– डॉ राजेंद्र सिंह*
ग़ाज़ियाबाद के मोरटी गांव में दिनांक 24 जुलाई 2023 को हिंडन के बदले स्वरूप को देखने और समझने के बाद करहेड़ा स्थित राहत कैंप में जिला अधिकारी तथा पीड़ितों से मुलाकात कर बाढ़ के कारणों को समझा। यहां नदी के कारण बाढ़ के हालात पैदा नहीं हुए हैं बल्कि दशकों से चले आ रहे विकास के विनाशकारी मॉडल ने इन हालातों को पैदा किया है।
इस गांव में पानी का बढ़ना यह दर्शाता है कि, करहेड़ा पुल का डिजाइन गलत है। वर्ष 2013 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने उत्तर प्रदेश सरकार सिंचाई विभाग को डिजाइन में बदलाव करने के निर्देश दिए थे। इस तरह की बाढ़ भविष्य में आती रहेंगी, इसके लिए नदियों को ध्यान में रखकर विकास के नए मॉडल बनाने चाहिए।
यहां के लोगों ने बताया कि, 1978 के बाद पहली बार हिंडन में इतना पानी देखा है। अभी इसके आस पास भी उतनी बारिश नहीं हो रही और ना ही पहाड़ों में हो रही है, फिर यह पानी कहां से आ रहा है। कहीं, यह हिमाचल की तरफ से तो पानी नहीं आया, समझ नहीं पा रहे हैं । इस जल भराव के कारण दो लोगो की मृत्यु हो चुकी है। हमें सोचना होगा कि यदि भविष्य में ऐसा होता है तो फिर कौन रक्षा करेगा।
दिल्ली में यमुना में आयी बाढ़ के कारण, प्रभाव, बचाव, क्यों नहीं इससे बचाया गया और आगे की कार्य योजना पर गंभीर विचार विमर्श करनी होगी । विशेषज्ञों का मानना है कि यमुना की बाढ़, अपने आपको पुनर्जीवित करने की दिशा दिखा रखी है।
नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के न्यायमूर्ति ए के गोसाईं जी के अनुसार यदि ओखला बैराज खुल जाती तो पानी की मार इतनी अधिक नहीं होती । इस पानी की मार से बचा जा सकता था।
किसी नदी का आकार छोटा है तो किसी का बड़ा। बड़ी नदी रास्ता बनाती है, जिसे फ्लड प्लेन कहते हैं। बारिश होने पर कुछ पानी जमीन सोख लेती है, बाकी नदी में जाता है। और अगर एक साथ ज्यादा पानी इकट्ठा होता है, तो बाढ़ आनी तय है। यमुना की बाढ़ के संबंध में जो बात पूर्वी और पश्चिमी यमुना कैनाल खोलने की कही जा रही है, उसमें कैनाल का साइज कम है। फ्लड के ज्यादा पानी को यह संभाल नहीं पाती। दिल्ली को सीवर और बरसात के पानी का सिस्टम बनाना पड़ेगा।
एक ज़माना था, जब बाढ़ का स्वागत करते थे, बाढ़ बहुत कुछ देती थी। अब बाढ़ उजाड़ती है। इससे कष्ट होता है। जब तक नदियों के साथ आस्था से जुड़े थे, तब तक ठीक था। जब हमने शोषण ,अतिक्रमण, और प्रदूषण करना शुरू कर दिया सब गड़बड़़ हो गया। यदि सचमुच भारत की नदियों को जीवित रखना चाहते हैं, तो उन्हे प्यार देना होगा। यमुना की बाढ़ प्राकृतिक नहीं, मानव जनित है। व्यवस्था की लापरवाही ने इस संकट को खड़ा किया है। आज यमुना को जलस्वराज्य चाहिए। नदी को क्या चाहिए, इसे नदी खुद ही बताती है। नदी इंसान की तरह जीवित है। बस उसको समझने की जरुरत है।
यमुना में अभी भी बहुत कुछ बचा है, जिसे समझ कर अगर काम किया गया तो यमुना को अविरल और निर्मल किया जा सकता था। नदी की जमीन पर कब्जा हो गया है। इस नदी की जमीन की पहचान करना, उसका समीकरण करने वालों का सीमांकन करना और नदी के मूल स्वरूप को बनाए रखना, बचाए रखना यह बहुत जरूरी है। अगर यमुना को स्वस्थ और दिल्ली को बाढ़ से बचाना है कि ओ जोन को पूरी तरह से अतिक्रमण मुक्त करना होगा। फ्लड प्लेन में न्यूनतम अवरोध खड़ा किया जाए। तभी दिल्ली के लिए बाढ़ एक सुखद अनुभव होगा। हमें इसके लिए सबसे पहले यमुना का श्वेत प्रत्र तैयार करना होगा कि, यमुना में बाढ़ क्यों आई, और यमुना की बाढ़ से कैसे बच सकते थे। बाढ़ तो आ गई, लेकिन सरकारें इस बारे में न कुछ संसद में चर्चा हो रही, और न कुछ विधानसभा में चर्चा करने वाले है। यदि हमें यमुना को स्वराज देना है तो यमुना के स्वराज के लिए एक आंदोलन, सत्याग्रह आरंभ करना चाहिए।
*जलपुरुष के नाम से विख्यात जल संरक्षक