भारत, एक अद्वितीय देश जो संस्कृति और प्रकृति का अद्वितीय संगम है, अपनी बेहद धार्मिकता और विविधता के लिए विख्यात है। यहां “संस्कृति ” और “प्रकृति ” का यह साथ हमें एक अद्वितीय दृष्टिकोण प्रदान करता है जो हमें इस देश के समृद्ध विरासत की अविस्मरणीय गहराइयों में ले जाता है।
भौतिक और आध्यात्मिक प्रगति की ओर अग्रसर होना ही भारतीय संस्कृति का मूल है। इसी आधार पर हमारे त्योहार निर्धारित हुए हैं। हमारे दिनोंदिन की गतिविधियां भी तो प्रकृति की अराधना के इर्द गिर्द ही बनी रहती है। सुबह धरती का वंदन, सूर्य का धन्यवाद एवं वंदन, तुलसी पीपल की पूजा आदि प्रकृति के साथ घनिष्ठता स्थापित करने और प्रकृति की रक्षा के प्रति सजग रहने का संस्कार देने का काम करते हैं।
भौतिक जरूरतों से लेकर सामाजिक, आर्थिक, कलात्मक, सुरक्षात्मक, शासनात्मक जरूरतों के मेल से एक संस्कृति का निर्माण होता है।संस्कृति के बिना मनुष्य ही नहीं रहेंगे। संस्कृति परम्पराओं से, विश्वासों से, जीवन की शैली से, आध्यात्मिक पक्ष से, भौतिक पक्ष से निरन्तर जुड़ी है। यह हमें जीवन का अर्थ, जीवन जीने का तरीका सिखाती है। मानव शरीर का निर्माण हवा, अग्नि, जल, आकाश और मिट्टी से हुआ है। यदि हम उन्हें उन मूल भाव में स्थापित नही करेंगें तो समस्याएं आएंगी। मनुष्य अपने मूल भाव यानि प्रकृति से दूर चला गया है।
भारतीय संस्कृति की खोज में, हम प्राचीन वेदों, उपनिषदों, और पुराणों के गहरे तत्वों को खोजते हैं, जो हमें न केवल आत्मज्ञान और आध्यात्मिकता की ओर ले जाते हैं, बल्कि प्राकृतिक संबंधों के महत्व को भी समझाते हैं। यही कारण है कि हमारे पितृदेवों ने धरती को माँ माना है और हमें धरती माता की सेवा का संकल्प लेने के लिए प्रेरित किया है।
आज पर्यावरण और समाज जितना दूषित होता जा रहा है उसका मुख्य कारण प्रकृति और संस्कृति से दूर जाना है। जल, जंगल, ज़मीन जानवर व मानव का सौहाद्रपूर्ण सह अस्तित्व हो, विकास का वही मॉडल पूरी दुनिया में सही मार्ग प्रशस्त कर सकता है। देश में जो भी विकास हो रहा है उसे प्रकृति केंद्रित होना चाहिए। प्रकृति केन्द्रित सनातन हमारे संस्कृति की पहचान है।
सामाजिक व पारिवारिक माहौल में संवाद व प्रकृति के सान्निध्य में रहकर ही शांति व समृद्धि मिल सकती है। यह संस्कृतिक विरासत हमें एक स्वच्छ, हरित और संतुलित पर्यावरण की ओर ले जाता है।
भारतीय संस्कृति के अग्रदूतों ने हमें प्रकृति के संरक्षण के महत्व को समझाया है, और आज भी हमें उनके उदाहरणों पर चलना चाहिए। हमें ध्यान में रखना चाहिए कि प्रकृति हमारे अस्तित्व का मूल है और हमें इसकी रक्षा करनी चाहिए, ताकि हमारे आने वाले पीढ़ियों को भी साफ और हरित पर्यावरण का लाभ मिल सके।
आधुनिक युग में, हमें प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करते हुए भी ध्यान रखना चाहिए कि हम इसे नष्ट न करें। पानी की शुद्धता बनाए रखने के लिए पानी और नदियों पर देवत्व आरोपित करने में यही समझ काम करती है। तकनीकी प्रगति के साथ, हमें सुनिश्चित करना चाहिए कि हम अपने प्राकृतिक संसाधनों का सही उपयोग करते हैं और उनकी संरक्षण के लिए सक्रिय रूप से योजना बनाते हैं।
इसलिए, हमें संस्कृति और प्रकृति के बीच के गहरे संबंध को समझने और स्वीकार करने की आवश्यकता है। हमें अपने धार्मिक और सांस्कृतिक अद्यात्म को साकार करते हुए, प्रकृति की समीपता में रहकर उसकी सुरक्षा करनी चाहिए। यह हमारे उत्थान और परिश्रम के माध्यम से होगा, और एक सशक्त, संतुलित और समृद्ध भविष्य की ओर हमें ले जाएगा।
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