पानी के व्यापारीकरण से बचें, करें सामुदायक जल संरक्षण।
मैंने अपने मूल गांव डौला (उत्तर प्रदेश) के गुसाई वाला तालाब, बोरोदा, रामपुरा बंजारों की ढ़ाणी वाला तालाब से लेकर, राजस्थान के गोपालपुरा गांव से जल जीवन शुरू किया। इस पूरे जीवन में पहले लोगों से ही जल के काम की समझ पैदा की और सहेजना शुरू किया।
जब यह क्षेत्र पानीदार बन गया तो दिल्ली की औद्योगिक इकाइयां इस क्षेत्र में प्रवेश करना चाहती थी क्योंकि यह क्षेत्र पानीदार बन गया था। तभी हमने कहा कि यह जल उन किसानों का है, जिन्होंने अपनी जमीन पर इस पानी को सहेज कर पानीदार बनाया है। कंपनियों के विरूद्ध जन आंदोलन किया, उनके विरूद्ध जन-चेतना जगाई। लोगों को संगठित करके, सरपंचो को अपनी पंचायत में जल की लूटेरी कंपनीयों को रोकने का काम किया। पंचायतों ने भी इस कार्य को करने में हमारी स्वयंसेवी संस्था तरुण भारत संघ का पूरा सहयोग दिया। गांव-गांव और शहर-शहर पानी प्रदूषण, शोषण, अतिक्रमण रोकने हेतु सदैव पानी पंचायतें आयोजित की।
गांव-गांव में देव उठनी ग्यारस से जोहड़ बनाओ-जल बचाओ पदयात्रायें आयोजित करके, सामुदायक जल संरक्षण, प्रबंधन कार्य किया था। साथ ही साथ जल उपयोग दक्षता बढ़ाने का प्रशिक्षण हेतु तरुण जल विद्यापीठ, भीकमपुरा व औद्योगिक क्षैत्र तिजारा के जाटमालेसर में प्रत्यक्ष जमीनी जल शोषण, प्रदूषण, अतिक्रमण करने वाली कंपनियों के विरूद्ध जल प्रार्थनायें, पदयात्रा, सत्याग्रह, शिविर आदि एक बड़ा जन आंदोलन आरंभ किया था। परिणाम स्वरूप 43 कंपनियों में से 39 कंपनियों को रद्द करवा दिया था। इस हेतु उच्च न्यायालय जाकर भी लड़ाई लड़नी पड़ी थी। हम जीते और डिस्टलरी, और शराब के कारखाने बंद हुए।
तब राज्य की मुख्यमंत्री ने बौखलाकर हमारी जाटमालेसर की तरुण जल विद्यापीठ को तुड़वा दिया था। फिर भी हमारा जल शिक्षण कार्य जारी रहा। आज भी दोनों केन्द्र सक्रिय होकर प्रशिक्षण कार्य में जुटे हैं। जल के निजीकरण के विरूद्ध हो रहे कार्यों को हम सदैव रुकवाते रहे हैं। सामुदायिकरण के लिए प्रत्यक्ष जमीनी काम भी उतनी ही सक्रियता से करते रहे हैं। यह कार्य राजस्थान तक ही सीमित नहीं रहा है, अब पूरी दुनिया में विस्तार पा रहा है।
जल को जीवन समझने और ‘जल ही जलवायु हैं, जलवायु ही जल है’, इस सिद्धांत को स्वीकार करने के बाद जीवन को कैसे खरीदा और बेचा जा सकता है? पर जल बाजार पानी खरीदने और बेचने के लिए बना है। विश्व जल मंच दुनिया की प्रकृति और जल की बिक्री करता है। सरकार से सस्ता खरीद कर, महँगा बिक्री करता है। मानव प्रकृति को खरीद नहीं सकता पर विश्व जल मंच तो खरीदने और बेचने के लिए ही बना है। जल-जीवन की बिक्री और खरीद जघन्य अपराध है।
मैं तो पानी को पहले से ही प्राण मानता हूँ। निजीकरण के विरुद्ध हमने पांच दशकों में सैंकड़ों पानी पंचायत आयोजित की है। जल की बिक्री या खरीद दोनों ही अपराध मानकर जल का निजीकरण रोकने व सामुदायीकरण हेतु मैंने अपने जीवन के पूरे 50 वर्ष केवल जल के काम में ही लगाये।
