खुले में हो रहे निर्माण से उड़ने वाली और सड़कों की धूल के चलते लोगों की जिंदगी धुंधली हो रही है। धूल में छोटे और बडे़ दोनों तरह के प्रदूषक मौजूद होते हैं। बडे़ आकार के प्रदूषक जैसे पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) 10 माइक्रोन और छोटे आकार के पीएम 2.5 माइक्रोन होते हैं। पीएम 10 की वजह से ऊपरी श्वसन तंत्र, आंख और नाक में जलन और छोटे आकार के पीएम 2.5 माइक्रोन के कण सांस के जरिये अस्थमा, गले का संक्रमण, सांस लेने में सीटी की आवाज आना, खांसी, त्वचा सम्बंधी बीमारी और ब्रोंकाइटिस के कारण होते हैं। ये इतने छोटे आकार के होते हैं कि खून के रास्ते शरीर के दूसरे हिस्सों में भी पहुंच जाते हैं। इससे दिल की बीमारी और श्वसन तंत्र में अवरोध से अचानक होने वाली मौतों का खतरा बढ़ जाता है।
यदि वैश्विक स्तर पर देखें तो दुनिया में होने वाली कुल मौतों में 12 फीसदी मौतें वायु प्रदूषण से होती हैं। इनमें पी एम 2.5 यानी हवा में घुले महीन कणों यथा ओजोन यानी ओ3 और नाइट्रोजन डाईआक्साइड जैसे प्रदूषकों की अहम भूमिका होती है। धूल के ऐसे सूक्ष्म कण जिनका व्यास 2.5 माइक्रोन से भी कम होता है, फेफड़ों में रह जाते हैं और रक्त प्रवाह के साथ शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। इससे शरीर की कई अंग प्रणालियां प्रभावित होती हैं और हृदय रोग, स्ट्रोक, मधुमेह, फेफड़ों का कैंसर, क्लिनिक आब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज यानी सीओपीडी जैसे गैर संचारी रोगों का जोखिम बड़े पैमाने पर बढ़ जाता है। वायु प्रदूषण से होने वाली वैश्विक मौतों में 90 फीसदी यानी 78 लाख से ज्यादा का कारण धूल के ऐसे सूक्ष्म कण पीएम 2.5 माइक्रोन ही है।
वायु प्रदूषण से मानसिक रोगों का खतरा भी बढ़ गया है। स्कॉटलैंड की यूनिवर्सिटी आफ सेंट एण्ड्रयूज द्वारा किये शोध से यह खुलासा हुआ है कि वायु प्रदूषण से हवा में मौजूद दूषित कणों के दिमाग पर हमला करने से उदासी, छात्रों में पढाई संबंधी परेशानियों और जीवन की चुनौतियों से निपटने की क्षमता लगातार कम हो रही है। दुनिया के शोध- अध्ययन प्रमाण हैं कि वायु प्रदूषण मनुष्य के स्वास्थ्य को बेहद गंभीर स्थिति तक नुकसान पहुंचाने का प्रमुख कारण बन गया है।
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कैलीफोर्निया यूनीवर्सिटी के शोध-अध्ययन से इसका खुलासा हुआ है कि यदि आप वायु प्रदूषण के बीच दो घंटे से अधिक समय भी रह लेते हैं तो इससे मस्तिष्क की फंक्शनल कनेक्टिविटी कम हो जाती है। अब तो यह साफ हो गया है कि जिस तरह से वायु प्रदूषण का मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव पड़ता है, उसी तरह जंगल की आग से निकलने वाले धुंए का भी स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव पड़ता है।
वायु प्रदूषण ने तो इंसान क्या ऋतुओं को भी अपनी चपेट में ले लिया है। नतीजतन हम मौसम सम्बन्धी तमाम चुनौतियों का सामना करने को विवश हैं। मौसम में आ रहा बदलाव इसका अहम कारण है। इस सबके लिए इंसानी गतिविधियां ही प्रमुख रूप से जिम्मेदार हैं जो इंसानों पर ही भारी पड़ रही हैं। पोलैंड के रोकला यूनिवर्सिटी आफ हैल्थ एण्ड स्पोर्ट्स साइंस के वैज्ञानिकों ने इसका खुलासा करते हुए कहा है कि इंसानी गतिविधियों के चलते न केवल महासागरों का रंग बदल रहा है बल्कि पर्यावरण में इंसानी दखलंदाजी उसी की जान की दुश्मन बन रही है।
जर्मनी स्थित मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फार कैमिस्ट्री के शोध में यह आशंका व्यक्त की गयी है कि बढ़ते तापमान और वायु प्रदूषण पर समय रहते अंकुश नहीं लगाया गया तो इससे हर साल दुनिया में करीब तीन करोड़ लोग असमय मौत के मुंह में चले जायेंगे। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि यदि ऐसे ही हालात रहे तो वार्षिक मृत्यु दर सदी के अंत तक अनियंत्रित हो सकती है और दुनिया की 20 फीसदी आबादी गंभीर स्वास्थ्य जोखिम का सामना करेगी।
*वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद