चम्बल नदी राजस्थान कि सबसे बड़ी नदी है। प्रसिद्ध चोलिया जलप्रपात इसी नदी पर रावतभाटा जिले में है जिसकी ऊंचाई 18 मीटर है और यह राजस्थान का सबसे ऊँचा जलप्रपात है। चंबल एक बारहमासी नदी थी। अभी इस पर बने बांधों ने इसे बरसाती बना दिया है। इस नदी पर चार जल विद्युत परियोजनाएं – गांधी सागर, राणा प्रताप सागर, जवाहर सागर और कोटा बैराज चल रही हैं।
चंबल का प्राचीन नाम चर्मण्वती है। महाभारत कथा अनुसार चम्बल पांडवों की पत्नी द्रौपदी से श्रापित मानी जाती है। कहते कि राजा रंतिदेव द्वारा निर्दोष जानवरों की बलि से निकले खून और पूजन -सामग्री अवशेष से पैदा होने के कारण ही चंबल नदी को श्रापित माना गया हैं। यही वजह है कि इस नदी को गंगा ,गोदावरी, कृष्णा, कावेरी नर्मदा, यमुना या इन जैसी अन्य नदियों के समान पवित्र नही माना गया, इसलिए ही चंबल में स्नान करने से पुण्य नहीं होता। शास्त्रों के कथन अनुसार यह सिद्ध होता है कि वहां की मिट्टी के दोषों को अपने साथ बहाकर ले आती है जो कि मानवीय पेयजल एवं स्नान हेतु विशिष्ट गुणकारी नहीं है। इसलिए चंबल बेसिन की मिट्टी पानी में घुलकर तथा हवा के साथ बहकर बीहड़ निर्माण करती है। इस नदी में करौली, सवाई माधोपुर तथा धौलपुर में गहरे और उबड़-खाबड़ बीहड़ पाए जाते हैं।
जिसे हम चंबल के बीहड़ क्षेत्र कहते हैं वो केवल चंबल नदी बेसिन क्षेत्र ही नहीं है। ये क्षेत्र आगरा, ग्वालियर तक फैले हुए हैं। राजस्थान के सवाई माधोपुर, दौसा, करौली, धौलपुर तथा मध्यप्रदेश के भिंड, मुरैना, श्योपुर, शिवपुरी, ग्वालियर, उत्तर प्रदेश के इटावा जालौन, उरई आदि क्षेत्रों को यहॉं की वर्षा और हवा बीहड़ बनाती है। उक्त वर्णित तीनों राज्यों के बीहड़ चंबल बीहड़ कहलाते हैं। यहॉं पहले सम्पूर्ण क्षेत्रों में बंदूकों की धमक थी। अब यह सम्पूर्ण क्षेत्र शान्ति के रास्ते पर आगे बढ़ रहा है। जल की उपलब्धता ने इस क्षेत्र के युवाओं में बन्दूक छोड़कर खेती की तरफ रूझान बढ़ाया है। मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश में पर्याप्त रोजगार नहीं है। राजस्थान में भी अतिरिक्त रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने की जरूरत है।
चंबल नदी मध्य भारत में यमुना नदी की सहायक नदी है। यह नदी राजस्थान के चित्तौड़गढ़ के चौरासी गढ, गांधी सागर, मंदसौर, राणा प्रताप, जवाहर सागर, कोटा बैराज आदि बांधों को भरते हुए, उत्तर प्रदेश में 965 किमी की यात्रा करके इटावा के मुरलीगंज में जाकर यमुना में मिलती है। इस नदी का उद्गम राजस्थान और मध्यप्रदेश है। यह नदी मध्यप्रदेश के दक्षिण में इंदौर के पास महू शहर के विंध्य रेंज में जानापाव पर्वत बांगचु पॉइंट दक्षिण ढलान से होकर गुजरती है। साथ ही यह नदी भारत में उत्तर तथा उत्तर-मघ्य भाग में राजस्थान के चित्तौड़गढ़ के चौरासीगढ़ से निकलकर कोटा, धौलपुर, सवाई माधोपुर, मध्य प्रदेश के धार, उज्जैन, रतलाम, मंदसौर, भिंड, मुरैना आदि जिलों से होकर बहती है। दक्षिण की ओर मुड़ कर, उत्तर प्रदेश राज्य में यमुना में शामिल होने के पहले चंबल नदी राजस्थान और मध्यप्रदेश के बीच 252 किमी की सीमा बनाती है।
उत्तर पश्चिमी मध्यप्रदेश के मालवा क्षेत्र के नाले के साथ ही चंबल नदी की मुख्य सहायक नदियां बनास, क्षिप्रा, मेज, बानमी, सीप, कालीसिंध, पार्वती, छोटी, काली सिंध, कुनो, ब्राह्मणी, परवन, आलनिया और गुजाली हैं। इसकी सहायक नदी बनास अरावली पर्वत से शुरू होती है। सवाई माधौपुर में चम्बल, बनास, सीप नदी त्रिवेणी संगम बनाती है। उत्तर प्रदेश राज्य में जालौन उरई और इटावा जिले की सीमा पर चंबल, कावेरी, यमुना, सिंध ,पहुज और भरेह नदी (पंचनदा) का संगम होता है।
चंबल के बीहड़ क्षेत्र में पहले बंदूकों की धमक थी। इसकी वजह है पानी की कमी से उत्पन्न अकाल की स्थिति।सूखे की वजह से यहाँ के लोग बागी बन गए थे। मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश में अभी भी पर्याप्त रोजगार नहीं हैं। राजस्थान में भी अतिरिक्त रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने की जरूरत है।लेकिन खास कर अलवर और चम्बल क्षेत्रों में सभी को खेती में पर्याप्त रोजगार, तरुण भारत संघ द्वारा जल उपलब्ध कराये गये सिंचाई जल से मिले हैं। चंबल बीहड़ के लोगों ने विशेषकर सवाई माधौपुर, करौली, धौलपुर में जल संरक्षण करके अपने आप को पानीदार बनाया है। यहाँ लोगों ने बंदूकें छोड़ीं और फिर वो विश्व जल शान्ति दूत बनकर, जल संरक्षण करने के लिए दूसरे लोगों को तैयार करने हेतु जुट गये। उन्होने अपनी छोटी- छोटी नदियों को भी शुद्ध सदानीरा बना लिया; इनमें महेश्वरा, शैरनी, नहरो, तिवरा, बामनी आदि दर्जनों नदियां अब शुद्ध सदानीरा हो गयी। पहले ये बरसाती बनकर, सूखकर मर गयी थी, जैसे ही ये नदियां सूख कर मरी थी; वैसे ही यहाँ की सभ्यता भा हिंसा से सूख कर मर गयी थी। अब नदियाँ पुनर्जीवित हुई है तो यहां अहिंसामय सभ्यता पुनर्जीवित हो गयी है। अब यह सम्पूर्ण क्षेत्र शान्ति के रास्ते पर आगे बढ़ रहा है।जल की उपलब्धता ने इस क्षेत्र के युवाओं में बंदूकों को छोड़कर खेती की तरफ रूझान बढ़ाया है।
*जल पुरुष के नाम से विख्यात जल संरक्षक