दुनिया के लोगों को जल सुरक्षा व शांति हेतु विश्व जल युद्ध से बचने के प्रत्यक्ष उपाय सामुदायिक विकेन्द्रित जल संरक्षण और संवर्द्धन के काम में लगना होगा। तीसरे विश्वयुद्ध से बचने के लिए अभी तक पूरी दुनिया में जो भी समय-सिद्ध प्रत्यक्ष अनुभव हैं, पहले उनकी खोज करनी होगी। समय-सिद्ध अनुभवों की खोज करके, संयुक्त राष्ट्र संघ को वैसे ही सामुदायिक विकेन्द्रित जल संरक्षण, प्रबंधन व जल समृद्धि के रास्ते सभी सरकारों को पकड़ाने होंगे। जल संरक्षण-संवर्द्धन के रास्ते ही इस दुनिया के सभी जीवों को जल सुरक्षा प्रदान करके, शांति की तरफ आगे बढ़ाएँगे। इन रास्तों पर यदि हम देखें तो दुनिया भर में कई अच्छे प्रयास हुए हैं। मैंने अपनी विश्व यात्रा के दौरान देखा कि जहाँ-जहाँ समाज ने अपने जीवन की विद्या को भूलकर, लोभी, लालची, भोगी और रोगी बनकर, अपनी नदियों को सूखा दिया है, वहाँ नदियों के सूखने के साथ उनकी सभ्यता भी सूख गई। जिन समुदायों ने अपने को सचेत रखकर, जल का संरक्षण-प्रबन्धन व जल उपयोग दक्षता बढ़ाकर, अपना जीवन जिया तो उन्होंने अपनी उजड़ी-मरी हुई सभ्यता को पुनर्जीवित कर लिया।
मेरी आँखों के सामने दुनिया भर के ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैं, लेकिन यहाँ मैं अभी केवल एक एक उदाहरण दे रहा हूँ- ‘‘चम्बल की सैरनी और पार्बती नदी’’ । जब यह नदी सूखी तो नदियों के किनारे के लोग अपनी जगह छोड़कर, उजड़ने लगे, जब कोई भूख से मरता है, तब वह कुछ भी कर सकता है। भूख से मरने वाला आचार, विचार, सिद्धान्त अनुशासन और मर्यादा सब कुछ भूल जाता है। इसलिए सैरनी और पार्बती के लोगों ने भूखे मरते हुए बन्दूक़ उठाकर, लूटपाट करना शुरू कर दिया। उसी काल में एक वक्त आया जब यहाँ की महिलाओं ने जल संरक्षण की दिशा में पहल की। इसका परिणाम हुआ कि, अपनी धरती को खुद पानीदार बनाकर, सुख-समृद्धि और शान्ति का रास्ता पुरषों को पकड़ा दिया। इन्होंने अपने सुख-समृद्धि के रास्ते पर चलकर, अपनी श्रमनिष्ठा, मेहनत और पसीने से अपनी धरती को पानीदार बना लिया। उन्होंने पहले अपने खेतों और कुओं को पानीदार बनाया, नदी स्वतः ही पानीदार बन गई और अब तो समाज भी पानीदार बन गया है।
आज यह समाज इज़्ज़तदार, मालदार और पानीदार है। सैरनी जैसे उदाहारण दुनिया में जब खोजेंगे तो और भी मिल जायेंगे। इसलिए संयुक्त राष्ट्र संघ को यह सलाह देना चाहता हूँ कि तीसरे विश्वयुद्ध से बचने के लिए, जो विश्व जल शांति सुरक्षा वर्ष घोषित किया है, इस वर्ष में दुनिया के ऐसे सर्वोत्तम प्रयासों को खोज कर, उनसे सरकारों को सीख देकर और ऐसे जल संरक्षण के विकेन्द्रित कामों को करने की ज़ोर से पहल करने वाला मज़बूत और गहरा अभियान चलाना चाहिए। तभी सरकार और समाज दोनों मिलकर, सुख-समृद्धि और शान्ति का रास्ता ढूँढ़ कर आगे बढ़ेंगे।
आज ताकतवर देशों ने गरीब देशों की नदियों पर कब्ज़ा कर लिया है। नदियों को सुखा दिया है। जिस देश में नदियाँ बहती हैं, उस देश की नदियों को शक्तिशाली आर्मी को सौंप दिया गया है। यह केवल जॉर्डन, पेलिस्तीन, इजराइल का मामला नहीं है, यह सूडान, साउथ सूडान, केन्या जैसे अधिकतर देशों में दिखता है। इसलिए संयुक्त राष्ट्र संघ को यह सुनिश्चित करना होगा कि सतही जल, भू-जल, अधो भू-जल, नदी तथा ग्लेशियर में प्रवाहित होने वाला जल, दुनिया का साझा जल है। इन स्रोतों का जल दुनिया में सभी को समान रूप से मिलना चाहिए। जब जल समान रूप से मिलेगा, तो शान्ति कायम होगी। संयुक्त राष्ट्र संघ ऐसे मसलों पर मौन रहता है। इसलिए शान्ति वर्ष घोषित करने के साथ ही शान्ति कायम करने वाली जल उपयोग दक्षता बढ़ा कर संरक्षित जल व उपलब्ध जल को समान रूप से बाँटने का काम करना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र संघ यदि ऐसा काम करेगा, तो सभी को पानी उपलब्ध हो सकेगा और सभी शांति से अपना जीवन जी सकेंगे। शान्ति कायम करने के लिए, गौरवशाली ज़मीर को बचा लें तो सभी को जल, आनन्द, अन्न की उपलब्धता और हरियाली का बराबरी से हक़ मिलेगा और तभी शांति कायम होगी।
संयुक्त राष्ट्र संघ को पूरी दुनिया की सभी राष्ट्रीय, राज्यस्तरीय, नगर व ग्राम पंचायत स्तरीय सरकारों और समाज को मिलाकर, ऐसे ही सामुदायिक विकेन्दित जल प्रबन्धन के प्रयास की पहल में लगाना चाहिए। यह नवीन प्रयास नहीं है, पूरी दुनिया में अभी तक राज और समाज ने मिलकर ही जल जरूरतों को पूरा किया था, जब से जल बाज़ार का प्रवेश हुआ, तभी से जल संकट युद्ध स्तर पर आगे बढ़ गया।
जल सुरक्षा का अर्थ होता है कि सबको जीने, पीने और खाद्य आपूर्ति के लिए सभी जगह जल उपलब्ध हो। यह जल की उपलब्धता बाज़ारू नहीं, बल्कि प्राकृतिक हो। बाज़ारू उपलब्धता सभी के लिए कभी भी सम्भव नहीं है, इस व्यवस्था में सिर्फ़ बड़े पैसे वाले लोग ही खरीद कर जल पी सकते हैं; पशु-पक्षी, पेड़-पौधे और गरीब आदमी जल खरीदकर नहीं पी सकता। इसलिए जल की उपलब्धता के लिए, सुरक्षा का भाव तब आता है, जब सभी को जीने का समान अवसर, सहज रूप से प्राप्त हो। जीवन के लिए जल सभी को समता, सादगी और बराबरी से चाहिए।
जल की उपलब्धता ही जल की सुरक्षा सुनिश्चित करती है। जल की सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन, अन्न की सुरक्षा, जीवन जीने की सुरक्षा जल पर निर्भर करती है। यदि जल सभी के लिए उपलब्ध हो जाए, तो जलवायु परिवर्तन से बचाव की सुरक्षा सम्भव है, क्योंकि, जल ही जलवायु है और जलवायु ही जल है। यह बात इससे सिद्ध होती है कि जब हम जलवायु की सुरक्षा कर लेते हैं, तो जीवन में स्वास्थ्य, भोजन और पेयजल की उपलब्धता भी स्वतः हो जाती है। जल सुरक्षा जीवन के सभी ज़रूरी पक्षों की सुरक्षा है। जब जीवन के सभी पक्षों की सुरक्षा होगी, तो शांति अपने आप कायम होने लगती है। शान्ति कायम करने के लिए हम सभी को समान रूप से जल मिलना ज़रूरी है।
जल इस ब्रह्माण्ड में पर्याप्त है, लेकिन यदि यह जीवन जीने के लिए सामान रूप से उपलब्ध नहीं है, तो जल की शान्ति सम्भव नहीं है। इसलिए दुनिया की छोटी-बड़ी सरकारों और संयुक्त राष्ट्र संघ को मिलकर, ऐसी व्यवस्था कायम करनी चाहिए, जिससे सभी के जीवन (पेड़-पौधे, जलचर, उभयचर) को जल उपलब्ध हो सके। ऐसी सहज उपलब्धता से ही दुनिया में शान्ति कायम हो सकती है। जल ही जीवन, जीविका और ज़मीर को बनाता है, यह इस मान्यता से ही सम्भव है।
*जलपुरुष के नाम से विख्यात एवं स्टॉकहोम वाटर प्राइज से सम्मानित जल संरक्षक। प्रस्तुत लेख उनके निजी विचार हैं।