है। आप भी यहां पर औरों की तरह ही बिल्कुल निश्चिन्त भाव से चिर निद्रा में सोए हुए हैं। बस, मृत्यु ही एकमात्र सच है, मान लें। बाकी सब मिथ्या है, मृगतृष्णा है। हम सभी इसी मृगतृष्णा में जी रहे हैं। पल भर में सब कुछ बदल जाता है और हम हैं कि समझना ही नही चाहते हैं। नहीं, समझते तो हम हैं। इतने अज्ञानी भी नहीं हैं हम पर, क्या करें दर्शाना नहीं चाहते। पर, क्या आपके दर्शाने और न दर्शाने से कोई फर्क पड़ने वाला है। बिल्कुल नहीं। सच के साथ यही तो एक समस्या है, बदलना ही नहीं चाहती है। जीवन जीने के वास्ते सभी को एक तय समय मिला हुआ है। सभी के अंदर एक चाभी भरी हुई है। चाभी खत्म तो सब कुछ खत्म।
कुछ अच्छी यादों को छोड़ आएं। बस, वही आपके बाद रह जाएगी। सिर्फ और सिर्फ आपकी यादें, अन्यथा, राम नाम तो सत्य है ही। यह भी कि बांस घाट दूर है पर जाना ज़रूर है।