दिल्ली में यमुना मार दी गई है। जब से नदी खादर और बाढ़ क्षेत्र पर कब्जा बढ़ता गया, यमुना दिल्ली में मरने लगी।
यमुना के पूर्वी और पश्चिमी किनारे पर कब्जा हुए कुछ क्षेत्रों को देखते हैं जिन्होंने यमुना को मार दिया है – पूर्वी किनारे पर सोनिया विहार, खजूरी खास, सीआरपीएफ कैंप, दिल्ली जल बोर्ड वर्क्स, 220 केवी ईएसएस पावर वितरण स्टेशन, शास्त्री पार्क मेट्रो स्टेशन एवं मुख्यालय, आईटी पार्क, जेजे कॉलोनी (कुछ हटाई गई हैं), गीता कालोनी पुल, नया रेलवे पुल एवं हाईवे जो निर्माणाधीन है, यमुना मेट्रो स्टेशन, मेट्रो पुल एवं बांध, अक्षरधाम, कॉमनवेल्थ गेम्स कॉम्प्लेक्स, जेजे कॉलोनी कुछ हटाई गई है, मयूर प्लेस सीटी सेंटर तक डीएनडी का विस्तार, एमेटी विश्व विद्यालय,उत्तर प्रदेश।हाईवे
दिल्ली में यमुना के पश्चिमी किनारे पर जेजे कॉलोनी ( कुछ जेजे कॉलोनियां हटाई भी गई हैं), वाटर वर्क्स, मैटकाफ हाउस, मजनूं का टीला, सिग्नेचर पुल, विद्युत शवदाह गृह, अनेक समाधियां, विजय घाट से राजघाट के आसपास तक, गांधी दर्शन, राजघाट पावर हाउस, दिल्ली परिवहन निगम बस डिपो, आईपी पावर स्टेशन एवं हाउस, यमुना वेलोड्रम, आईजी इंडोर स्टेडियम, दिल्ली सरकार सचिवालय, पुलिस थाना, प्रगति पावर स्टेशन पेट्रोल पम्प, बस डिपो, हाईवे, जेजे कॉलोनियां, लैंडफिल पार्क, शांति स्तूप, बाटला हाउस एवं आसपास का विस्तार, डिफेन्स सर्विसेज सेलिंग क्लब, कालिंदी कुंज बाईपास रोड, अब्दुल फजल एन्क्लेव, इंडियन ऑयल बोटलींग प्लान्ट, मदनपुर खादर पुनर्वास कालोनियां आदि आदि।
इन सबके अलावा भी और भी हैं जो यमुना को सदानीरा बनने से रोकते है। दिल्ली के जल स्रोतों के लिए खतरा बने हैं। इन सभी ने दिल्ली में यमुना को मार दिया है। दिल्ली में यमुना के खादर का बड़ा विस्तृत क्षेत्र था, जिसे कब्जा लिया जा रहा है। इसका प्रयोग बदला जा रहा है।
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ध्यान देने की आवश्यकता है कि दिल्ली- राजस्थान- हरियाणा- हिमाचल- उत्तर प्रदेश सरकारों के मुख्यमंत्रियों ने 12 मई 1994 को यमुना में 10 क्यूसेक पानी छोड़ने का फैसला किया था। इससे आशा जगी थी कि यमुना में कुछ बहाव सतत रखा जाएगा। जो आज अभी तक लागू नहीं किया गया।
न्यायालय का फैसला, कितनी कमेटियां, अपर यमुना बोर्ड, अपर यमुना रिव्यू कमेटी, हाई पावर कमेटी बनाई गई, संसदीय स्टेंडिंग कमेटी ने भी सरकार एवं समुदाय के स्तर पर नदी को साफ-सुथरा रखने के सुझाव दिए। कुछ समितियां भी बनाई गई उनको विशेष अधिकार भी दिए गए। सभी का नतीजा क्या निकला? दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली जल बोर्ड के एक उच्च अधिकारी को सजा तथा अन्य विभागों के तीन अधिकारियों को बीस-बीस हजार रुपये की सजा सुनाई मगर फिर भी वही ढाक के तीन पात। यमुना का प्रदूषण जारी है। यमुना को हम मार रहे हैं।
