जब कभी उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ ज़िले की बात आएगी तो वहां के आंवला (औरा) का ज़रूर ही ज़िक्र होगा। वहां आपको काफी सारे आंवला के बड़े बाग आपको देखने को मिलेंगे। आंवला पेड़ पर अंगूर जैसे लगता है, पत्तियां झड़ जाती हैं तो उस पर आंवला लगता है। पूरे पेड़ में सिर्फ़ और सिर्फ़ आंवला दिखता है।
आंवला का पेड़ २० से ३० फूट तक होता है। आंवले को बीज के उगाने की अपेक्षा कलम लगाना ज्यादा अच्छा माना जाता है। कलम पौधा जल्द ही मिट्टी में जड़ जमा लेता है और इसमें शीघ्र फल लग जाते हैं। आंवला के पौधे और फल कोमल प्रकृति के होते हैं, इसलिए इसमें कीड़े जल्दी लग जाते हैं। आंवले की व्यवसायिक खेती के दौरान यह ध्यान रखना होता है कि पौधे और फल को संक्रमण से रोका जाए। पोटाशियम सल्फाइड कीटाणुओं और फफुंदियों की रोकथाम के लिए उपयोगी माना जाता है।
कई बार आंवला में फल नहीं लगने जैसी समस्या आती है मगर आवश्यक यह है कि जहाँ आंवला का पेड़ हो उसके आसपास दूसरे आंवले का पेड़ होना भी आवश्यक है तभी उसमें फल लगते हैं| इसलिए हमारे यहाँ बाग के रूप में लगाया जाता है । उसके साथ साथ उसके नीचे गेहूं ,धान, और सभी प्रकार की खेती भी की जाती है।
प्रतापगढ़ का आंवला प्रसिद्ध है परन्तु किसानों को उनका सही मुआवज़ा नहीं मिल पता है । यहाँ के कच्चे आंवले को किसानों से सस्ते दाम में ले कर व्यापारी बड़ी बड़ी कंपनी को अच्छे दाम पर बेचते हैं जिससे किसान को सही दाम नहीं मिलता। अभी स्थिति यह हो गयी हैं कि लाभ ना मिलने से किसान अपना बाग काट रहे हैं क्योंकि उनका नुक़सान अधिक हो रहा है। इससे पर्यावरण को भी नुक़सान हो रहा है।
जिम्मेदारी किसकी है? सरकार ने वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट (ओडोप) शुरू तो किया है लेकिन प्रतापगढ़ में आंवले से बनने वाले तमाम चीज़ों जैसे कि मुरब्बा, जूस, कैंडी, बर्फ़ी, च्यवनप्राश, आंवले का पाउडर, आंवला से बने कॉस्मेटिक एवं बालों के लिए हेल्थ टॉनिक इत्यादि की आज तक कोई बड़ी मैन्यूफ़ैक्चरिंग कंपनी नहीं लगा पायी है। अगर कंपनी लगती तो जो युवा पलायन कर रहे हैं उन्हें रोज़गार और किसानों को उनका उचित दाम मिल जाता । जब प्रतापगढ़ के आंवले का देश दुनिया में पहचान होगा तो बिक्री बढ़ेगी और किसान और भी ज्यादा पेड़ लगाएंगे जिससे पर्यावरण का भी संरक्षण होगा।
अवधि में आंवला को औरा और संस्कृत में अमृतफल बोला जाता है। आयुर्वेद के अनुसार हड़ और आंवला को सर्वोत्तम औषधी माना गया है। आंवला दाह, खाँसी, श्वास रोग, कब्ज, पाण्डु, रक्तपित्त, अरुचि, त्रिदोष, दमा, क्षय, छाती के रोग, हृदय रोग, मूत्र विकार आदि अनेक रोगों को नष्ट करने की शक्ति रखता है। वीर्य को पुष्ट करके पौरुष बढ़ाता है, चर्बी घटाकर मोटापा दूर करता है। सिर के केशों को काले, लम्बे व घने रखता है। दाँत-मसूड़ों की खराबी दूर होना, कब्ज, रक्त विकार, चर्म रोग, पाचन शक्ति में खराबी, नेत्र ज्योति उपयोगी है।इसलिए इसको अमृतफल भी बोला जाता है।
साइकिल पर अपने भारत पर्यावरण यात्रा के दौरान लोगों को जब मैं बताता की मैं प्रतापगढ़ से हूँ तो जो जानकार थे वे मुझसे ज़रूर कहते वहाँ तो आंवला बहुत होता है। तो मुझे बहुत अच्छा लगता था।
एग्रीकल्चरल एंड प्रोसेस्ड फ़ूड प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी (एपीडा) के अनुसार, देश में सबसे अधिक आंवले का उत्पादन उत्तर प्रदेश में होता है, उसके बाद मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और झारखंड जैसे राज्य आते हैं। उत्तर प्रदेश में 384.32 हजार टन आंवले का उत्पादन होता है, जो देश के कुल उत्पादन का 35.79 प्रतिशत है।
मूल रूप से अगर ग्रामीण परिवेश में आंवला का उपयोग जब कोई रिश्तेदार या बाहर से आता है तो मिठाई के स्थान पर किया जाता है जिसे मुरब्बा बोला जाता है । इसका उपयोग लगभग हर घर में आपको देखने को मिलेगा। खट्टा मीठा ऐसा स्वाद की मुँह में पानी आ जाये। इसका उपयोग सीजन के समय में अचार बनाए जाने में भी किया जाता है । जिसमें दो प्रकार के अचार उबालकर मिर्च और नमक हल्दी डाल कर दूसरा लंबा समय के उपयोग के लिए हल्का काला जैसा होता है। सूखा आंवला रात भर पानी में भिगोकर बाल धोने में ४ सूखे का पाउडर बना कर खाने और बाल में लगाने में किया जाता रहा है।
काश सरकार और प्रतापगढ़ जनपद के नेता इस अमृतफल का किसानों के लिए महत्व को समझेंगे।
*पर्यावरण यात्री जो पर्यावरण के प्रति चेतना जगाने के लिए 2021 से देश भर में साइकिल से यात्रा कर रहे हैं।
How to get the प्रतापगढ़ अमला sapling in Samastipur district of Bihar