पांच दशक पूर्व उत्तर प्रदेश से शुरू होकर राजस्थान में केवल जल के निजीकरण का विरोध और सामुदायिक जल संरक्षण का प्रत्यक्ष जमीनी काम करके, जल उपयोग दक्षता बढ़ाकर, कम जल खपत में अधिक उत्पादन के प्रशिक्षण भी साथ ही साथ चलाकर, खेत का पानी खेत में-गांव का पानी गांव में उपयोग करने की चेतना बढ़ायी है। प्राकृतिक व्यवहार बनाने हेतु मूल आदिवासियों, जनजातियों, किसानों के साथ ही उन्हीं के संरक्षणके ज्ञान से ही काम करने तथा अपना व्यवहार भी प्राकृतिक अनुकूल बनाये रखने का भी काम किया है। इसीलिए तरुण भारत संघ के कार्य क्षेत्र में प्राकृतिक अनुकूलता का व्यवहार आज भी बना हुआ है। यहां के किसान खनन के कारण बेपानी हुए थे। यहां आधुनिक विकास ने विनाश किया था। इसीलिए यहां की अतिगर्म और अतिठण्ड के कारण बादलों का ऊपर उड़ना शुरू हो गया था। बिना बरसे ही ये आगे निकल जाते थे। यह पूरा क्षेत्र बिन वर्षा-बिन पानी बना था। कुएं सूख गये थे, फसलें खराब हो जाती थीं। पशुओं को चारे और जल का संकट बढ़ गया था। यहां के किसानों ने अपने पशुओं को छोड़ दिया था। बिन खेती, बिना पशुपालन क्या करें ? गांव खाली हो गए, केवल बूढ़े लोग ही रतोंधी ग्रस्त होकर इस क्षेत्र में बचे थे। मैं आयुर्वेद के वैद्य था और इन लोगों का उपचार किया और ठीक होने इन्होने ही मुझे जल संरक्षण कार्य करने को कहा था।
नाथी बलाई, मांगू मीणा के साथ काम शुरू किया और धीरे-धीरे लोग वापस अपने गांव आकर खेती करने लगे। कुओं में पानी आ गया; खेती-पशुपालन से सारे गांवों का पुनर्वास आरम्भ हुआ। धीरे-धीरे इस क्षेत्र में हरियाली बढ़ने लगी। हरियाली में प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया से जल पत्तियों से उत्सर्जन तथा तालाबों के वाष्पीकरण से वातावरण में भी वाष्पीकरण से छोटे-छोटे बादल बनकर, सागर व बंगाल की खाड़ी के बादल इस क्षेत्र के बादलों से मिलकर बरसने शुरू हो गये।
वर्षा जल का संरक्षण व अनुशासित जल उपयोग के व्यवहार ने इस क्षेत्र में जल क्रांति लायी है। अब जीवन की सारी जरूरत पूरी करने वाला यह क्षेत्र बन गया है। लोगों की चेतना अब यहां के जल का व्यापारी करण व निजीकरण नहीं होने देती है। निजीकरण से व्यापारीकरण होता है, जिसके कारण जल का शोषण, प्रदूषण, अतिक्रमण बढ़ाता है। दुनिया में जहां जहां जल का निजीकरण से व्यापारीकरण हुआ है, वहां की नदियां प्रदूषित होती है। नदियों के साथ ही लोगों का स्वास्थ्य जुड़ा हुआ है। बीमारी बढ़ती है तो दवाईयों की बिक्री भी बढ़ती है। लोग त्रस्त होकर लाचार, बेकार, बीमार बनते हैं।
दूसरी तरफ सरकारी जीडीपी दवाइयों की बिक्री से ही बढ़ती है। सरकारें भी चाहती है कि लोग ज्यादा बीमार हों; इसलिए अब चिकित्सा का भी निजीकरण हो गया है। चिकित्सा करने वाली बहुत सी नई-नई कंपनियां अब हमारे देश व दुनिया में देख सकते हैं। यह चिकित्सा का बढ़ता धन्धा भी जल के नीजिकरण व व्यापारिकरण की ही देन है। जल का व्यापार करने वाले अपना जल तभी बिक्री करेंगे, जब वे देश की सरकारी जलापूर्ति को प्रदूषित कर देंगे। यही व्यापारिक लाभ कमाने वाली लालसा अब पूरी दुनिया को बीमार बना रही है। इस बीमारी से बचना है तो जल का पहले की तरह ही जल संरक्षण के काम का सामुदायीकरण करना ही होगा। यह कार्य सरकारों की पहल से ही संभव होगा। हमारे इस सफल जल संरक्षण के काम के प्रयोग को सरकारें शुरू करें।
*जलपुरुष के नाम से विख्यात जल संरक्षक