दिल्ली में यमुना की दिशा और दशा देख कर आप की आंखें फटी की फटी नहीं रह जाएं, नम नहीं हो जाए, फूट-फूटकर रोने को मन नहीं करे, दिल में भयंकर हलचल नहीं मचे तो समझ जाना चाहिए कि आत्मा मर चुकी है। संवेदना, संवेदनशीलता समाप्त हो गई है। हम जागरूक नागरिक नहीं रहे। मानवीय सरोकारों और प्रकृति से संबंध टूट गया है। हम खतरनाक स्थिति में आ गए है। हम संस्कृति, संस्कार, मूल्यों से भिन्न राह पर चल पड़े है। हम नकारा होते जा रहे है।
यमुना के किनारे बसे शहरों में दिल्ली सबसे बड़ा नगर, महानगर है। यमुना यहां पल्ला गांव से (जो वजीराबाद से 15 कि.मी. पहले पड़ता है) प्रवेश करती है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में यमुना लगभग 48 कि.मी. की यात्रा करती है। दिल्ली की आबादी तेजी से बढ़ती जा है। इसकी आबादी एवं जीवन शैली के कारण महानगर को ज्यादा पानी, बिजली, संसाधनों की जरूरत है। संसाधनों में असमानता की खाई बहुत तेजी से बढ़ रही है।
दिल्ली भारत की राजधानी है। लंबे समय से यह राजनीतिक हलचल का स्थान, अड्डा, अखाड़ा रहा है। दिल्ली अनेक बार बसी और उजड़ी है। भग्नावशेषों पर फिर बनी, फिर उजड़ी, यह सिलसिला बार बार हुआ। दिल्ली का अपना एक इतिहास रहा है। दिल्ली ने अनेक राज्य वंशों, राजाओं, सत्ताधारियों को देखा, जाना, पाला, झेला है। दिल्ली- पुराना किला, सिरी, तुगलकाबाद, जहांपनाह, फिरोशाबाद, शाहजहांनाबाद, नई दिल्ली – सात दिल्ली नगरियां बसाई गई।
पहले दिल्ली का अपना जीवन, समाज, गांव, गली-मोहल्ले, कूंचे, खेती-बाड़ी, बाग-बगीचे, काम-धंधे, नागरिक, लोग रहे। आज इन सबमें जबरदस्त बदलाव आया है। बहुत कुछ समाप्त हो गया तथा बहुत कुछ नया उग आया है। दिल्ली का विस्तार जारी है। सीमेंट कंक्रीट का भयंकर स्वरुप उभरता जा रहा है। आबादी का दबाव बढ़ता जा रहा है। नेता, अधिकारी, प्रापर्टी डीलर और अपराधी गठजोड़ विकसित हो रहा है। निर्माण का धंधा जारी है।
दिल्ली के इतिहास में एक ओर गौरव गाथाएं जुड़ी हुई हैं, तो दूसरी ओर अनेक काले धब्बे भी दिल्ली के माथे पर लगे हैं। यमुना इन सबकी साक्षी रही है। नवें गुरु तेग बहादुर का शीश चांदनी चौक में बलिदान किया जाना, बहादुर शाह जफर के लड़कों को अंग्रेजों द्वारा मौत के घाट उतारा जाना, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को नाथूराम गोडसे द्वारा गोली मारा जाना जैसी दर्दनाक घटनाएं, अपराध, पाप दिल्ली तथा यमुना ने देखा है।
यमुना दिल्ली के किसी कोने में छुपा दी गई है, कैद कर ली गई है। वजीराबाद बैराज में उसे बंदी बना लिया गया है। दिल्ली में यमुना यहां के बाद मार दी गई है। वजीराबाद बैराज के बाद यमुना में वर्षा ऋतु को छोड़कर पानी के स्थान पर मल, कचरा, रसायन, गंदगी बहती है। इसमें 22 कि.मी. में 22 नाले डाले जाते है। जिनकी सूची पहले के लेख में दी जा चुकी है।
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इनके अलावा भी यमुना के सामने अनेक चुनौतियां खड़ी हुई है। पहले सुरक्षा के नाम पर पुश्तों के माध्यम से नदी को बांधा गया। नदी खादर, नदी क्षेत्र में निर्माण कार्य सरकारी, धार्मिक, प्राईवेट, विकास एवं जनहित के नाम पर जोरों से चला। दिल्ली के कुएं, बावड़ी, तालाब, झील बर्बाद कर दिए गए। पानी के बंटवारे में भयंकर असमानता है। पानी की लूट-खसोट, चोरी, स्वार्थसिद्धि, शोषण बढ़ता जा रहा है। पानी की बर्बादी को नहीं रोक पाना बड़ी समस्या है। तरणताल, पांच सितारा, लुटियन की दिल्ली में पानी का खुला दुरुपयोग।
यमुना के किनारे अखाड़े, तैराक संघ, खेती, बाग-बगीचे, बगीची, बागवानी, फुलवाड़ी, प्लेज आदि होते थे। यमुना के किनारे लगने वाले मेले, प्रदर्शनी, उत्सव, पूजा-पाठ, अन्न क्षेत्र, स्नान, खेल- तमाशे, घूमना-फिरना, बाजार, दंगल बंद हो गए। नदी हरियाली बढ़ाती, वन क्षेत्र विकसित करती, धरती का पेट भरती, लोगों, पशु-पक्षी, जीव-जंतु, कीड़े-मकोड़े के भोजन की व्यवस्था करती, अन्न, फूल, फल, सब्जियां देती, नौका आदि से रोजगार, जलवायु को सुखमय बनाती, नदी मात्र जल का स्रोत नहीं आस्था, प्रेरणा, जीवन की धारा रही। नदी को मां कहा गया।
दिल्ली में यमुना का खादर विशेष है, यह पर्याप्त मोटाई लिए हुए है। इसकी मोटाई गहराई 70 मीटर तक है। यह बड़ा होने के साथ-साथ लचीला भी है, इसकी रेती स्पंज की तरह है। जिसमें बड़ी मात्रा में पानी भरता रुकता है। यह शुद्ध जल का बड़ा भंडार है। दिल्ली की प्यास बुझाने में काफी हद तक योगदान करता है।
यमुना में अनेक बार बाढ़ आई है। दिल्ली में खतरे का निशान 204.83 मीटर है। 1924 से 1995 तक छ: बार भयंकर बाढ़ आई। 1924, 1947,1976, 1978, 1988 और 1995 में। 6 दिसंबर, 1978 को खतरे के निशान से पानी 2.66 मीटर ऊपर पहुंचा।
दिल्ली भूकंप के सीस्मिक जोन चार में आता है। इसलिए भूकंप का खतरा दिल्ली के सिर पर मंडराता रहता है। यमुना का क्षेत्र इस खतरे में ज्यादा आता है। यमुना क्षेत्र में भूकंप की ज्यादा आशंका है।
दिल्ली के लिए नहर नाला नंबर आठ एवं दो से जो पानी वजीराबाद लाया जाता है, उसी के पास गंदे पानी कचरे के लिए नाला नंबर छह बहता है, जो समानांतर बहता है। यह नाला ऊंचाई पर होने के कारण, कई स्थानों पर नाला टूटा-फूटा होने के कारण, सही मरम्मत के अभाव में इसका गंदा पानी पीने वाले पानी में मिल जाता है। जिससे जन स्वास्थ्य को बड़ा खतरा बना रहता है।
क्रमश: