– डॉ राजेन्द्र सिंह*
जल-शांति वर्ष 2024, तीसरे विश्व युद्ध से बचाव के लिए शुरूआत है। मानवीय जीवन में जब जल का तीर्थपन था, तब मानवीय मन में जल सुरक्षा, शांति का भाव और सम्मान बना हुआ था। जल की समझ, सम्मान, सदाचार और सद्व्यवहार के बदलाव ने जल को बाजार, दुरुपयोग और दुर्व्यवहार में बदल दिया है। इसलिए जल का अब हमारे जीवन में तीर्थपन नहीं बचा तो संयुक्त राष्ट्र संघ ने वर्ष 2024 को न्यूयॉर्क के दूसरे विश्व सम्मेलन में जल-शांति वर्ष घोषित कर दिया।
2024 विश्व शांति वर्ष मनाया तो जाएगा, लेकिन संयुक्त राष्ट्र संघ के सामने जो संकट है, उस संकट के समाधान के लिए वातावरण निर्माण की दृष्टि से संयुक्त राष्ट्र ने यह वर्ष घोषित किया है। भारत के लोग जल को पहले से शांति का प्रतीक मानते हैं। जब भी हम कोई यज्ञ अग्नि से करते हैं, तब यज्ञ की शुरुआत और संपन्न भी जल से ही होता है। यज्ञ स्थल की जल से परिक्रमा करके, शांति को आहूत करते हैं। इसका मतलब यह कि भारत में जल शांति, व्यवहार, संस्कार और भारत के तीर्थपन में सदाचारी रही है। जल का सदाचारी, सम्मानीय व्यवहार, हमें जल की आस्था, श्रद्धा, निष्ठा और जल भक्ति तक की यात्रा कराता है। इसलिए भारत और दुनिया के सभी धर्मों में जल को जीवन का आधार माना जाता है। सभी धर्मों में इस बात का अलग-अलग तरीके से दर्शन होता है, जो इस प्रकार है-
हिंदू धर्म
जल जीवन है, यही जीविका और अध्यात्म है, सभी को सब कुछ देने वाला यही नारायण है। यही सृष्टि का सर्जन और संहार करने वाली शक्ति है।
इस्लाम धर्म
जल खुदा का रहमो करम है, यह पाक – पवित्र है। यही मानवीय शरीर को पाक रखता है। कुदरत की हिफाजत है, ऐसा ही काम सबको करने के लिए पैगंबर कहते है।
ईसाई धर्म
जल हमारी शारीरिक जरूरतों की पूर्ति करता है, उसी प्रकार परमात्मा हमारी आध्यात्मिक पूर्ति करता है।
पारसी धर्म
जल, अग्नि और धरती पवित्र है, इनकी पवित्रता बचाना ही हमारा धर्म है।
यहूदी धर्म
पानी खुदा का ऐसा शस्त्र है, जो किसी के लिए वरदान और किसी के लिए श्राप बन सकता है।
शिंटो धर्म
प्राणी का प्रत्येक अंग पूज्यनीय है, जल प्रकृति के निर्माण का सबसे महत्वपूर्ण अंग है।
बौद्ध धर्म
परलोक में जाने वाले प्राणी को जल से पूर्ण तृप्ति प्राप्त होती है।सभी धर्मों की अपनी आस्था और श्रद्धा का जब भी आधार हमें समझ में आता है, तो वेदों में कही गई बात सिद्ध हो जाती है कि जल ही ब्रह्मा है, जल ही ब्रह्मांड है, जल ही जीवन है और जल ही इस ब्रह्मांड को बनाता और चलाता है। जब हम सभी के शुभ की बात सोचते हैं, तो हमें लगता है कि, पूरी दुनिया एक है और धर्म को धारण करने वाला तत्व परम परमात्मा भी एक है। उस परम परमात्मा को बनाने वाली प्रकृति भी एक है।
