कोटा: जिस प्रकार जल्दी में कोटा विकास प्राधिकरण की घोषणा हो रही है उससे तो लगता है कि गांव और खेत अब केवल फोटो में ही दिखेंगे। गत जुलाई में राजस्थान की निवर्तमान विधानसभा ने गुपचुप तरीके से 14 मिनट में बिना किसी चर्चा के कोटा विकास प्राधिकरण बिल पास किया।आचार संहिता लागू होने के तुरंत पहले अध्यादेश लागू भी कर दिया। बूंदी और कोटा जिला के लगभग 300 गांव इसकी परिधि में आ रहे हैं। बूंदी व कोटा के किसान व पर्यावरण संगठनों ने विरोध किया है।
कोटा विकास प्राधिकरण विधेयक 2023 विधानसभा में 14 मिनिट में पास हो गया था और कोटा के चुनिंदा लोग इससे काफी खुश हो रहे हैं । सवाल उठता है कि विकास प्राधिकरण की मांग किसने की थी?
लोगों को नहीं मालूम कि यह कोटा विकास प्राधिकरण भविष्य में विनाश का प्राधिकरण भी साबित हो सकता है। जिस प्रकार से इसके विरोध की में आवाज उठ रही है उस पर क्या सरकार को पुनर्विचार करते हुए इस विधेयक को वापस ले लेना चाहिए? जिस प्रकार जयपुर विकास प्राधिकरण बनने के बाद जयपुर का और भस्मासुर की तरह विस्तार हो गया और आसपास के सभी गांव लगभग समाप्त हो गए। उसी प्रकार कोटा के जिसे कि विधेयक में कोटा रीजन कहा गया है लगभग 300 गांव और उनके खेत खत्म होकर सीमेंट कंक्रीट के ढांचे में बदल जाएंगे, और 50 किलोमीटर तक की आबादी रहने के लिए इस शहर की ओर दौड़ पड़ेगी। किसान कौड़ियों के भाव अपनी जमीनों को बेचकर शहर में छोटा सा फ्लैट या भूखंड खरीद लेंगे। अभी कोटा की आबादी 170,00,00 है तो आने वाले समय में एक करोड़ के लगभग पहुंच जाएगी। क्या ये विकास का आयाम है?
जिस भारत को गांव का देश कहां गया था अब सुरसा की तरह खेल रहे शहरों के नाम से जाना जाएगा। कभी महात्मा गांधी ने कहा था कि भारत की आत्मा गांवों में बसती है उनका यह कथन आज राजनीतिक सोच के लोगों में लुप्त हो गया है। ठीक इसी प्रकार की सोच को भारतीय जनसंघ के प्रणेता रहे पंडित दीनदयाल उपाध्याय और नानाजी देशमुख जैसे विचार कोने गांव के संरक्षण और उनको सवारने की जरूरत पर बल दिया था। देशमुख ने तो गोंडा जिले में इसका सफल प्रयोग करके भी बताया। सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे का आदर्श गांव रालेगण सिद्धि देश विदेश के लिए अध्ययन का केंद्र बन गया है। चाहे आचार्य विनोबा भावे हो या और कोई सामाजिक विचारक सभी ने गांव में ही भारत की आत्मा के दर्शन किए हैं।
विकास प्राधिकरण बनाने वालों को सोचना चाहिए कि क्या कोटा शहर सांस लेने लायक बचेगा?
