– सुरेश भाई*
उत्तरकाशी: मूसलाधार बारिश के चलते बादल फटने और आकस्मिक बाढ़ की घटनाओं के कारण मध्य हिमालय में अकेले उत्तराखंड में 449 सड़कें जगह जगह मलबे से भरी है जिससे आसपास जीवन को नुकसान होने के अतिरिक्त और कुछ हासिल होने वाला नहीं है। इसका उदाहरण है कि गंगोत्री हाईवे पर सुनगर और गंगनाणी के बीच पहाड़ खिसकने के कारण 10 जुलाई को मध्यप्रदेश के 4 तीर्थ यात्रियों की दबकर मौत हो गई है। इसी तरह यमुनोत्री हाईवे पर स्थित औजरी- डाबरकोट भूस्खलन के पास तैनात एक हेड कांस्टेबल की मौत हो गई। उनके साथ ड्यूटी कर रहे अन्य जवानों ने किसी तरह भागकर अपनी जान बचाई है।
इस समय टिहरी बांध में बढ़ रहे जल के कारण चारों ओर बसे हुए गांव में भी भूस्खलन और दरारें आ रही है। यहां स्थिति ऐसी है कि हर साल न्यायालय के आदेशों से हर वर्ष औसत 4-5 गांव को अन्यत्र बसाना पड़ रहा है।
जोशीमठ की आपदा, जिसका दर्द दुनिया के सामने प्रस्तुत किया गया है, वहां इस बरसात में फिर से गड्ढे और दरारें पड़ने लग गई है। उत्तराखंड सरकार द्वारा जोशीमठ भूस्खलन के लिए बनाई गई 8 तकनीकी संस्थाओं की रिपोर्ट जिसे मई 2023 से पहले आना चाहिए था, वह अब तक नहीं आयी हैं। लोग पुनः अपने घरों की ओर लौट रहे हैं जो सबसे बड़ा खतरे का कारण बन सकता है।संकट को जानबूझकर बुलाने का कारण यह भी है कि यहां ग्लेशियर के मलबे के ऊपर खड़े पहाड़ पर बहुमंजिला इमारतें बनायी गई है। फिर उसके नीचे से सुरंग बनाई गई। चौड़ी सड़कें बनाने के लिए निर्माण के दौरान उसका सारा मलवा अलकनंदा में डाला गया।जिसके कारण जोशीमठ की आपदा एक तरह की मानव जनित आपदा है। इसी के बगल में 2021 में ऋषिगंगा में जो बाढ़ आई जिसमें 200 लोग मारे गये थे,उसका कारण हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट हैं।
ऋषिकेश- कर्णप्रयाग रेल लाइन के कारण 30 ऐसे गांव हैं जहां पर पौड़ी के जिलाधिकारी ने सुरंग निर्माण के दौरान गांव में आई दरारों का अध्ययन भी करवाया था। भले ही अभी रिपोर्ट सामने नहीं आयी है लेकिन यहां सुरंग का निर्माण इतना घटिया है कि उसके ऊपर गांव के घरों में दरारें पड़ गयी है। जल स्रोत सूखने लगे हैं। खेतों की नमी सूख जाती है।ऐसे अनेकों तरह तरह के मानव जनित आपदाएं लोग झेलते हैं। जिसकी हर बार अनसुनी होती रहती है।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने पिछले दिनों अपने भूस्खलन मानचित्र रिपोर्ट में देश के 147 जिलों को भूस्खलन के लिए बेहद संवेदनशील बताया है जिसमें उत्तराखंड में टिहरी, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी जनपद को सबसे अधिक संवेदनशील बताया गया है। भागीरथी जल क्षेत्र में मस्ताडी गांव के लोग भूस्खलन के कारण घरों में दरारें आने के बाद सुरक्षा के लिए धरना कर रहे हैं ।इसी के पास दिलसौड़ गांव के 120 परिवार का आने -जाने का रास्ता पहाड़ गिरने से अवरुद्ध होता रहता है।
