सभी धर्म, विज्ञान और अध्यात्म इस बात को स्वीकार करते हैं कि जल एक है और इस ब्रह्मांड के जीवन को एक बनाता है और उसकी जरूरत पूरी करने की सुरक्षा प्रदान करता है। पूरी दुनिया को एक बनाने वाला केवल जल है। जल से यह दुनिया एक बनती है।
धरती पर माननीय धर्मों में जल का जो व्यवहार, आस्था श्रद्धा, निष्ठा और मान्यता है, वह सभी धर्मों में एक ही है। सब धर्म मानते हैं कि इस धरती और जीवन का शुभारंभ जल से ही होता है। इस मान्यता के अनुसार अब कोई भी धर्म अलग नहीं है और कोई भी आधुनिक विज्ञान का वैज्ञानिक अलग नहीं है। जब इस ब्रह्मांड के जीवों की जरूरत समता से पूरी होती है, तब पानी को लेकर कभी कोई लड़ाई नहीं होती। लेकिन जब पानी के प्रति हमारी दृष्टि और दर्शन बदल जाता है, तब हम पानी को एक आर्थिक बाजार की वस्तु के रूप में देखने लगते हैं और यह मानने लगते हैं कि जल हमें भौतिक सुख-सुविधाओं और द्रव्यों को बढ़ाने में मदद करेगा। जब हम जल पर कब्जा करने की कोशिश करते हैं। जो जितना बड़ा होता है, वह उतने ही अधिक जल के उपयोग में लग जाता है।
जल हमारी जरूरत पूरी करने वाला सबसे महत्त्वपूर्ण जरूरी तत्त्व है, उस तत्त्व को जब हम लालच से भोग की वस्तु बना देते हैं, तब जल हमारी लड़ाइयाँ शुरू करवाता है। जल जब तक हमारा तीर्थ रहता है तब तक लड़ाइयाँ नहीं होतीं; जल जब व्यापार, भोग या पर्यटन की वस्तु बन जाता है, तब जल के कारण लड़ाइयाँ शुरू हो जाती है।
जल को हम प्राणों की माई कहते हैं, लेकिन उसमें कमाई का भाव आने से अतिक्रमण, प्रदूषण और शोषण शुरू हो जाता है। यह हमारे जीवन में जल की सुरक्षा को समाप्त कर देता है।
जल सहेजने को जुटे विभिन्न धर्मों के धर्म गुरु
आज दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू यूथ हॉस्टल में आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन में सभी धर्मों के धर्माचार्य एकत्र हुए और सब ने सामूहिक रूप से कहा कि वह जल संरक्षण और प्रबंधन के ऊपर अपने प्रवचनों में समाज को जागृत करने का काम करेंगे। कार्यक्रम में धर्म गुरु स्वामी सुशील गोस्वामी, श्री महंत विवेकानंद ब्रह्मचारी, बौद्ध धर्म के आचार्य सी पूर्ण टॉक, जैन धर्म से विवेक मुनि, यहूदी धर्म से इजजआक मालेकर, इस्लाम धर्म से मौलाना ए आर शाहीन हाशमी, मौजूद रहे।कार्यक्रम के संयोजक मौलाना हाशमी ने कहा कि धर्म गुरुओं की भी चिंता है कि प्रकृति के संरक्षण में वह समाज के साथ खड़े हो ताकि जल संरक्षण जैसे महत्वपूर्ण विषय पर समाज जागृत हो सके। भारत में पहली बार धर्मगुरुओं के जल सुरक्षा और शांति के लिए आयोजित किए गए सम्मेलन में तय किया गया कि सभी राज्यों में इस तरह के सम्मेलन आयोजित किए जाएंगे जिसकी जिम्मेदारी सर्व समाज उठाएगा। धर्मगुरुओं ने कहा कि दुनिया के सभी धार्मिक ग्रंथों में प्रकृति के संरक्षण को सबसे महत्वपूर्ण बताया गया है । अब भारत सहित पूरे दुनिया में वक्त आ गया है कि जल संरक्षण से शांति के लिए सभी को एक साथ आने की जरूरत है। धर्मगुरु और सामाजिक कार्यकर्ता मिलकर जल की भारतीय आस्था एवं प्रकृति संरक्षण का काम करेंगे । विश्वविद्यालय महाविद्यालयों में जल सुरक्षा हेतु जल साक्षरता अभियान चलाया जाएगा भूजल पुनर्भरण हेतु चेतना यात्रा आयोजित की जाएंगी जिनमें सभी धर्मों के धर्मगुरु नेतृत्व करेंगे । इस सम्मेलन में देश भर से जुटे विषय विशेषज्ञों ने जलवायु परिवर्तन के कारण हो रहे जल संकट के प्रभावों को विशेष तौर से प्रस्तुत किया।
– ग्लोबल बिहारी ब्यूरो
