1991 में एक रिपोर्ट केयरिंग फॉर द अर्थ ए स्ट्रेटजी फॉर सस्टेनेबल लिविंग ने प्रकृति संरक्षण हेतु वैश्विक रणनीति में संशोधन का सुझाव दिया। इसमें स्थानीय लोगों की सहभागिता को प्रमुखता दी गयी। 3-14 जून 1992 में बंटलैंड आयोग की रिपोर्ट के परिणामस्वरूप रियो डी जेनेरो में मानव पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया जिसे आम तौर पर ‘पृथ्वी सम्मेलन’ के नाम से जाना जाता है। यह सम्मेलन एक ऐतिहासिक महत्व रखता है, इसमें लगभग 178 देशों के प्रतिनिधि उपस्थित थे जिनका प्रमुख मकसद पर्यावरणीय संरक्षण की तत्काल वैश्विक समस्या तथा सामाजिक-आर्थिक विकास पर ध्यान केंद्रित करना था। इस सम्मेलन में पारित किए गए प्रस्तावों और दस्तावेजों के जेरिए विश्व के देशों ने यह स्वीकार किया कि वैश्विक आर्थिक विकास ऐसा होना चाहिए जो पर्यावरण के अनुकूल हो तथा प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा कर सके। मैं इस सम्मेलन और दिसम्बर 1991 में फ्रांस के तैयारी सम्मेलन में प्रत्यक्ष भागीदार रहा था।
इस सम्मेलन के परिणाम निम्नानुसार रहे –
- अंतरराष्ट्रीय सहयोग एवं सतत् विकास के मुद्दे पर विभिन्न देशों के बीच समझौते
- इस सम्मेलन के समझौतों के उद्देश्यों को प्राप्त करने हेतु राजनीतिक प्रतिबद्धता
- विभिन्न अंतरराष्ट्रीय एजेंडों में सतत् विकास के मुद्दे को शामिल करना
- सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों के बीच संवाद और सहयोग की नवीन दिशाएं तलाशना जो विकास और पर्यावरण से जुड़े उद्देश्यों को प्राप्त कर सके
- आम जनता में इस मुद्दे के प्रति जागरूकता उत्पन्न करना
पृथ्वी सम्मेलन में विभिन्न दस्तावेजों पर आम सहमति बनी, उनमें से कुछ प्रमुख दस्तावेज निम्नानुसार है –
एजेंडा 21- यह लगभग 300 पृष्ठों का एक दस्तावेज था जो पर्यावरण स्वच्छता तथा पर्यावरण अनुकूल विकास को प्रोत्साहित करने हेतु वैश्विक रणनीतियों को बताता है। इसमें यह बताया गया कि विकास को सामाजिक, आर्थिक एवं पर्यावरणीय दृष्टि से सतत् कैसे बनाया जाए। इसमें नौ प्रमुख समूहों की पहचानकी गयी जो विभिन्न सरकारों द्वारा रियो घोषणा पत्र के क्रियान्वयन के नजरिए से जरूरी थे। इनमें स्त्री, किसान, युवा वर्ग, श्रम संगठन, व्यापार और उद्योग, स्थानीय प्राधिकरण, वैज्ञानिक, मूल निवासी तथा पर्यावरण एवं विकास के क्षेत्र में काम करने वाले गैर-सरकारी संगठन शामिल थे।
पर्यावरण एवं विकास पर घोषणापत्र/रियो घोषणा पत्र – यह पर्यावरणीय अनुकूल विकास के लिए 27 बिन्दुओं का घोषणा पत्र था। दूसरे शब्दों में, ये सतत् विकास के आधारभूत सिद्धांत थे।
जैवविविधता पर संविदा – यह एक बाध्यकारी संधि थी जिसमें हस्ताक्षरी देशों से आशा की गयी थी कि वे लुप्तप्राय वन्य जातियों, वनस्पतियों एवं जानवरों की रक्षा हेतु कदम उठाएंगे।
जलवायु परिवर्तन पर संविदा ढांचा ग्लोबल वार्मिंग संविदा – यह ग्लोबल वार्मिंग की समस्या का सामना करने के लिए बाध्यकारी संधि थी जिसमें यह निश्वित था कि हस्ताक्षरी देश कार्बन डाइ आक्साइड, मिथेन तथा अन्य गैसों का उत्सर्जन कम करेंगे जो पर्यावरण के लिए नुकसानदायक हो या ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ाती हो।