हम हमारे राजस्थान के जयपुर की ही बात कर रहे हैं – शिवदासपुरा से जयपुर चालू हो जाता है। सीकर रोड आगरा रोड, दौसा रोड, कलवार रोड, अजमेर, सब तरफ जहां कभी लहराते हरे भरे खेत दिखाई देते थे अब वहां सीमेंट कंक्रीट के भवन और वाहनों की रेलम पेल दिखाई देने लगी है। यही दृश्य भविष्य में शायद कोटा का भी बनने वाला है। विकास प्राधिकरण बनाने वालों के दावे कितने खोखले होते हैं यह इस बात से समझा जा सकता है कि नगर निगम को दो भागों में बांट दिया लेकिन व्यवस्थाएँ बद से बदतर होती गई। अभी ऐसा कौन सा काम है जो नगर विकास न्यास नहीं कर रहा? पर नगर विकास न्यास के तमाम प्रयासों के बावजूद भी आवारा जानवर शहर की सड़कों पर विचरण कर रहे हैं। यातायात व्यवस्था में कोई सुधार नजर नहीं आता जबकि पशु पालकों के लिए भारी भरकम देवनारायण योजना संचालित हो चुकी है। 2 नगर निगमों के बनने के बाद पार्षदों की संख्या बढ़ गई 2 महापौर हो गए ,उसके बावजूद भी शहर की सड़कों पर कचरे की समस्या से ज्यों की त्यों बनी हुई है और कचरे के पहाड़ निरंतर बढ़ते जा रहे हैं। पहले एक ट्रेचिंग ग्राउंड नांता में था अब दूसरा उम्मीदगंज में बनाया जा रहा है। कचरे के पहाड़ों का भी विस्तार हो रहा है। केवल इतना ही नहीं इन 300 गांव के आसपास के खेत खत्म हो जाएंगे, अनाज उत्पादन , पशु पालन की सभी गुंजाइश खत्म हो जाएगी, और खेतिहर मजदूर लोग शहरों में मजदूरी या छोटे-मोटे काम करते दिखेंगे जो कभी भूमि पति होने का दावा करते थे।
इतना ही नहीं कोटा विकास प्राधिकरण की परिधि में आने वाले नदी ,पहाड़ जंगल, पेड़ पौधे तालाब कुएं बावड़ी सभी जल स्त्रोत समाप्त हो जाएंगे। प्राधिकरण एक आबादी का विस्फोटक रूप ले लेगा। पीने के पानी के लिए पाइप लाइनें दूर से लाई जाएंगी ।लेकिन प्राकृतिक जल स्त्रोत मलबे और कचरे से भर दिए जाएंगे। जैसा कि जयपुर, जोधपुर और लगभग सभी बड़े शहरों में हो रहा है। दिल्ली विकास प्राधिकरण के बाद राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में बदल गया और अब गुड़गांव, नोएडा, ग्रेटर नोएडा में सीमेंट कंक्रीट के स्ट्रक्चर और वाहनों की रेलम पेल दिखाई देती है। आज दिल्ली और हरियाणा के लोग अरावली पर्वत माला को बचाने के लिए आंदोलन कर रहे हैं।
ठीक इसी प्रकार की स्थिति देश की आर्थिक राजधानी कहे जाने वाले मुंबई शहर और आईटी हब पुणे शहर की भी बड़ी आबादी हो गई है। पिछले 10 साल में पुणे शहर की आबादी 1करोड़ से अधिक हो गई। वहां के प्राकृतिक संसाधन पहाड़ों को काटकर बस्तियां बसाई जा रही है और बहुमंजिला इमारतें तैयार की जा रही है। ऐसा ही नजारा बेंगलुरु शहर का भी है जो सबसे महंगा शहर होने का दर्जा पा चुका है।
आम आदमी का जीवन मुहाल होता जा रहा है। शहरों के विस्तारीकरण से भविष्य में खाद्यान्न का संकट भी उत्पन्न होने वाला है। कारण साफ है कि अनाज को खेत की जमीन में ही उगाया जा सकता है न कि किसी प्रयोगशाला में। इसलिए आवश्यकता है कि जमीन, जल ,जंगल जल और जीवों को बचाने के लिए शहरों का अनियंत्रित, अनियोजित विस्तार थामना होगा।
*वरिष्ठ पत्रकार। प्रस्तुत लेख उनके निजी विचार हैं ।