जब हम इसे लाभ की दृष्टि से देखने लगते है, तब हम परिस्थिति, पर्यावरण और साझे भविष्य, वर्तमान को भूलकर, आमने-सामने खड़े हो जाते हैं। आमने-सामने खड़े होने के तरीके में धर्म बहुत मदद कर देता है। जो धर्म सबको एक बनाता है, वही धर्म फिर सत्ता, लाभ, लालच और लोभ प्रबल होने पर हमें आपस में बाँटने लगता है। इससे हमारी आंखों और दिल-दिमाग का पानी सूख जाता है। हमारी नदियाँ सूखने लगती है तो जो सभ्यताएँ शिखर पर होती हैं, वह भी धरती पर गिर पड़ती हैं। इसलिए हमें जल दर्शन को गहराई से समझने की जरूरत है। जलदर्शन का अपने-अपने धर्मों की धारणाओं, शास्त्रों में जल की मान्यता के अनुसार तीर्थपन बना रहता है, तो हम एक-दूसरे के साथ मिल जाते है। जब यह भाव विखंडित होकर, हमारे तीर्थपन को मिटाता है, तब हम एक-दूसरे के सामने खड़े होकर लड़ने लगते हैं।
जल का व्यवहार देखें तो वह विनम्रता से सदैव नीचे की तरफ बहता है और नीचे की तरफ बहकर हम सबके जीवन का मरहम बनता रहता है। वही जल जो मरहम बनकर कष्ट को कम करता है, फिर वहीं जल जहरीला बनकर आपस में लड़ाकर, विश्व युद्ध का वातावरण निर्माण कर देता है।
आज पूरी दुनिया में तीसरे विश्वयुद्ध का जो वातावरण बन रहा है, वह समांतर होकर लड़ने वाला नहीं होगा। यह तो पूरी धरती पर फैलकर होगा, इसलिए यह ज्यादा खतरनाक होगा, क्योंकि जल विश्व युद्ध की शुरूआत मानवीय विस्थापन से होती है।
जब भी हम अपनी जगह छोड़कर, लाचार, बेकार और बीमार होकर मरते हैं, तो कुछ भी करने को तैयार रहते हैं।
‘‘मरता कोई, क्या नहीं करता’’। इससे हमारे जीवन के कष्ट बढ़ते जाते हैं। इसलिए जो जल औषधी बनकर कष्ट कम करता है और अपने तीर्थपन से निरोग रखता था, वही जल आज हमारे जीवन में बाढ़-सुखाड़ लाकर, हमें आपस में लड़ाने के लिए, तीसरे विश्व युद्ध की तैयारी करवा रहा है।
संयुक्त राष्ट्र संघ ने तीसरे विश्व युद्ध से बचाने के लिए, विश्व जल-शांति वर्ष घोषित करके अपने को विश्व युद्ध से मुक्ति की युक्ति की तरह घोषित किया है। यह कितना कारगर सिद्ध होगा, इस पर बहुत सी शंकाएँ है।
विश्व युद्ध के प्रलय को रोकने के लिए जल के साथ प्यार, सम्मान, सदाचार और विश्वास का व्यवहार करना होगा। जिससे दुनिया में सामुदायिक विकेन्द्रित जल प्रबंधन द्वारा दुनिया को बाढ़-सुखाड़ मुक्त करने की समय-सिद्ध साकार युक्ति संभव है। यह युक्ति हजारों सालों के समय-सिद्ध भारतीय अनुभवों के आधार पर संयुक्त राष्ट्र संघ को बताई जा रही है। संयुक्त राष्ट्र संघ इस जल-शांति वर्ष में जल संरक्षण के सामुदायिक प्रयासों को बढ़ावा दे एवं जल उपयोग दक्षता बढ़ाकर दुनिया की नदियों को पुनर्जीवित करने की दिशा में पहल करे, तब ही तीसरे विश्व युद्ध से मुक्ति पा सकेगी। विश्व जल- शांति वर्ष, विश्व जल युद्ध की मुक्ति की युक्ति नहीं है, जल तीर्थपन और सामुदायिक विकेंद्रित जल प्रबंध ही तीसरे विश्व युद्ध से बचाने की युक्ति बन सकता है।
*जलपुरुष के नाम से विख्यात एवं स्टॉकहोम वाटर प्राइज से सम्मानित जल संरक्षक।