इस वर्ष पूरा भारत अकाल से त्रस्त है लेकिन इस अकाल की मार सबसे ज्यादा कर्नाटक राज्य में हुई है। पूरे राज्य में 26 फीसदी कम बारिश दर्ज की गई, जिसके कारण खरीफ सीजन के दौरान लगभग 45.55 लाख हेक्टेयर कृषि और बागवानी फसल का नुकसान हुआ। राज्य ने अब तक कुल 236 तालुकों में से 216 सूखा घोषित किया है और नवंबर के पहले सप्ताह में और अधिक तालुकों को सूखाग्रस्त घोषित करने की संभावना की जांच की जाएगी।
इस सूखे की मार गदक जिला भी झेल रहा है। यहाँ अब पानी की कमी के साथ-साथ चारे की कमी भी हो चुकी है। अभी अनाज की कमी तो नहीं है। इस राज्य में आधे से भी कम वर्षा हुई है, कुछ जगह पर वर्षा अच्छी हुई है लेकिन बेसमय हुई है। जिस समय वर्षा होना चाहिए थी, उस समय नहीं हुई। इसके कारण फसलें नष्ट हो गई है। यह मजबूरी और बर्बादी का संकेत है।
अभी कर्नाटक यात्रा के दौरान मुझे बहुत सारे लोगों से बात करने का मौका मिला। कर्नाटक के गदक जिले की इच्चनहल्ला नदी में डी.आर.पाटिल और एच.के.पाटिल ने मिलकर जो पानी का काम 20 साल पहले किया था, उससे कुछ पानी है। शायद ऐसे ही कुछ और क्षेत्र भी होंगे जिनको मैं नहीं जानता।
यहां के लोगों का यह भी कहना है कि, इस बार अगस्त में ही मानसून पूरा हो गया था। अगस्त में अच्छी बारिश होती है, जबकि इस बार अच्छी बारिश नहीं हुई। वर्षा का चक्र बदल गया है लेकिन इस वर्षा चक्र के बदलते हुए समय में किसानों को भी अपना फसल का चक्र बदलना चाहिए, यह बात किसानों के साथ कोई कर नही रहा है।
पहले जब जैसा वक्त हो किसान अपने जीवन को संभाल लेता था, अब किसान के जीवन को साधने की वो कला भी धीरे-धीरे खत्म हो गई है। खेती में बाजार ने अपनी पकड़ जमा ली है और बाजार तो केवल अपने लाभ के लिए काम करता है। बाजार के लाभ से धरती का पेट खाली हो गया, हमारी जल के शोषण की तकनीक ने भूजल के भंडार को खाली करने की कोई मर्यादा नहीं रखी। इसलिए शोषणकारी तकनीक जब बढ़ी तो शोषण करने वालों की ताकत भी बढ़ गई। फिर उन्होंने साझी संपदा नदी, समुद्र, जंगल इन सब पर अतिक्रमण करना शुरू किया। जंगल काटे और शोषणकारी उद्योगों ने प्रदूषित जल को नदियों और समुद्र में डालना शुरू किया। इससे नदी, समुद्र, धरती और प्रकृति सब कुछ प्रदूषित होने लगी है।
इस वक्त भारत जल की कमी, जलवायु परिवर्तन के बिगाड़ से जूझ रहा है। इसके कारण गांव की लाचारी ,बेकारी और बीमारी बढ़ रही है। आज जो सुखाड़ की मार दिख रही है, इसका सबसे बड़ा कारण यह भी है कि ,चंद लोगों ने अब प्रकृति पर कब्जा कर लिया है। उनका शोषण रोकने में सरकारें विफल है या सरकार उनके शोषण को संरक्षण दे रही हैं। मुझे तो यही लगता है कि, प्रकृति का शोषण, प्रदूषण और अतिक्रमण करने वाले आज संरक्षित और सुरक्षित है। उनको भारत सरकार संपूर्ण संरक्षण प्रदान कर रही है। भारत सरकार के संरक्षण से भारत के चंद परिवार फल-फूल रहे हैं। यह करोड़ों परिवारों को बर्बाद करने के रास्ते पर ले जा रहा है।
यह बर्बादी सुखाड़ के कारण अधिक हो रही है। अब सुखाड़ की मार से प्रभावित लोग अपना घर-गांव छोड़कर बाहर शहरों की तरफ जा रहे हैं। यह गांव का विस्थापन बापू के ग्राम स्वराज्य के विपरीत शोषणकारी व्यवस्था का हिस्सा बन गया है। इस शोषणकारी व्यवस्था से बचने की हमारी तैयारी नहीं होगी, तो अब बाढ़ और सुखाड के विस्थापन से तीसरा विश्व युद्ध हमारे सिर पर आ रहा है।
यदि इस दुनिया को सुखाड़ से बचाना है तो सुखाड़ से बचने वाले बाढ़ से अपने आप बच जाएंगे। यह एक ही सिक्के के दो पहलू है। इसलिए सुखाड़-बाढ़ से मुक्ति की युक्ति के लिए जरूरी है कि, प्रकृति का शोषण, अतिक्रमण और प्रदूषण करने वालों पर रोक लगे। बारिश की बूंदों को हम सब मिलकर सहेजलें। जब हम बारिश की बूंदों को सहेजेंगे तब हम पानीदार बनेंगे। यदि हम पानीदार बन जाएंगे तो विस्थापित नहीं होंगे।
आजकल की सरकारें केवल पानी का व्यापार करने वाले, पानी के नाम पर कमाई करने वाले लोगों को साथ देती है। आज कुछ लोग वाटर हार्वेस्टिंग की तकनीक के नाम पर अपने प्लास्टिक की पाइप बेचना चाहते हैं। इन पाइपों को खरीदने में भी और इन पाइपों को लगाकर वाटर हार्वेस्टिंग करने में भी बड़ी कंपनियों के फायदे का ही काम होता है।
सरकारों को चाहिए कि, वह सामुदायिक विकेंद्रित जल प्रबंधन को बढ़ावा देंगे, तो यह जलवायु परिवर्तन का संकट का हमारे सामुदायिक अनुकूलन से उन्मूलन हो जाएगा और लोग सुखाड़ की मार से बच जाएंगे।
कर्नाटक को सुखाड़ की मार से बचाना है तो जल्दी से जल्दी सुखाड़ मुक्ति की जल साक्षरता का अभियान चलाना होगा। अपने समाज को खुद पानी आने से पहले पाल बांधने का काम सिखाना होगा। जब पानी नहीं बरसता तो उनको विश्वास नहीं होता की वर्षा आएगी। इसलिए लोगो के मन में यह विश्वास पैदा करना की बारिश आएगी ही। इसलिए बरसात आने से पहले वर्षा जल का संरक्षण करना शुरू करें। मेरे दादा मुझे कहते थे कि, पानी आने से पहले जो पाल बांध लेता है, वो कभी बेपानी नही होता। यह मैंने लाखां परिवारों के साथ देखा है, जिन लोगो ने ऐसा काम किया वो इस अकाल में भी पानीदार बने हुए है जैसे – धौलपुर, करौली, अलवर राजस्थान, सांगली महाराष्ट्र, इच्चनहल्ला कर्नाटक आदि ऐसे क्षेत्र है। इसलिए हमारी सरकार को यदि पानी का काम करना है तो ऐसे कामों से सीख लेने की जरूरत है, तब ही हम सुखाड़ और बाढ़ से बच पायेंगे।
*जल पुरुष के नाम से विख्यात जल विशेषज्ञ