संयुक्त राष्ट्र महासभा के एजेण्डा 21 का अध्याय 40 सभी राष्ट्रों से सतत् विकास के संकेतकों को विकसित करने में सहायता की अपील करता है। ये संकेतक सतत् विकास पर जोर देने और प्रभावशाली सतत् विकास नीति निर्माण में सहायता हेतु आवश्यक है। संकेतक दिशा निर्देशों का काम करते हैं जो यह बताते हैं कि हमारे विकास की दिशा क्या है और उसका प्रभाव विभिन्न क्षेत्रों में किस प्रकार हो रहा है। ये नीति निर्माताओं के सामने सूचनाओं को सरल, साफ और सकल रूप से प्रस्तुत कर निर्णय प्रक्रिया को आसान बनाते हैं।
सतत् विकास के कई संकेतक है जिनमें से कुछ सस्थाओं द्वारा, कुछ स्वतंत्र विद्वानों द्वारा तथा कुछ राष्ट्रों द्वारा अपनी जरूरतों के मुताबिक विकसित किए गए हैं। इनमे कुछ प्रमुख संकेतक निम्नानुसार है-
- सतत् विकास आयोग द्वारा प्रतिपादित संकेतक
- सकल सतत् विकास उत्पाद
- मानव विकास सूचकांक (एचआईडी)
- सतत् विकास सूचकांक (एसडीआई)
- कल्याण सूचकांक (डब्ल्यू आई)
- पर्यावरणीय सतत् सूचकांक (ईएसआई)
- पास्थितिकीय पदचिह्न (ईएफ)
हम इनमें से केवल दो संकेतकों की चर्चा करेंगे –
1) पारिस्थितिकीय पदचिह्न -पृथ्वी के पारिस्थितिकीय तंत्र पर मानवीय मांग के असर का एक माप है। यह इंसान की मांग की तुलना, पृथ्वी की पारिस्थितिकी के पुनरुत्पादन करने की क्षमता से करता है। यह मानव आबादी द्वारा उपभोग किए जाने वाले संसाधनों के पुनरुत्पादन और उससे उत्पन्न अपशिष्ट के अवशोषण और उसे हानिरहित बनाकर लौटाने के लिए जरूरी जैविक उत्पादक भूमि और समुद्री क्षेत्र की मात्रा को दर्शाता है। इस आकलन का प्रयोग करते हुए यह अनुमान लगाया जा सकता है कि अगर प्रत्येक व्यक्ति एक निश्चित गरीवन शैली में जिए, तो मानवता की सहायता के लिए पृथ्वी के कितने हिस्से (या कितने पृथ्वी ग्रह) की जरूरत होगी। 2006 के लिए मनुष्य जाति के कुल पारिस्थितिक पदचिन्ह को 1|4 पृथ्वी ग्रह अनुमानित किया गया था दूसरे शब्दों में, मानव जाति, पारिस्थितिक सेवाओं का उपयोग, पृथ्वी द्वारा उनके पुनर्सृजन की तुलना में 1|4 गुना तेजी से करती है यानि मनुष्य की तात्कालिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु 1|4 पृथ्वी की आवश्यकता होगी।
2) सकल सतत् विकास उत्पाद (जीएसडीपी)- सकल विकास उत्पाद (जीडीपी) के स्थान पर सकल सतत् विकास को महत्ता दी जा रही है। हरित सकल विकास उत्पाद को संशोधित कर सकल सतत् विकास उत्पाद की अवधारणा प्रस्तुत की गयी। इस अवधारणा को ग्लोबल कम्युनिटी असेस्मेंट सेंटर तथा सोसायटी फॉर वर्ल्ड सस्टेनेबल डेवलपमेंट द्वारा विकसित किया गया है। इसके अंतर्गत निम्नलिखित बिन्दुओं की माप की जाती है-
- पर्यावरणीय एवं स्वास्थ्य क्षति का आर्थिक आंकलन
- प्रत्येक प्राकृतिक संसाधन की वर्तमान स्थिति, उसका भंडारण एवं उत्पाद क्षमता का आकलन
- पर्यावरण पर मानवीय क्रियाओं का प्रभाव
- संसाधनों की उपलब्धता पर मानवीय क्रियाओं का प्रभाव
- आर्थिक विकास पर मानवीय क्रियाओं का प्रभाव
- पर्यावरण, मनुष्यों, संसाधनों, विकास की गुणवत्ता एवं इनमें होने वाले परिवर्तनों का राष्ट्रीय आय व स्वास्थ्य पर प्रभाव
- अर्थव्यवस्था पर वैश्विक मुद्दों का प्रभाव
- भविष्य की पीढ़ियों का कल्याण, जीवन गुणवत्ता एवं आर्थिक विकास
- प्रदूषण, स्वास्थ्य, बाढ़, दुर्घटनाओं पर व्यय
- संसाधनों का स्टॉक, शोषित लोगों की उत्पादक क्षमता एवं पारिस्थितिकी
- जैव विविधता पर आर्थिक वृद्धि का प्रभाव
- भविष्य की पीढ़ियों और राष्ट्रीय आय पर सामाजिक स्वास्थ्य लागत का प्रभाव
- हमें बेहतर दुनिया चाहिए। साझा भविष्य, साझे प्रयासों से बेहतर भविष्य व दुनिया बनायेगा। सतत् विकास वर्ग विहीन किसान, उद्योगपति कर्मचारी, अधिकारी, नेता, पुजारी, व्यापारी का जातिगत लाभ का विचार किए बिना सभी का साझा सतत् विकास ही दुनिया को सूखी, शांतिमय, समृद्ध व समाधान पूर्ण बनायेगा। ऐसी कार्यशैली ‘अहिंसक व सनातन’ कहलाती है। इसे हम पुनर्जनन प्रक्रिया या सतत् विकास नाम से अब जानते है। पूरी दुनिया एक परिवार बनकर ‘सतत् विकास’ का रास्ता अपनाये। यही भारत की सदाचारी, सद्व्यवहारी रास्ता है। इससे अब दुनिया सीख ले सकती है।
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