यमुना नदी के लिए उत्तराखंड का देहरादून, हरियाणा का यमुना नगर, करनाल, पानीपत, सोनीपत, फरीदाबाद, बल्लभगढ़, उत्तर प्रदेश का सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, बागपत, गाजियाबाद, नोएडा, मथुरा, आगरा तथा दिल्ली घरेलू प्रदूषण का मुख्य स्रोत हैं। पानी की आवश्यकता दिनों-दिन बढ़ती जा रही है और तदनुसार गंदे पानी की मात्रा भी। सीवेज नदियों में डाला जाता है। पूजा पाठ, यज्ञादि की सामग्री भी नदियों, जलस्रोतों में डाली जाती है। प्रदूषण बढ़ता ही जा रहा है। कृषि प्रदूषण स्रोत में मुख्य तौर पर खाद, कीटनाशक, पशु आदि शामिल हैं।
यमुना की सहायक नदियां हिंडन, चंबल और बेतवा आदि की अपनी भी सहायक नदियां हैं। इनमें कुछ की अपनी सिंचाई प्रणाली भी है। कुछ में ऊर्जा उत्पादन भी किया जाता है। कुछ नदियां औद्योगिक एवं घरेलू गंदगी, कचरा बड़ी मात्रा में लाती हैं, जिससे पानी की व्यवस्था बर्बाद, खराब, गड़बड़ होती है।
आजादी के बाद औद्योगिक प्रदूषण अधिक बढ़ा। उद्योग धंधे, निर्माण कार्य, आबादी तेजी से बढ़ी। शहरों का विस्तार तेज गति से हुआ। शहरों की संख्या में जबर्दस्त बढ़ोतरी हुई और आधुनिकीकरण की प्रक्रिया में तेजी आई। उपभोक्तावाद के प्रति रूझान बढ़ा। उपभोग की प्रवृत्ति का विस्तार हुआ। साधन- सुविधाओं में बदलाव आया।
प्रत्येक प्राणी, जीव, पशु-पक्षी, जीव-जंतु, कीड़े-मकोड़े, पेड़-पौधे, वनस्पति, खेती-बाड़ी, काम-धंधे, उद्योग, होटल , ढाबा, निर्माण कार्य, घरेलू, नगर निकायों आदि को पानी चाहिए। पानी का उपयोग एवं वर्गीकरण ए. बी. सी. डी. ई. में किया जाता है। ए वर्गीकरण में पीने का पानी एवं घरेलू आपूर्ति। बी में नदी स्नान, तैरने और पानी के खेलों में। सी में नगर निगम आपूर्ति के लिए कच्चा पानी – उपयोग से पहले शोधन, उपचार जरूरी। डी में वन जीव, पशु एवं मत्स्य पालन। ई में खेती, औद्योगिक, कूलिंग एवं धुलाई, जल विद्युत उत्पाद एवं नियंत्रित वेस्ट डिस्पोजल।
खुलापन (जिसे उदारीकरण कहकर मान्यता दी गई, यह उदारता है तो लोभ-लालच, लूट, कब्जा, पाखंड, शोषण, धोखा किसे कहा जाएगा?), निजीकरण, वैश्वीकरण, जिसे एल पी जी के नाम से जाना जाता है। इनसे भी प्रदूषण खूब बढ़ा।
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यमुना में बिना साफ किए औद्योगिक कचरा, रसायन, मैला सीधे डाला जा रहा है। इसमें पेपर, चीनी, केमिकल रसायन, चमड़ा, शराब, दवा, पावर आदि के उद्योग शामिल हैं। सरकार प्रशासन भी इसे रोक नहीं पाया। नीति एवं नियत दोनों ने यमुना को मार दिया है। हमारा प्रकृति से संबंध कटा है, दूरी बढ़ी है। ग्लोबल वार्मिंग का खतरा बढ़ता जा रहा है। जलवायु परिवर्तन का खतरा भी बढ़ता ही जा रहा है। जल स्रोत, जल संसाधन, नदी, नाले, तालाब दम तोड़ते जा रहे है। पानी की समस्या विकराल रूप धारण करती जा रही है। पानी का धंधा, बाजार , लूट , शोषण दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है
यमुना का जल ग्रहण क्षेत्र गंगा के कुल क्षेत्र का 40.2% है तथा कुल देश की जमीन का 10.7% है। यमुना देश की प्रदूषित नदियों में ऊपर है। इसमें बायोकेमिकल आक्सीजन डिमांड (बी, ओ. डी.) की मात्रा 14 से 28 मि.ग्रा. प्रति लीटर तक पाई गई। इसी तरह काॅलीफाॅरम की मात्रा भी बहुतायत में पाई गई। दुनिया की सबसे प्रदूषित नदियों में यमुना को रखा जाता है। यमुना में 3296 मिलियन लीटर (एम. एल. डी.) सीवेज प्रतिदिन डाला जा रहा है। दिल्ली अपना आधे से अधिक कचरा, मल सीधे यमुना में डालती है।
क्रमश: