राम नीर, नारी और नदी को नारायण मानते थे। क्योंकि वो नीर और नारी (प्रकृति) अर्थात् सीता जी को बहुत प्यार और सम्मान करते थे। उन्हें यह तीनों बहुत सम्माननीय थे।
मेरे राम प्रकृति को अपने प्रेम से सहेजकर, वनवासियों व जंगली जानवरों को प्यार से संगठित करके, प्रकृति को कष्ट देने वाले रावण को हराने वाले राम हैं। मैंने श्री राम को भगवान तभी माना, जब उन्होंने पंचमहाभूतों के साथ स्नेह से रहकर, अपना जीवन संघर्षमय बनाकर सिद्धी प्राप्त की। राम पूरे जीवनभर पंचमहाभूतों ( भ – भूमि, ग – गगन, व – वायु , अ – अग्नि, न -नीर) का सदैव, आदर, सम्मान, स्नेह, विश्वास, श्रद्धा तथा भक्तिभाव से संभालते, संरक्षण और समृद्ध करते रहे। वो जानते थे कि वे इन पंचमहाभूतों से ही निर्मित हैं; इन पंचमहाभूतों का शत्रु ‘रावण’, जो धरती, वायु, गगन, सूरज और पानी पर नियंत्रण करना चाहता था। उसने भौतिक साधनों का शोषण, अतिक्रमण करके सोने का महल भी बनाया था। मेरे श्री राम ने जंगल वासियों और जंगली जानवरों के साथ मिलकर, रावणमयी सभ्यता को खत्म करके, राममयी संस्कृति को जन्म दिया।
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राम ने अपने पूरे जीवन में कभी झूठ नहीं बोला, किसी को धोखा नहीं दिया और डराया नहीं। वे तो इस प्रकृति को स्नेह से सींचते रहते थे। उस काल के गरीब से गरीब इंसान को स्नेह से पोषित किया। इसलिए वे धरती, प्रकृति और पंचमहाभूतों के प्रति स्नेह व सम्मान करना सिखाते हैं।
राम के बारे में दुनिया कहती है कि उन्होंने प्रजा के कहने से सीता को घर से निकला था; लेकिन राम जानते थे कि जब प्रजा मर्यादा को निर्वाह करने वाली स्त्री को ऐसा कहती है, तब उस स्त्री के सत्यनिष्ठ, गौरव और गरिमा बनाए रखने हेतु उच्च संत के आश्रम में भेजना चाहिए। जब बड़े आचार्य सीता जी को निष्कलंक कहेंगे, तभी प्रजा को विश्वास होगा कि सीता जी अपने उच्च आदर्शों, सिद्धांतों पर खरी हैं और जीवन जिया है। इसीलिए सीता जी को उन्होंने वाल्मीकि आश्रम भेजा और सीता का भी गौरव बढ़ाया।
राम अपने व्यवहार और सदाचार में सिद्धांतों से जीवन मूल्यों को अपने जीवन में उतारने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम थे। मर्यादा में रहकर, इस प्रकृति को सहेजकर व स्नेह से अपने और सबके जीवन को समृद्ध बनाते हैं। उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि, उन्होंने अपने जीवन में कभी भोग, विलास, शोषण, अतिक्रमण और समाज में प्रदूषण करने वाला कोई काम नहीं किया। वो तो सदैव अन्याय, शोषण, अतिक्रमण और प्रदूषण करने वाले इंसानों के खिलाफ लड़े और विजय हुए।
आज इस 21वीं शताब्दी में हमें श्री राम से सीखकर, प्रकृति और नदियों का शोषण, प्रदूषण और अतिक्रमण करने वाले इंसानों के खिलाफ खड़े होने की जरूरत है। यही प्रेरणा श्री राम मुझे देते हैं, इसीलिए मैंने अपने जीवन में अरावली पर्वतमाला को खदानों से मुक्ति दिलाने की लड़ाई 80 के दशक में शुरू की थी और उस लड़ाई को राम की शक्ति से ही जारी रखे हुए हूँ।
राम मुझे जीवन जीने का सिद्धांत बताते हैं कि हम प्रकृति से उतना ही लें, जितना हम अपने पसीने से इस प्रकृति को लौटा सकें। इन्हीं की प्रेरणा से मैंने अपना जीवन पानी और मिट्टी को सहेजने के काम में समर्पित कर रखा है।
*जलपुरुष के नाम से विख्यात जल विशेषज्ञ