लंदन: बुन्देलखण्ड में परमार्थ समाज सेवी संस्थान ने जल संकट की समस्याओं को कम करने के लिए कई महत्वपूर्ण प्रयास किए हैं। इनमें जल संरक्षण के उपाय, जल सहेली मॉडल, जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों को कम करने की पहल, और स्थानीय लोगों की आजीविका को संवर्धित करने के प्रयास शामिल थे।
पिछले वर्ष इन महत्वपूर्ण प्रभावों को दस्तावेज़ित करने के लिए इंग्लैंड और फ्रांस से एक टीम आई थी, जिसने इन प्रयासों पर एक शॉर्ट फिल्म का निर्माण किया। इस शॉर्ट फिल्म में बुन्देलखण्ड की समस्याओं और उनके समाधानों को बड़े ही प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुत किया गया। परमार्थ के इन प्रयासों को देखकर और बुन्देलखण्ड की समस्याओं के समाधान को और गहराई से समझने के लिए मुझे लंदन में एक विशेष कार्यक्रम में आमंत्रित किया गया और वहां हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स में 7 जून 2024 को मैंने परमार्थ संस्था द्वारा पिछले 27 वर्ष से अधिक किये गए कार्यों की प्रस्तुति दी।
आपको बता दें कि परमार्थ मध्यप्रदेश एवं उत्तर प्रदेश के बुन्देलखण्ड क्षेत्र में पिछले लगभग ढाई दशक से अधिक समय से जल संरक्षण एवं आजीविका संसाधनों के संवर्धन हेतु काम कर रहा है। संस्थान के द्वारा किये गए जल संरक्षण के कार्यो में विशेष तौर से चंदेल कालीन तालाब, नदी पुनर्जीवन, जलवायु अनुकूलन खेती, जल सहेली जैसे अभिनव प्रयोगों से वहां काफी सकारात्मक बदलाव आये हैं।
इन्हीं प्रयोगों को जानने के लिए ब्रिटिश सरकार द्वारा हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स में मुझे आमंत्रित किया गया था जहाँ मैंने बुन्देलखण्ड में अब तक किये गए कार्यों का प्रस्तुतीकरण रखा।
यह पहला अवसर है जब बुन्देलखण्ड जैसे क्षेत्र से किसी व्यक्ति को अपने कार्यों का प्रस्तुतीकरण हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स में रखने का मौका मिला। इस दौरान पर मैंने वैश्विक स्तर पर बढ़ रहे तापमान, बाढ़ , सूखा और उनके कारणों एवं समाधान पर अपनी प्रस्तुति दी।
राजस्थान के बारां जिला जो वर्ष 2002-2005 के दौरान हुए सूखे और अकाल के कारण पूरी तरह से जंगल विहीन और नंगे पहाड़ियों जैसा हो गया था, उस इलाके को हरा-भरा करने के लिए रिवाईवल ऑफ़ बारां में परमार्थ ने अभिनव प्रयोग किया और इन प्रयोगों के = अब तक किये गए अनुभवों को भी मैंने हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स में प्रस्तुत किया।
लंदन के इस कार्यक्रम का उद्देश्य इन समस्याओं पर वैश्विक जागरूकता बढ़ाना और संभावित सहयोग एवं समाधान की दिशा में कदम बढ़ाना था। इस अवसर पर लंदन के कई संगठन, मेंबर्स ऑफ पार्लियामेंट, और मीडिया के विशेष लोग उपस्थित रहे। इस दौरान मैंने समुदाय के सहभागी ढंग से जल संरक्षण के कार्यों एवं जल सहेलियों द्वारा किए जा रहे कार्यों को विस्तार से बताया। किसी भी देश की तरक्की में वहां के नागरिकों का महत्वपूर्ण योगदान होता है। व्यक्ति का आत्मानुशासन उस राष्ट्र को महान बनाता है। मुझे ख़ुशी है कि उपस्थित सभी लोगों ने समुदाय एवं जल सहेलियों के कार्यों की सराहना की और भारत में जल संरक्षण के प्रयासों को लेकर कई प्रश्न पूछे तथा अपनी जिज्ञासाओं को शांत किया।
जलवायु परिवर्तन का जो बढ़ता प्रभाव है उसका सबसे बड़ा कारण शहरीकरण है और शहरीकरण के कारण आज बड़े पैमाने पर हमें जलवायु परिवर्तन के प्रभाव दिख रहे हैं। इस साल भारत सहित दुनिया के कई देशों में बहुत गर्मी हुई परन्तु लंदन में जून के महीने में भी तापमान कई बार 12 से 15 डिग्री सेल्सियस के आसपास रहा। वहां के लोगों ने बताया कि जून का महीना जो सबसे अच्छा मौसम होता था, इस बार ज्यादा ठंडा है। यह विपरीत लक्षण अब निरंतर दिखाई दे रहे हैं कि एक तरफ जाड़ा है दूसरी तरफ गर्मी है। पिछले वर्ष ब्रिटेन में बहुत गर्मी हुई जिसके कारण ‘ड्राउट ईयर’ भी घोषित किया गया था।
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धरती पर जो भी नागरिक है, सबके लिए जलवायु परिवर्तन एक बड़ी चुनौती सामने उभर कर आई है। हमने अपनी ज़रूरतें बढ़ा ली है, हमने प्रकृति के साथ संबंध बिठाना बंद कर दिया है। आज प्रकृति की का दोहन हमने अत्यधिक किया है जिसका दुष्परिणाम है कि मौसम उल्टा-पुल्टा हो गया है और इसका असर हमारे जीवन पर भी है और हमारे स्वास्थ्य पर भी है। अब इन सब के बीच में कैसे सामंजस्य बिठाया जाए? विकास का क्या मॉडल हो ?
