पुस्तक समीक्षा: पुनर्जीवित नदी ‘नहरो’
लेखक: डॉ राजेंद्र सिंह
प्रकाशक: नालंदा प्रकाशन
भारत के जलपुरुष के नाम से विख्यात जल संरक्षक डॉ राजेन्द्र सिंह द्वारा लिखित पुनर्जीवित नदी ‘नहरो’ पुस्तक तरुण भारत संघ के 50 वर्षो के काम से चंबल क्षेत्र में बागियों की बंदूकों को छुड़वाकर, खेती में लगाने की कहानी है। पुस्तक में गांव के लोगों ने अपनी जुबानी, अपनी कहानी कही है। इस पुस्तक में मोटे तौर पर जिन पंचमहाभूतों के योग से नदी का निर्माण होता है, उनका वर्णन है।
चम्बल की सहायक उपनदी ‘नहरो’ राजस्थान के करौली और भरतपुर जिले में बहती है। 2010 से पहले यह नदी सूख कर मर गई थी। तरुण भारत संघ ने नदी क्षेत्र के लोगों के साथ मिलकर जल संरचनाओं का निर्माण करके, पसीने और मेहनत से जल संरक्षण-संवर्धन का काम करके, नदी पुनर्जीवन का काम किया। अब यह नदी वर्ष भर अविरल बहती है। नदी पुनर्जीवित होने से नदी के दोनों किनारों पर बसने वाले गांवों की सभ्यता और संस्कृति भी पुनर्जीवित हुई है।
इस पुस्तक में नदी के पुनर्जीवन की कहानी तो है ही; इसके अलावा पुनर्जीवित सभ्यता और संस्कृति की भी कहानी है। जब यह क्षेत्र सूखा और वीरान था, तब यहां के ज्यादातर लोग हाथों में बंदूक लेकर दूर शहरों में जाकर लूट पाट करते थे। यह असली डाकू नहीं थे, यह तो बागी थे जो मजबूरी में भूखे – प्यासे मरते थे, इसलिए दूसरों को भी मारने लगते लेकिन गरीबों को कभी नहीं सताया।
पुनर्जीवित नदी ‘नहरो’ में विश्व शांति जल दूतों के सम्मान व संकल्प का वर्णन है। जिसमें चंबल के बागियों का त्याग और समर्पण भी दिखता है। बागियों का किसानी करके, अपने श्रम से कमाना यह सिद्ध करता है कि, यह दूसरे डाकुओं की तरह हिंसक नही थे। यह मन से अहिंसक थे, जो हिंसा की है; वो मजबूरी में हुई। इस पुस्तक में नहरो नदी पुनर्जीवन के काम का इतिहास, नहरो नदी के भूगोल, का वर्णन है। तिमनगढ़, अटारी डांग की विरासत ही नहरो नदी का इतिहास है। नहरो नदी हेतु तरुण भारत संघ के काम आरंभ होते समय के गांवों के हालात, खैरटपुरा की खरखराहट गहरी है, बरगी की ढ़ाणी के हालात डरावने हैं, जलसंरक्षण काम से आये गांवों में बदलाव का चित्रण है।
पानी के बिना आश्रम भी उजड़ जाते हैं। खंडपुरा गांव जल संरक्षण से पुनः आबाद आश्रम, झंझरपुरा ने पानी की झंझावतो को पार किया, आलमपुर का आलम निराला है, ‘कैर का झरना’ भी पुनर्जीवित हुआ है, सिंगनपुर सिंगो वाला ही गांव था, अब प्रेम से काम करने वाला प्रमाणित सदाचारी गांव बन गया है, जमूरा तो अब जमूरा बन गया है। यहां जल क्रांति आलमपुर-उमरी गांव से आयी है, बीरबल का बेड़ा अब सुखी समृद्व है, दूसरों को सिखाता है, भोजपुर गांव अब दूसरों को भोज कराने वाला बन गया है।
नहरो नदी पुनर्जीवन में टिमकोली से प्रेम और समृद्धि का प्रकाश टमका है, उमरी ने महिलाओ-पुरुषों में प्राकृतिक प्रेम की उम्मीद पूरी नहरो नदी-घाटी में जगा दी, चंबल नदी की विभिन्न धाराओं एवं सहायक नदियों पर तरूण भारत संघ द्वारा किये गये कार्यों की प्रक्रिया पर पर्यावरणीय प्रभाव एवं मूल्यांकन रिर्पोट, जल संरचना का स्थान चयन एवं बजट, कार्य संचालन, खर्च की जिम्मेदारी और हिस्सेदारी, तरूण भारत संघ के जल संरक्षण का पर्यावरणीय प्रभाव, नहरो जैसी 23 नदी बहिनों और चंबल, के लोगों का घोषणापत्र, पुनर्जीवित नहरो नदी अनुभूति आदि विषयों के माध्यम से नदी पुनर्जीवन की प्रक्रिया, प्रभाव और भविष्य के लिए रास्ता बताती है।
इस पुस्तक में नदियों का वैदिक ज्ञान, बड़े वैज्ञानिकों की नदी के बारे में अनुभूति को पढ़कर एहसास होगा कि, जितना बड़ा पानी का संकट था, उस संकट को वहां की महिलाओं-पुरुषों ने संकट से समाधान के लिए जल संरचना निर्माण में सहयोग किया। इसमें प्रोफेसर जी डी अग्रवाल का ज्ञान और प्रोफेसर भालेराव की पुस्तक से लिखने में मदद मिली है। इस पुस्तक से आपको भी अपने क्षेत्र में नदी पर काम करने की प्रेरणा मिलेगी।इसलिए यह पुस्तक सभी के लिए उपयोगी है।
– ग्लोबल बिहारी ब्यूरो