मौसम विभाग ने तो उत्तराखंड, हिमाचल, जम्मू कश्मीर के लिए 13 जुलाई तक के लिए ऑरेंज अलर्ट जारी कर दिया था। इसके बावजूद भी अब तक 2 दर्जन से अधिक लोगों की मौते यहां हो चुकी है।
संपूर्ण हिमालय क्षेत्र जिसमें जम्मू, कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल, उत्तराखंड, और उत्तर-पूर्व के सभी राज्यों में हर वर्ष बरसात का मौसम जानलेवा बनता जा रहा है। वैसे तो यह आपदा का घर जैसा बन गया है क्योंकि पिछले 13 वर्षों में केवल मध्य हिमालय में ही देखें तो उत्तरकाशी(2010), केदारनाथ (2013),चमोली में ऋषि गंगा (2021)और जोशीमठ (2023) जैसी विनाशकारी आपदाओं ने एक चिंता पैदा कर दी है। इससे पहले भी हिमालय के अनेकों भू-भाग में जानलेवा आपदाएं आयी है।
इसरो ने हिमाचल के 11 जिले और जम्मू कश्मीर में राजौरी, पुंछ, उधमपुर, पुलवामा, कठुआ, अनंतनाग, बारामूला आदि को भी भूस्खलन मानचित्र में दर्शाया है।यह सच साबित भी हो रहा है कि अभी जुलाई 2023 की आपदा में इन्ही स्थानों पर सबसे अधिक नुकसान की खबरें सुनाई दे रही है। इस भारी बारिश का कहर जम्मू-कश्मीर के पुंछ जिले में पड़ा है, जहां सेना के 2 जवानों के उफनती धारा में डूबने की खबर आई है।
इसी तरह अमरनाथ जाने वाले लगभग 25 हजार यात्री विभिन्न कैंपों में फंसे रहे हैं जो बारिश और बर्फबारी के कार समय पर आगे नहीं बढ़ पाये। हिमाचल प्रदेश को भी बाढ़ और भूस्खलन के कारण भारी नुकसान का सामना करना पड़ा है। यहां मंडी में ब्यास नदी में आई भयंकर बाढ़ के कारण वर्षों पुराना पुल बह गया है। यहां 850 से अधिक सड़कें अवरुद्ध हुई है जिसके कारण हजारों यात्री हर जगह फंसे रहे।
बरसात आते ही हिमालय क्षेत्र के लोगों पर संकट के बादल मंडराने लगते हैं। भारी बारिश के खौफ में रात भर जिंदगी और मौत के बीच लोग समय गुजारते हैं। सुबह होते ही कई स्थानों से बुरी खबरें भी आने लगती है कि बाढ़ और भूस्खलन से लोगों की मौतें हो गयी है।
24 जून 2023 को मानसून की शुरुआत में ही हिमालय क्षेत्र की ओर लाखों पर्यटक और श्रद्धालुओं का आना प्रारंभ होता है।इसी दौरान यहां जगह-जगह सड़कें टूटने लगी जो हर वर्ष योजनाकारों को सावधान करती आ रही है।
ज्ञात हो कि हिमालयी राज्यों में बाढ़ और भूस्खलन की संवेदनशीलता को नजरअंदाज करते हुए भारी निर्माण कार्यों को विकास के नाम पर महत्व दिया जा रहा है। क़ाबिले गौर है कि हिमालय क्षेत्र में विकास के नाम पर नदियों के बहाव क्षेत्र के आरपार ही बड़े निर्माण कार्य हो रहे हैं जो दिनोंदिन बाढ़, भूस्खलन को अधिक जानलेवा बना सकते है। इससे मैदानी क्षेत्रों में बड़ी तबाही हो सकती है।