करोड़ों रुपए खर्च नतीजा सामने है। खुली आंखों से भी देखा जा सकता है। और कभी-कभी तो बंद आंखों को भी महसूस हो जाता है। जब नदी के आसपास से निकले तो भयंकर बदबू आती है। यमुना एक्शन प्लान, राष्ट्रीय नदी संरक्षण निदेशालय, उच्च शक्ति प्राप्त समितियों का गठन, कई संस्थान, बोर्ड बनाए गए, घोषणा, वादे भी किए गए मगर दिल्ली में यमुना वैसी ही नहीं बल्कि उसकी दशा दिनों-दिन बिगड़ती ही जा रही है। कुछ प्रयासों पर खूब खर्च किया गया मगर परिणाम अनुकूल नहीं आए।
बायो-डायवेरसीटी पार्क, पक्षी विहार, विद्युत शवदाह गृह, एलपीजी गैस शवदाह गृह, जल संशोधन एवं संरक्षण की योजना, प्रदूषणमुक्त योजना, यमुना सौंदर्यीकरण आदि के बावजूद यमुना मरी हुई है। ज्यों ज्यों दवा की मर्ज बढ़ता ही गया।
बहुत कुछ लुटा कर भी होश नहीं आ रहा है। इस बार तो यमुना अपना दर्द कहने के लिए सर्वोच्च न्यायालय के पास तक पहुंच गई। फिर भी सुनवाई नहीं हुई।
एक ऐसा समय भी था जब वर्षा ऋतु में बाढ़ के समय जब जमुना (यमुना) किनारे छोड़कर दूर-दूर तक खेतों में फैलती थी तो किसानों के चेहरे खिल जाते थे। अच्छी फसल का आश्वासन, आशीर्वाद प्राप्त हो जाता था। खेतों में नई जान आ जाती थी। कुएं, बावड़ी, जोहड़, तालाब, झील, खादर, गड्ढे पानी से लबालब भर जाते थे। धरती का पेट भर जाता था। भूजल का स्रोत बढ़ जाता था। नाले यमुना में पानी के अधिक होने पर दूर-दूर तक पानी पहुंचाया करते, और जब गर्मी में यमुना में पानी कम हो जाता तो कुछ पानी वापस लाते। तब ये गंदे नाले, गंदगी वाले नाले नहीं कहलाते थे। नदियों के हिस्से, अंग थे ये सब। दूर-दूर तक खेतों में पानी जंगल में हरियाली के माध्यम थे ये नाले। नजफगढ़ नाला, साबी नदी इस कार्य को विशेषकर करते थे। नजफगढ़ नाला नजफगढ़ झील से जुड़ा हुआ था।
यमुना आखिर लक्काब तक हमारी मार झेलेगी? यमुना की पुकार, दर्द, कष्ट, पीड़ा को समझना, जानना जरूरी है। अन्यथा जब प्रकृति अपना रौद्र रूप दिखाएगी तो पश्चाताप भी करने का समय मिलेगा या नहीं। मन में संकल्प, दृढ़ निश्चय, मजबूत ईमानदार इरादा हो तो कोई काम असंभव नहीं है। मनसा, वाचा, कर्मणा से कदम बढ़ाने होंगे। यमुना बचेगी तो जीवन बचेगा। यमुना को बचाना है तो इसकी छोटी- बड़ी सहायक नदियों, स्रोतों को बचाना बहुत जरूरी है। वे बचेंगे तो यमुना, जमना मैया बचेगी।
*प्रख्यात गाँधी साधक। प्रस्तुत लेख लेखक के निजी विचार हैं।
जमुना और यमुना में अंतर है श्रीमान। जमुना ब्रह्मपुत्र की मुख्य शाखा है जो बांग्लादेश में बहती है और बाद में गंगा में मिलते हुए समुद्र में मिलती है, जबकि यमुना यमुनोत्री से निकल कर प्रयागराज में गंगा में मिलती है।
प्रिय भाई श्री धीरज कुमार जी,
आपने सही लिखा है। अपन को दोनों नदियों के दर्शन का लाभ प्राप्त हुआ है। जैसा मैंने लिखा है, यमुना को भी जमना, जमुना, जुमना नाम से बुलाते हैं। गंगा जमुनी संस्कृति, तहजीब का भरपूर इस्तेमाल होता है। यमुनोत्री को जमुनोत्री भी कहते है। विभिन्न हिस्सों में उच्चारण भिन्न भिन्न है। स को ख, स को ह, ड़ को र जैसे उदाहरण भी है।
शुभकामनाओं सहित सादर जय जगत। रमेश चंद शर्मा