राजस्थान सरकार केंद्र सरकार की सहमति से राष्ट्रीय चम्बल घड़ियाल अभ्यारण्य को अभ्यारण के कानून से मुक्त करने का प्रावधान करने जा रही है। पिछले दिनों राज्य सरकार और केंद्र सरकार ने मिलकर चंबल नदी के अपस्ट्रीम को राष्ट्रीय चम्बल घड़ियाल अभ्यारण से मुक्त करने का निर्णय लिया है। सरकार का यह प्रयास दोहरे चरित्र को उजागर करता है कि हम नदियों को जो की मां मानते हैं व्यवहार में उसका शोषण करने का प्रयास करते हैं। सरकार का तर्क है कि चंबल के किनारे बसी अवैध बस्तियों को कानूनी दर्जा दिया जाए। सरकार में बैठे लोगों की यह भी सोच है कि इस कदम से वोट बैंक बढ़ेगा और व्यवसायिक गतिविधियां भी तेज हो जाएगी।
राष्ट्रीय चंबल घड़ियाल अभ्यारण के होने से अभी तक इन पर एक कानूनी अंकुश लगा हुआ था उस अंकुश को हटाने का काम सरकार के माध्यम से हो रहा है। क्योंकि अब कहा जाता है कि राजस्थान और केंद्र में डबल इंजन की सरकार है। डबल इंजन की सरकार का यह कदम एक तरीके से नदियों, जलीय जीव जंतुओं के पर आघात है। सरकार के इस कदम का राज्य विधानसभा में पीपल्दा के युवा विधायक चेतन पटेल ने विरोध किया है। इसी प्रकार पूर्व मंत्री एवं वन्य जीव विशेषज्ञ भरत सिंह ने भी मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर आपत्ति दर्ज कराई है। भारतीय संस्कृति निधि इंटेक के कंवीनर निखिलेश सेठी ने भी सरकार के इस कदम की आलोचना की है। इसी के साथ पर्यावरण प्रेमी संस्थाओं ने भी प्रधानमंत्री एवं मुख्यमंत्री को ज्ञापन देकर आपत्ति दर्ज कराई है एवं सरकार से अनुरोध किया है कि इस घातक निर्णय को वापस लिया जाए।
मध्य प्रदेश और राजस्थान की जीवन रेखा चंबल नदी राजस्थान के कोटा शहर का प्रमुख पेयजल स्रोत भी है। कोटा के पर्यावरणविद भी चम्बल नदी बचाने की मुहिम में जुटी चम्बल संसद के माध्यम से प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री से इस निर्णय पर पुनर्विचार करने के लिए अनुरोध किया है क्योंकि चंबल नदी को अभ्यारण का कानून से हटाने का सीधा सा मतलब है उसकी रक्षा का कवच हटाना।
चंबल के व्यापक हितों एवं वन्यजीवों घड़ियाल, मगरमच्छ, ऊदबिलाव, महाषीर, मछलियां, अन्य सैकड़ो जीव जंतुओं, वनस्पतियों ,जैव विविधता की सुरक्षा के महत्व को देखते हुए सरकार ने 1983 में वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 केंद्रीय अधिनियम 53की धारा 18 के तहत कोटा के निकट इस नदी के अप स्ट्रीम क्षेत्र को अभ्यारण्य कानून का दर्जा देकर संरक्षित किया गया था। चंबल को बचाने के लिए इसका कानूनी संरक्षण बहुत आवश्यक है। उसे समय भी कोटा बैराज से लेकर केशवरपाटन तक 17 किलोमीटर को अभ्यारण से मुक्त रखा गया था आज सर्वाधिक प्रदूषित , अवैध खनन चम्बल अभ्यारण मुक्त क्षेत्र में ही है। अतः व्यापक पर्यावरणीय हित एवं जलीय जीव जंतुओं की रक्षा के लिए चम्बल नदी पर से अभ्यारण कानून को हटाया नहीं जाए ।
कोटा में चंबल लगभग 25 किलोमीटर के क्षेत्र में बहती है। इंदौर के पास बहू की पहाड़ियों से निकलने वाली यह नदी 960 किलोमीटर से अधिक का सफर करते हुए उत्तर प्रदेश के इटावा में पांचनदा के पास यमुना में मिल जाती है। कोटा का विकास ही इस नदी के बदौलत हुआ है लेकिन विकास की चकाचौध में अब यह विकास विनाश साबित हो रहा है। चंबल नदी जहां अपनी प्राकृतिक खूबसूरती और आधारित जल भंडार के लिए जी जानी जाती है वहीं यह नदी रेत के अवैध खनन और लूट के लिए भी जानी जाने लगी है। सरकार का दायित्व तू यह होना चाहिए की हड्डी को कानूनी जमा और मजबूत किया जाए जबकि हो उल्टा रहा है कि कानूनी जामे को ही उतार कर फेंकने की तैयारी हो रही है।
*स्वतंत्र पत्रकार एवं संयोजक चंबल संसद