उदयपुर: पर्यावरणीय संतुलन के लिए सनातनी परंपराओं की ओर लौटना ही होगा। नदियां, तालाब समाज और सृष्टि के साझा हैं। इन्हें साझे हित में उपयोगी बनाकर इनकी सुरक्षा, संरक्षा और संवर्धन को सुनिश्चित किया जा सकता है। समाज और समुदायों को इनसे जुड़ी नीतियों का साझेदार बनाकर इनके प्रति चेतना का वातावरण बनाने की दिशा के कार्यों को नई गति दी जानी चाहिए जिससे न केवल प्राकृतिक तत्वों के संरक्षण के नए रास्ते खुलेंगे बल्कि भारतीय मूल्य आधारित दर्शन को आधुनिकीकरण के दौड़ में उलझी युवा पीढ़ी से रूबरू भी करवाया जा सकेगा। प्रकृति की दृष्टि और दर्शन आधारित सोच से ही जल तथा पर्यावरण संरक्षण का मार्ग प्रशस्त हो सकता है।
दिनांक 23 नवंबर 2023 को तरुण भारत संघ, जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ, एवं सुखाड़-बाढ़ विश्व जन आयोग, स्वीडन के संयुक्त तत्वावधान में हुए तीन दिवसीय विश्व जल सम्मेलन का बुधवार को विद्यापीठ के एग्रीकल्चर महाविद्यालय के सभागार में समापन हुआ और इस विश्व जल सम्मेलन ने हमें यह दिशा प्रदान की – भारतीय ज्ञान व्यवस्था को आधार बनाकर विश्वभर में धरती को पानीदार बनाने की कोशिशें हमें धरती मां के प्रति अपने कर्तव्यों के प्रति न केवल सचेत करती है, वरन दायित्वों को पूर्ण करने की दृष्टि भी प्रदान करती है।
सम्मेलन के दूसरे दिन भारत सरकार के नमामि गंगे मिशन के डायरेक्टर-जनरल जी अशोक कुमार ने कहा कि आधुनिक प्रणाली लोगों के जीवन को प्रभावित करती हैं और एक संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता है। उन्होंने बताया कि हाल के अध्ययन ने गंगा की अद्भुत एंटीसेप्टिक गुणों को सत्यापित किया है।उनके अनुसार जहाँ अमेरिका में किसान जिस फसल की खेती के लिए महज 700 लीटर पानी का इस्तेमाल करते हैं वहां भारत के किसान उसी फसल के लिए 3000 लीटर पानी का इस्तेमाल करते हैं। एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि सरकार गंगा के अपर बेसिन में अब कोई बाँध नहीं बनाएगी और अभी बने हुए बांधों के बारे में भी विचार कर रही है। उन्होंने कहा कि सम्मेलन में उपस्थित विशेषज्ञों के साथ मिलकर उनके सुझावों पर कार्य किये जा सकते हैं।
गांधीवादी रमेश शर्मा ने कहा कि गंगा किनारे के कब्जों को हटाया जाये और गंगा में डालने वाली गन्दगी पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगाया जाए तथा गंगा की सहायक नदियों को भी साफ़ सुथरा शुद्ध रखा जाये।उन्होंने गंगा में खनन माफिया पर रोक लगाने पर भी बल दिया।भागीरथी की तरह ही सरकार द्वारा अलकनंदा और मन्दाकिनी नदियों को भी इको-सेंसिटिव जोन घोषित करने की ज़रुरत पर भी चर्चा हुई।
इस सम्मलेन में विश्व भर से आए जलयोद्वाओं के अनुभवों ने एक बार पुनः भारतीय बौद्धिक क्षमताओं और सनातन परंपराओं की प्रांसगिकता सिद्ध की। भविष्य में पृथ्वी में पर्यावरणीय संतुलन के लिए युवाओं को अपनी सनातनी परंपराओं की जड़ों की ओर लौटना होगा। अमेरिका से आयीं टीना पुग्लिसे ने भारतीय ज्ञान को पर्यावरणीय चेतना के रूप में आत्मासात करने के साथ विश्वभर में इसके प्रसार पर जोर दिया।
केमरून के जोशुआ कॉनकानको ने प्रकृति, आध्यात्म और विश्वबंधुत्व के आपसी संबंधों को बताया। वैचारिक पवित्रता के साथ पर्यावरणीय पवित्रता के रूहानी रिश्ते की पाकीजगी को साझा किया।