किसी भी देश या दुनिया में जल सुरक्षा, सतही जल, अधो भूजल और गहरा भूजल की जल उपलब्धता जल का रिजर्व बैंक होता है। आज भूजल के भंडार बहुत तेजी से खाली हो रहे हैं, जब भूगर्भ में जल नहीं होता, तब भूजल के साथ जुड़े हुए लोगों में जल सुरक्षा का भाव आता है। यदि मन में जल सुरक्षा का भाव रहता है तो हमें जानकारी रहती है कि हमारे पास पीने और जीने के लायक पर्याप्त जल है। भारत में बहुत सारे भूजल भंडार हैं, जिनमें पीने के लिए उपयुक्त पानी नहीं है। यदि है तो वह बहुत खारा है या प्रदूषित पानी है। ऐसी परिस्थिति में जल बहुत होने के बावजूद भी लोग बेपानी ही कहलाते हैं।
पिछले सालों में भारत में ऐसे बहुत प्रयास हुए जब सरकारों ने पानी को बचाने की कुछ कोशिश की है; लेकिन औद्योगिक ताकतों ने स्वच्छ पानी बचने नहीं दिया और प्रदूषित पानी को नदी में छोड़ दिया, इसलिए नदियाँ भी प्रदूषित हो गई है। इसलिए जल उपयोग दक्षता और जल का संरक्षण दोनों मिलकर ही हमारे लिए जल सुरक्षा पैदा करते हैं। जब हमारे पास माँग से ज्यादा जल की पूर्ति के साधन उपलब्ध होते हैं, तब हम जल के स्वैच्छिक सैनिक होते हैं। पानीदार बनाए रखने के लिए जल की सुरक्षा हमारे जीवन में सबसे ज्यादा जरूरी है।
भारत की जल सुरक्षा सामुदायिक विकेंद्रित जल, मिट्टी, जलवायु प्रबंधन से संभव है। हम यदि अपने वर्षा जल को ठीक से प्रबंधित करें तो हम जल की सुरक्षा का भाव अपने मन में पुनः जाग्रत कर सकते हैं। इसके लिए तरुण भारत संघ, जल बिरादरी तथा सुखाड़ बाढ़ विश्व जन आयोग ने महाराष्ट्र में ‘चला जानूया नदीला’ कार्यक्रम चलाया है, उसमें पूरा समाज जुड़ता है ,जिससे उनमें जल सुरक्षा का भाव बन जाता है ।
जल सुरक्षा पैदा करने के लिए भूजल भंडार, मौजूद जल संरचनाओं को कैसे प्रभावी बनाएँ? इसके लिए आज हमें सभी प्रकार के छोटे-बड़े एक्यूफर के बारे में जानकारी है। लेकिन ये सब खाली हो गए हैं,जहाँ कहीं किसी एक्यूफर में पानी है भी तो बोर वैल होने के कारण धरती छलनी बन गई है।
धरती के सतही जल और भूजल भंडारों की सेहत को ठीक करने की जरूरत है। जैसे ही हमारे भंडार ठीक से भरने लगेंगे, तो भारत कभी बेपानी नहीं होगा। भारत बाढ़-सुखाड़ से भी उस सतह से प्रभावित नही होगा, जैसे अब हो रहा है। अभी तो कहीं भी थोड़ी ज्यादा बारिश होने पर हाहाकार मच जाता है। पहले कभी लंबे समय तक बारिश ना होने पर भी कुएं से पानी निकालकर, पीने लायक पानी या खेती का काम हो जाता था। लेकिन अभी की स्थिति बहुत भयानक होती जा रही है। अब हमारे पास जीने और पीने के लिए पानी नहीं है। जो पानी है, वह बाजार से खरीदना पड़ता है। लेकिन बाजार से खरीदने के लिए किसान के पास साधन नहीं है, क्योंकि गांव की किसानी, जवानी और पानी बचा ही नहीं है।
इस लाचारी, बेकारी और बीमारी की हालत में समाज को जल सुरक्षा नही दिखती, तब समाज भयभीत होकर, उजड़ने लगता है। उजड़कर वह जिस जगह पर जाता है ,वहाँ भी भिन्न-भिन्न रूपों में संकट गहराता जाता है। हमें देखना होगा कि, हम कैसे इस धरती को पानीदार बना सकते है? धरती पानीदार होने से जल सुरक्षा का भाव पुनः हमारे समाज के मन में आ जायेगा। समाज स्वयं अहसास करेगा, तो बड़े काम करने का आभास पैदा होगा। इसलिए हमें इस वक्त जल सुरक्षा का अहसास करके, जल सुरक्षा को सुनिश्चित कराने वाले काम का आभास समाज में पैदा करना पड़ेगा। तब समाज जल सुरक्षा से परिपूर्ण होगा और पानीदार बन जायेगा। भारत को यदि अपने वर्तमान संकट से उभारना है तो हमें जल सुरक्षा का अहसास और विश्व शांति का आभास करना होगा।
*जलपुरुष के नाम से विख्यात एवं स्टॉकहोम वाटर प्राइज से सम्मानित जल संरक्षक। प्रस्तुत लेख उनके निजी विचार हैं।