मैंने इंग्लैंड के ग्रामीण इलाक़े को देखा। मैनचेस्टर से बहुत दूर हम टेटोंन गाँव पहुँचे । यहाँ से समुद्र के किनारे डिपार्टमेंट ऑफ़ इकोलॉजी का 20 हज़ार स्क्वायर किलोमीटर का हॉलनिकोट स्टेट है। यह इलाक़ा बाढ़ से प्रभावित इलाक़ा था जहां पर खेती बिल्कुल नहीं होती थी। सरकार और यहाँ के वैज्ञानिको ने मिलकर अद्भुत काम किया है । जिस तरह से उन्होंने वॉटरशेड मैनेजमेंट के आधार पर बाढ़ प्रबंधन का कार्य किया है, वह देखने एवं बुन्देलखण्ड के इलाक़े में सीखने लायक़ है। प्राकृतिक खेती में यहाँ काफ़ी विकास किया गया है । ऐसे पौधे का रोपण किया है जो मिट्टी और पानी को रोक सकते है।
मैंने 20 घंटे से अधिक की रेल यात्रा की और 20 घंटे से अधिक की रेल यात्रा में मैंने पूरे इंग्लैंड के कई प्रान्तों का भ्रमण किया जिनको वहां पर स्टेट भी कहते हैं। भ्रमण के दौरान पाया कि लोग अभी भी अपनी खेती को बचा के रखना चाहते हैं।
अब इंग्लैंड जैसे देश में प्राकृतिक खेती की तरफ लोग बढ़ रहे हैं। घास बड़े पैमाने पर खेतों में खड़ी है। उसी को पलट के खेतों की तैयारी करते हैं। जहां एक तरफ रासायनिक खाद और कीटनाशक से उनका मोह भंग हो गया है अब वह खेती में परंपरागत और रसायन मुक्त और विष मुक्त खेती की तरफ बढ़ रहे हैं। इन दिनों मैंने देखा कि गेहूं की फसल लहरा रही है बाकी के खेत खाली पड़े हुए हैं। लोग नई फसल लगाने की तैयारी कर रहे हैं।
कृषि का जो काम है वह भारत से मुझे इंग्लैंड में अलग तरह का दिखा। लोग अब बहुत जागरुक है बड़े-बड़े फार्म हाउस होने के बाद भी अब वह प्राकृतिक खेती की तरफ लौट रहे हैं और अपने उत्पाद को बेहतर कर रहे हैं। मैंने जब किसानों से बात की तो उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य और तमाम तरह की जानकारी हेतु बड़े पैमाने पर लोगों ने किसान (फार्मर) स्कूल खोले हैं। किसान लोग स्कूल जा रहे हैं वहां पर लोगों के साथ बात हो रही है। मेंटल हेल्थ का इशू तो बड़ा पैमाने पर पूरी दुनिया में आया है उसे इंग्लैंड भी अछूता नहीं है। लोग मानसिक अवसाद को दूर करने के लिए भी इस तरह की कई तरह की थेरेपी जो कृषि के साथ उन्होंने जोड़ी है, वह दिखाई दे रही है। इन सबके कारण लोग अपने जीवन शैली में भी परिवर्तन कर रहे हैं। हालांकि गाड़ियों की संख्या बहुत बड़ी है और बहुत महंगी महंगी गाड़ियां हैं। स्वाभाविक तौर से आने वाले दिनों में जनसंख्या घनत्व और जनसंख्या के कारण से उत्पन्न संकटों के समाधान के लिए सामूहिक रूप से पूरी दुनिया को सोचना पड़ेगा कि हम कहीं ना कहीं एक बेहतर भविष्य की कल्पना कर पाएं और जलवायु परिवर्तन के संकटों से निजात पा सकेंगे।
फिलहाल दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए एक फॉरेस्ट रेस्टोरेशन कार्यक्रम भी शुरू किया गया है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य खाद्यान के लिए जंगलों की महत्ता और समाज के लिए जंगलों को बचाने की आवश्यकता को रेखांकित करना है। यह कार्यक्रम अफ्रीका, लैटिन अमेरिका, यूरोप, और भारत जैसे देशों में प्रारंभ किया गया है। इस कार्यक्रम में जल, जंगल, और जमीन की बात स्थानीय सहयोग से की जाएगी। कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के लिए लंदन और यूरोप के कई महत्वपूर्ण व्यक्तियों एवं संगठनों ने सहमति बनाई है। उनका मानना है कि स्थानीय सहयोग से ही जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम किया जा सकता है और जल, जंगल, तथा जमीन का संरक्षण संभव हो सकता है | इस अवसर पर मुझे न केवल बुन्देलखण्ड की जलवायु और पर्यावरण संबंधी चुनौतियों पर चर्चा करने का मौका मिला, बल्कि उन सफल प्रयासों को भी साझा करने का अवसर प्राप्त हुआ, जो हमने परमार्थ के माध्यम से किए थे।
हालाँकि लोग लंदन ज़्यादातर घूमने आते है लेकिन ब्रिटेन में ग्रामीण इलाकों में खेती में नवाचार किए गए हैं जो देखने और सीखने लायक हैं । मुझे लगा कि कुल तीन साल में यहाँ जो इन्होंने काम और विकास किया है वह अद्भुत काम है और हम सबको जानने और सीखने के लिए पर्याप्त है।
*लेखक झाँसी स्थित परमार्थ समाज सेवी संस्थान के संस्थापक हैं।
बधाई शुभकामनाएं मुबारक हो आशीर्वाद।
लेखन जारी रखें। विस्तार से जानकारी लिखें।
शुभकामनाओं सहित सादर जय जगत।
रमेश चंद शर्मा