विद्यापीठ के कुलप्रमुख भंवरलाल गुर्जर ने पर्यावरणीय मुद्दों तथा जागरूकता में निहित धार्मिक विचारधाराओं की गहरी सोच और प्रासंगिकता को रेखांकित किया। मेवाड़ में भूगर्भीय जल की स्थिति और उसके संभावित समाधानों पर विचार साझा किया और कहा ग्रंथों में पेड़ों को हमारी धार्मिक भावनाओं के साथ जोड़ा गया है, जिसे युवाओं में जागृत करने की जरूरत है।
अतिथियों का स्वागत करते हुए कुलपति प्रोफेसर एस एस सारंगदेवोत ने कहा शिक्षा और विद्या के आपसी जुड़ाव होने की स्थिति में ही विज्ञान आध्यात्म के साथ जुड़कर सनातन व सतत विकास के रास्ते पर आगे बढ़ता है। पद्मश्री उमाशंकर पांडेय ने जल स्त्रोतों के भारतीय ज्ञान नदीसूत्रम और मेघमाला से ज्ञान प्राप्ति की बात कही।
विश्व जल सम्मेलन के सत्र को सम्बोधित करते ग्लोबल बिहारी के प्रधान संपादक दीपक पर्वतियार ने विश्व समुदाय को दुनिया भर में नीति निर्माताओं और मीडिया को प्रभावित करने के लिए अपने अनुभव के आधार पर पर्यावरण के लिए एक सशक्त नैरेटिव की आवश्यकता पर बल देने का सुझाव दिया जिसे दुनिया भर से आये विशेषज्ञों ने सराहा।
सम्मेलन में मंथन के बाद सामने आए मूल विचारों को उदयपुर घोषणा पत्र-2 के रूप में पेश किया गया। घोषणा पत्र में संयुक्त राष्ट्र की उस घोषणा का स्वागत किया जो वर्ष 2024 को पानी और शांति के लिए समर्पित करता है।घोषणापत्र में प्रकृति के प्रवाह के साथ मानव व्यवहार को संरेखित करने के लिए सभी प्रजातियों और प्राकृतिक चक्रों को प्राथमिक संदर्भ के रूप में शामिल करने की, और साथ ही सभी प्राणियों के लिए पानी, भोजन और जलवायु सुरक्षा के लिए एक स्वस्थ जल चक्र सुनिश्चित करने की प्रतिज्ञा ली गयी। साथ ही यह भी कि हम स्वदेशी ज्ञान प्रणालियों में निहित हैं जो हमें प्रकृति के साथ सहज और गतिशील एकता के माध्यम से प्यार, सम्मान और प्रकृति की देखभाल करना सिखाती है।
कार्यक्रम संयोजक डॉ युवराजसिंह ने बताया तकनीकी सत्रों में देश-विदेश से आए 100 से अधिक विषय विशेषज्ञों ने जल प्रबंधन, संरक्षण और पुनरोद्धार से जुड़े तथ्यों, स्थितियों और समस्या समाधान और आगामी कार्ययोजनाओं पर मंथन किया। इस अवसर पर पद्मश्री लक्ष्मणसिंह, पद्मश्री उमाशंकर पाण्डेय, यूनाइटेड नेशंस फ़ूड एंड एग्रीकल्चर आर्गेनाईजेशन के डॉ प्रेम निवास पांडेय, यूनेस्को के राम बूझ, वाटर एंड लैंड मैनेजमेंट इंस्टिट्यूट धारवाड़ के पूर्व डायरेक्टर डॉ राजेंद्र पोद्दार, ग्लोबल बिहारी के प्रधान संपादक एवं वरिष्ठ पत्रकार दीपक पर्वतियार, तरुण भारत संघ की वाईस चेयरपर्सन डॉ इंदिरा खुराना, जल बिरादरी महाराष्ट्र के नरेंद्र चुग, विनोद बोधनकर, परमार्थ स्वयंसेवी संसथान के सिद्धगोपाल सिंह, विद्यापीठ के रजिस्ट्रार डॉ तरूण श्रीमाली, परीक्षा नियंत्रक डॉ पारस जैन, डीन प्रो गजेन्द्र माथुर, प्रो सरोज गर्ग, डॉ युवराजसिंह राठौड़, डॉ शैलेन्द्र मेहता, डॉ अमिया गोस्वामी, डॉ अपर्णा श्रीवास्तव, डॉ रचना राठौड़, डॉ अमी राठौड़, डॉ बलिदान जैन, डॉ चन्द्रेश छतलानी, डॉ हेमंत साहू, डॉ संजय चौधरी, डॉ रोहित कुमावत, डॉ हिम्मतसिंह चुण्डावत, डॉ जय जोधा आदि उपस्थित थे। संचालन डॉ बबीता रशीद ने किया।
*लेखक जलपुरुष के नाम से विश्व विख्यात जल संरक्षक और सुखाड़-बाढ़ विश्व जन आयोग, स्वीडन के चेयरमैन हैं।तीन दिवसीय विश्व जल सम्मेलन की अध्यक्षता भी उन्होंने ही की जिसमें पांच महाद्वीप से जल विशेषज्ञ सम्मिलित हुए।