विश्व पृथ्वी दिवस पर विशेष: पृथ्वी को हमारी नहीं, हमें पृथ्वी की जरूरत है
– प्रशान्त सिन्हा
पृथ्वी को स्वच्छ रखने के उद्देश्य से पूरे विश्व में 22 अप्रैल को विश्व पृथ्वी दिवस के रुप में पर्यावरणविदों, पर्यावरण प्रेमियों के साथ साथ शिक्षक, विद्यार्थी तथा तथा आम जन भी मनाते हैं। इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य शुद्ध पानी, शुद्ध हवा तथा पर्यावरण को स्वच्छ बनाए रखने के लिए लोगों को जागरूक करना है। सरकारें भी अपने स्तर पर विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम आयोजित करती है। पिछले कई दशकों से जिस प्रकार मानव ने अपनी आवश्यकताओं को बढ़ाते हुए पृथ्वी प्रदत्त चीजों का अत्याधिक दोहन किया है उसका परिणाम यह हुआ कि प्राकृतिक संसाधन धीरे धीरे सिमटने लगे। ब्रह्मांड का सबसे सर्वश्रेष्ठ प्राणी अपने क्रियाकलापों से पर्यावरण को क्षति पहुंचा रहा है। विविध प्रकार का प्रदुषण फैला रहा है। अधिकाधिक कूड़े कचरे का उत्पादन कर गंदगी के पहाड़ निर्मित कर रहा है। कचरा उत्सर्जन में योगदान स्वयं का है और प्रबंधन का दोष दूसरों के सिर मढ़ता है।
हमारे लिए पृथ्वी बहुत अमूल्य चीज है क्योंकि सारे जगत का भार इसने उठा रखा है। जितनी भी चीजें पृथ्वी पर स्थित है वे सब हमारे लिए अमूल्य है जिसका मनुष्य तेजी से उपयोग कर रहा है। दिन प्रतिदिन पृथ्वी की संपदा खत्म होती जा रही है जिसके कारण धरती विनाश की ओर बढ़ रही है। मानवीय स्वार्थों ने पृथ्वी, प्रकृति और पर्यावरण पर जो दुष्प्रभाव डाला है उससे पृथ्वी बची रह जायेगी यह चिन्ता का विषय है। शोध और अध्ययन सबूत है कि अभी तक छः बार धरती का विनाश हो चुका है और अब धरती एक बार फिर सामूहिक विनाश की ओर अग्रसर है। बीते कुछ सदियों में 13 प्रतिशत से अधिक प्रजातियां विलुप्त हो चुकी है और सैकड़ों प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर हैं। यह जैव विविधता के गिरावट भयावह संकट का संकेत है। जलवायु परिर्वतन पूरे विश्व में दिख रहा है। पृथ्वी में हर दिन प्रदूषण की मात्रा में वृद्धि होती जा रही है जिसके कारण हर दिन ग्लोबल वार्मिंग तेजी से बढ़ती जा रही है। बड़े-बड़े ग्लेशियर पिघल रहे हैं जिसके कारण बाढ़ आने का खतरा बढ़ता जा रहा है। ग्लेशियर निरंतर पिघल रहे हैं जिसकी चिंता किसी को नही है। आने वाले समय में इसके कारण पानी गायब हो सकता है। प्राकृतिक स्रोत और वनस्पतियों की तेजी से हो रही विलुप्ति के चलते पृथ्वी निरंतर असंतुलित हो रही है। इसमें जनसंख्या वृद्धि के योगदान को नकारा नहीं जा सकता। बढ़ता तापमान, प्रदूषण में वृद्धि, पर्यावरण और ओजोन परत का ह्रास, प्राकृतिक संसाधनों का दोहन, ग्रीन हाउस गैसों का दुष्प्रभाव, तेजी से जहरीली और बंजर हो रही जमीन आदि हमारी जीवन शैली में हो रहे बदलाव का दुष्परिणाम है।
हमें समझने की जरूरत है कि धरती को हमारी नहीं, हमें धरती की जरूरत है और धरती को खतरा नहीं है बल्कि खतरा इंसानों को है। इसलिए हमें चेत जाना चाहिए। हम सभी धरती को मां तो कहते हैं लेकिन उसे हमने कृत्यों से बीमार कर दिया है। अब हम सभी का नैतिक कर्तव्य बनता है कि हम अपनी आदतों में सुधार कर उसकी बीमारी को ठीक करें।
पृथ्वी दिवस महज औपचारिकता न बने अपितु कुछ ठोस संकल्पों के साथ हम पृथ्वी दिवस मनाएं। जल संरक्षण करें। वृक्षारोपण करें तथा उसकी देखभाल का भी संकल्प लें। जीरो वेस्ट तकनीक की ओर बढ़ें। आने वाली पीढ़ी के लिए कुछ तो ऑक्सीजन, जल, वायु, प्राकृतिक संसाधन छोड़ कर जाएं। धरा को जीवन दें। यह पृथ्वी हम सभी की मां है। इसे सजाने संवारने का कार्य प्रकृति व पर्यावरण के घटक नदियां, पहाड़, वर्षा, वसंत ऋतु बदलते मौसम तो करते ही हैं। इस पृथ्वी को प्राकृतिक स्वर्ग बनाने में हम भी अपना योगदान दें।