यहां सुरंग-आधारित परियोजनाएँ, चौड़ी सड़कें, वन कटान, जैव विविधता को बड़े पैमाने पर नुकसान, निर्माण कार्यों का मलवा नदियों और जल स्रोतों में उड़ेलना, ग्लेशियरों का पिघलना, अनियंत्रित पर्यटन और इसके लिए बहुमंजिला इमारतों का निर्माण, नदियों के किनारे बेतरतीब भवनों का निर्माण ऐसे अनेक कारण हैं जिसके चलते हिमालय के पहाड़ कमजोर होकर उजड़ते नजर आ रहे हैं। क्योंकि इन भारी निर्माण कार्यों के लिए बड़ी भीमकाय जेसीबी मशीनों का प्रयोग किया जाता है। निर्माण के दौरान विस्फोटों का इस्तेमाल तो आम बात है। नदियों और जल स्रोतों के आसपास मानव निर्मित कचरे के जमा ढेरों ने भी खतरनाक स्थिति बना रखी है।
हर वर्ष अकेले हिमालय क्षेत्र में 80- 90 लाख से अधिक लोग आपदा का सामना करते हैं। यद्यपि इस तरह के कार्य मैदानी क्षेत्रों पर भी भारी प्रभाव डाल रहे हैं लेकिन हिमालय की छोटी भौगोलिक आकृति पर इसका प्रभाव त्वरित रूप से देखा जा सकता है।
2013 में 24 जल विद्युत परियोजना और निर्माण के कारण नदियों पर पड़े रहे मलबे के ढेर अधिक जानलेवा साबित हुई है जिसके कारण हजारों लोग केदारनाथ आपदा में मारे गए। इस तरह की स्थिति आगे भी बनती जा रही है।कहा जा रहा है कि गौमुख ग्लेशियर के लगातार सूखने से उसके आसपास बन रही झीलों के कारण और उसके भविष्य में टूटने के आसार भी है। इसी तरह से केदारनाथ से आ रही मंदाकिनी नदी के ग्लेशियरों में भी हलचलें दिखाई दे रही है। इन सब के आसपास भारी निर्माण कार्य अभी भी चल रहा है दूसरी ओर इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि पिछले एक दशक में 3 दर्जन से अधिक बार 5 रीचर स्केल के भूकंप आ चुके हैं। जिसके कारण यहां के ढालदार पहाड़ों पर दरारें पड़ी हुई हैं। इन दरारों में बारिश का पानी भर जाता है। यदि नीचे से कोई भारी निर्माण कार्य चल रहा होगा तो निश्चित ही भूस्खलन बढ़ेंगे।
हिमालय क्षेत्र में बाढ़ और भूस्खलन की विभीषिका को कम करने के लिए आवश्यक है कि यहां के विकास के लिए पृथक मॉडल पर विचार करना होगा। इस ओर ध्यान दिलाने के लिए केंद्र सरकार को उत्तराखंड, हिमाचल, जम्मू कश्मीर के लोगों ने हिमालय नीति अभियान के तहत हिमालय लोक नीति का मसौदा सौंपा है।
अतः हिमालय बचाने के लिए जरूरी है कि यहां की भौगोलिक संरचना के अनुसार छोटे निर्माण कार्य हो। यहां की भू-आकृति के आधार पर वाहनों की आवाजाही, पर्यटकों पर नियंत्रण, बहुमंजिला इमारतों के निर्माण पर रोक,जैव विविधता का संरक्षण, कृषि एवं बागवानी के लिए भू- कानून, छोटी पनबिजली,महिलाओं का कष्ट निवारण, जल संरक्षण, बाढ़ और भूस्खलन नियंत्रण के प्राकृतिक उपाय, वनों के कटान पर रोक, जलवायु अनुकूल विकास और रोजगार की अवधारणा पर केंद्रित विकास की ओर ध्यान देना होगा।तभी हिमालय से प्रारंभ हो रही तबाही को रोका जा सकता है।
– लेखक सामाजिक कार्यकर्ता हैं।