वनों से संबंधित सैद्धांतिक नीति इसका उद्देश्य वैश्विक स्तर पर तेजी से खत्म हो रहे वनों का संरक्षण करना था। यह बाध्यकारी नीति नहीं थी। इसमें यह आशा कि गयी थी कि सभी देश इस बात को सुनिश्चित करेंगे कि उनके विकास के प्रारूप के कारण वनों का विनाश न होने पाए तथा वनों के संरक्षण को प्राथमिकता प्रदान की जाए।
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- विकास की आर्थिक वृद्धि वाली अवधारणा से विस्थापन, बिगाड़ और विनाश हुआ है
- सतत् विकास ‘शुभ’ शब्द से ही जन्मा है
1997 में संयुक्त राष्ट्र संघ की साधारण सभा को एक विशेष सत्र बुलाया गया जो रियो डी जेनेरो के पृथ्वी सम्मेलन के पांच वर्ष बाद न्यूयार्क में सम्पन्न हुआ। इसे ’रियो 5’ के नाम से जाना जाता है। इस आयोजन का मकसद यह देखना था कि पृथ्वी सम्मेलन में उठाए गए महत्वपूर्ण मुद्दों पर विभिन्न राष्ट्रों, संगठनों, स्थानीय समुदायो, गैर- सरकारी संगठनों ने किस तरह के प्रयास किए है साथ ही सतत् विकास की ओर बढ़ने के प्रयासों पर विचार किया गया। इस सम्मेलन के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित थे-
- सतत् विकास के प्रति प्रतिबद्धता को और मजबूत करना
- सतत् विकास उद्देश्य की प्राप्ति में असफलता एवं उसके कारणों की पहचान
- सतत् विकास उद्देश्य प्राप्ति में सफलता एवं उससे संबंधित कार्यक्रमों की पहचान एवं उन्हें बढ़ावा देना
- इस सम्मेलन के बाद प्राथमिकताओं को सुनिश्चित करना
- पृथ्वी सम्मेलन के बाद शेष रहे मुद्दों को उठाना एवं उन पर कार्य करना
सतत् विकास पर दूसरा बड़ा सम्मेलन 26 अगस्त-4 सितम्बर 2002 में जोहान्सबर्ग, दक्षिण अफ्रीका में हुआ। इसे ‘रियो 10’ के नाम से जाना जाता है। इस सम्मेलन का उद्देश्य पृथ्वी सम्मेलन के बाद सतत् विकास की दिशा में हुए प्रयासों की समीक्षा से कहीं अधिक था। इसमें पर्यावरण संरक्षण और विकास से जुड़े हर संभव मुद्दे को जगह दी गयी जिसमें ऊर्जा, प्रदूषण, प्राकृतिक संसाधन, पेयजल, स्वास्थ्य, स्वच्छता, वन, जीवनशैली, उपभोग, गरीबी, अन्याय, असमानता, व्यापार, निर्णय प्रक्रिया में भागीदारी, आदि विषय सम्मिलित किए गए।
24 दिसम्बर 2009 को संयुक्त राष्ट्र संघ की साधारण सभा ने प्रस्ताव संख्या एआरईएस/64/236 को पारित करते हुए 20-22 जून 2012 में ‘रियो 20’ शिखर सम्मेलन का आयोजन करना स्वीकार किया।
इस सम्मेलन के तीन प्रमुख उद्देश्य रखे गए:
- सतत् विकास हेतु समर्पित नवीन राजनीतिक प्रतिबद्धओं की रक्षा
- पूर्व में स्वीकृत प्रतिबद्धताओं के प्रस्ताव एवं वास्तविक प्रगति के बीच के अंतर का विश्लेषण
- नवीन प्रस्तुत चुनौतियों का सामना
सभी सदस्य सम्मेलन हेतु सतत् विकास के संदर्भ में हरित अर्थव्यवस्था एवं निर्धनता उन्मूलन, इन दो शीर्षकों पर सहमत हुए। सतत् विकास हेतु संस्थागत ढ़ांचा इस सम्मेलन के लिए निम्नलिखित सात प्राथमिकता वाले क्षेत्र निश्चित किए गए –
- उचित रोजगार
- ऊर्जा
- सतत् विकसित शहर
- खाद्य सुरक्षा
- प्राकृतिक खेती
- पेयजल
- समुद्र एवं आपदा तैयारी
*जलपुरुष के नाम से विख्यात जल संरक्षक