ओणम
– रमेश चंद शर्मा
केरल में ओणम एक विशेष त्यौहार है, जिसे सभी केरलवासी उत्साह, ऊर्जा, श्रृद्धा भाव से मनाते हैं। इस समय केरल का नजारा देखने, समझने, जानने लायक होता है भव्य एवं दिव्य।
ओणम खेती किसानी से भी जुड़ा त्यौहार है। देश के अनेक त्यौहार खेती-किसानी, फसलों, पशुपालन से भी संबंध रखते हैं। केरल में ओणम बड़े पैमाने पर मनाया जाता है और केरल के सभी वर्गों की इसमें भागीदारी रहती है। 1981से ओनम को राजकीय स्तर पर भी त्यौहार की मान्यता दी गई है। इसके लिए चार दिन की छुट्टी का भी प्रावधान किया गया है।
केरल का अपना कलैंडर है। इसके अनुसार पहले माह को चिंगम नाम दिया गया है, जिसे सिम्हा भी कहा जाता है। ओणम अथं नक्षत्र से प्रारंभ होकर थ्रिरुवोनम नक्षत्र तक मनाया जाता है। यह मुख्य रूप से दस दिन तक चलता है, हर दिन का एक नाम है। पहला, अथं तैयारी का दिन, दूसरा दिन, चिथिरा फूलों का कालीन बनाया जाता है, जिसे पुक्क्लम नाम से जाना जाता है। तीसरा दिन, चोधी पुक्क्लम पर अगली लेयर और फूलों से जोड़ी जाती है। चौथा दिन, विशाकम इस दिन विभिन्न प्रतियोगिताएं प्रारंभ होती है। पांचवां दिन, अनिज्हम नाव की दौड़ जिसे वल्लाकनी, स्नेक (सांप) नाव दौड़ कहते हैं। छठा दिन, थिक्रेता से छुट्टियां प्रारंभ हो जाती हैं, चार दिन के लिए। सातवां दिन, मूलम मंदिरों में विशेष पूजा की जाती है। आठवां दिन, पूरादम इस दिन घरों में प्रतिमा (मूर्ति) स्थापना की जाती है, जिसमें राजा बलि एवं वामन की मूर्ति होती है। नवां दिन, उठ्रादीम केरल में राजा बलि का प्रवेश। दसवां दिन, थिरुवोनम मुख्य त्यौहार, उत्सव।
ओणम के समय कोच्ची के थ्रिक्क्कारा मंदिर में बड़ी धूमधाम, रौनक रहती है। ओणम के अवसर पर नये नये पकवान बनाए जाते हैं।इस मौके पर 26 पकवान बनाकर केले के पत्ते पर परोसे जाते हैं, जिसे ओणम सद्या कहा जाता है। इस अवसर पर दान पुण्य का बड़ा महत्व है। इस त्यौहार के पीछे दान, त्याग की बड़ी कहानी जुड़ी है।
ओणम के समय थिरुवातिराकली, कुम्भातिकाली, पुलिकाली, कत्थककली नृत्यों का आयोजन किया जाता है। इस के बाद भी कुछ कार्यक्रम होते हैं, जिसमें मूर्ति विसर्जन, पुक्क्लम को साफ करना शामिल है।
ओणम के पीछे बताया गया है कि राजा बलि की कथा है। राजा बली पराक्रमी, दयालु, जनता में बहुत लोकप्रिय रहे। असुर राजा हिरण्यकश्यप के वंश से संबंधित रहे। भक्त प्रहलाद के पोते राजा बलि साधना, तप करके और अधिक शक्ति प्राप्त करना चाहते थे। इससे देवताओं विशेषकर इन्द्र के मन में भय व्याप्त हो गया। वे डरकर विष्णु जी के पास पहुंचे और सहायता की मांग की। विष्णु जी वामन रूप धारण कर राजा बलि के यहां पहुंचे। राजा बलि ने कहा मांगो क्या चाहते हो? असुर गुरु ने राजा बलि को सावधान किया कि वे विष्णु की बात नहीं मानें, मगर राजा बलि परम दानी थे। उन्होंने वामन रूप विष्णु जी की मांगी तीन डग (कदम) भूमि देने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। प्रस्ताव स्वीकार होते ही विष्णु जी ने विशालकाय रूप धारण कर दो कदमों में धरती और आकाश को नाप लिया और तीसरा कदम रखने का स्थान मांगा। इस पर राजा बलि ने समर्पण किया और पाताल लोक में चले जाना स्वीकार कर, विष्णु जी से कहा कि मैं वर्ष में एक बार अपनी प्रजा से मिलने के लिए धरती पर आना चाहता हूं। प्रजा प्रेमी राजा बलि की मांग स्वीकार हुई। इस मांग के अनुसार ही ओणम के दिन राजा बलि अपनी प्रजा से मिलने धरती पर आते हैं।
इसलिए केरल में यह त्यौहार बड़े उत्साह, ऊर्जा, धूमधाम से मनाया जाता है। सभी मलयाली इसे मनाते हैं। दस दिन तक केरल में जोरदार धूमधाम, हलचल रहती है, जिस दिन राजा बलि आने की तैयारी प्रारंभ करते हैं। दसवें दिन मुख्य उत्सव होता है, उस दिन वे धरती पर आते है, ऐसी मान्यता है। दस दिन तक अलग-अलग कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। दस दिन बाद वामन और राजा बलि की मूर्ति विसर्जन की जाती है।